लाभ का पद : दिल्ली हाईकोर्ट ने AAP के 20 विधायकों की अयोग्यता रद्द की [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
23 March 2018 10:26 PM IST
आम आदमी पार्टी को बड़ी राहत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने 20 आम आदमी पार्टी (आप) के विधायकों को लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्य करार देने की भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की सिफारिश को रद्द कर दिया है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति चंद्रशेखर की खंडपीठ ने चुनाव आयोग को आरोपों पर एक और सुनवाई करने का निर्देश दिया जिसमें कहा गया कि विधायकों को उचित सुनवाई नहीं दी गई। कोर्ट ने कहा कि ये सिफारिश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत और कानून में बुरी थी।
जिन विधायकों को राहत मिली है, उनमें आदर्श शास्त्री (द्वारका), अलका लांबा (चांदनी चौक), अनिल बाजपेयी (गांधी नगर), अवतार सिंह (कालकाजी), कैलाश गहलोत (नजफगढ़), मदन लाल (कस्तूरबा नगर), मनोज कुमार (कोंडली) ), नरेश यादव (महरौली), नितिन त्यागी (लक्ष्मी नगर), प्रवीण कुमार (जंगपुरा), राजेश गुप्ता (वजीरपुर), राजेश ऋषि (जनकपुरी), संजीव झा (बुराड़ी), सरिता सिंह (रोहतास नगर), सोमदत्त (सदर बाजार ), शरद कुमार (नरेला), शिव चरण गोयल (मोती नगर), सुखबीर सिंह (मुंडका), विजेंद्र गर्ग (राजेंद्र नगर) और जरनैल सिंह (तिलक नगर) शामिल हैं। मार्च 2015 में उन्हें मंत्रियों के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। राष्ट्रपति के समक्ष जून 2015 में दायर एक याचिका के बाद उनकी अयोग्यता का सवाल उठाया गया। प्रशांत पटेल द्वारा दायर याचिका में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 की धारा 15 के तहत अयोग्यता मांगी गई थी। हालांकि प्रारंभिक शिकायत 21 विधायकों के खिलाफ थी लेकिन राजौरी गार्डन के विधायक जरनैल सिंह ने 2017 के राज्य चुनाव में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
इधर, दिल्ली विधान सभा ने दिल्ली विधानसभा सदस्य (अयोग्यता हटाने) (संशोधन विधेयक), 2015 में संसदीय सचिवों को 'लाभ के कार्यालय' से अलग कर दिया। हालांकि राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर सहमति देने से इंकार कर दिया था। लगभग उसी समय दिल्ली उच्च न्यायालय ने संसदीय सचिवों के पदों को रद्द कर दिया। विधायकों ने तब यह दावा करते हुए कि उच्च न्यायालय ने पहले ही संसदीय सचिवों के रूप में नियुक्ति को रद्द कर दिया है, चुनाव आयोग से संपर्क किया था और कहा था कि उसे उनके खिलाफ याचिका पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए।
हालांकि चुनाव आयोग ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और उन्होंने अयोग्यता की सिफारिश की थी। इसके बाद विधायकों ने अंतरिम सुरक्षा के लिए उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी।
हालांकि कोर्ट ने उन्हें राहत देने से इंकार कर दिया और चुनाव आयोग के सामने कार्यवाही की लंबित अवधि के दौरान दो साल तक उनके आचरण पर नाराजगी व्यक्त की। हालांकि याचिका के लंबित समय के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी अयोग्यता को मंजूरी दी थी।