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मैं समझता हूँ कि “प्रति व्यय” पर स्वतः संज्ञान लेकर आदेश देने की अपनी गलती को सुधारने की प्राथमिक जिम्मेदारी मेरी है : न्यायमूर्ति जीएस पटेल [निर्णय पढ़ें]
![मैं समझता हूँ कि “प्रति व्यय” पर स्वतः संज्ञान लेकर आदेश देने की अपनी गलती को सुधारने की प्राथमिक जिम्मेदारी मेरी है : न्यायमूर्ति जीएस पटेल [निर्णय पढ़ें] मैं समझता हूँ कि “प्रति व्यय” पर स्वतः संज्ञान लेकर आदेश देने की अपनी गलती को सुधारने की प्राथमिक जिम्मेदारी मेरी है : न्यायमूर्ति जीएस पटेल [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/02/Justice-Gautam-Patel.jpg)
न्यायमूर्ति गौतम पटेल ने गत वर्ष जनवरी में जो आदेश दिया था उस पर सवतः संज्ञान लेते हुए उसकी समीक्षा की है। उन्हें यह समझ में आया कि ऐसा करना उनकी गलती थी और उन्होंने एक विशेष नियम की अनदेखी की।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, “मैं गलत था। यही कारण है कि मैंने इस मामले को आज सुनवाई के लिए अधिसूचित किया है। एक कहावत है कि “मूर्खतापूर्ण संगति ओछे मन की शरारत होती है”। हो सकता है कि यह सही है। क़ानून की दृष्टि से किसी गलत प्रस्थापना से हठपूर्वक चिपके रहना, खासकर तब जब यह प्रस्थापना उसकी अपनी है, तो उस स्थिति में यह और सबसे खराब है क्योंकि इससे गलत क़ानून को बढ़ावा मिलेगा”।
न्यायमूर्ति पटेल ने 27 जनवरी 2017 को दिए गए एक फैसले में कहा कि शिकायत का उत्तर कभी नहीं दिया जाना चाहिए था और इसलिए एक आदेश के तहत ऐसा किया गया जो एक प्रति व्यय है और यह गलत है और एक ख़राब क़ानून। बाद में जज को यह पता चला कि बॉम्बे हाई कोर्ट में एक प्रावधान है जो कि विशेषकर शिकायत के जवाब को लेकर है।
“मुझे इस नियम का ध्यान नहीं रहा। मैंने इसको नजरअंदाज किया। यह एक गलती थी। इसलिए मेरे फैसले का वह हिस्सा कि एक अभियोग का कभी जवाब नहीं दिया जाना चाहिए और एक पूर्व आदेश के तहत ऐसा करना प्रति व्यय है और यह अच्छा क़ानून नहीं है...मेरा निर्णय खुद इस संदर्भ में प्रति व्यय है”, उन्होंने कहा।
जज ने यह भी कहा कि स्वतः संज्ञान लेकर इसकी समीक्षा कर वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके पूर्व आदेश का उल्लेख नहीं किया जाए। उन्होंने कहा, “मैं नहीं चाहता कि कोई व्यक्ति इस तरह की शरारत का शिकार हो जैसा कि मैंने फैसले में कहा। अंततः, अपनी गलती का पता लगने के बाद, मैं समझता हूँ कि इसे ठीक करना मेरा दायित्व है”।