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बहुविवाह, निकाह-हलाला को सती और मानव बलि की तरह अपराध घोषित करने की गुहार लेकर पीड़ित महिला सुप्रीम कोर्ट पहुँची [याचिका पढ़े]
![बहुविवाह, निकाह-हलाला को सती और मानव बलि की तरह अपराध घोषित करने की गुहार लेकर पीड़ित महिला सुप्रीम कोर्ट पहुँची [याचिका पढ़े] बहुविवाह, निकाह-हलाला को सती और मानव बलि की तरह अपराध घोषित करने की गुहार लेकर पीड़ित महिला सुप्रीम कोर्ट पहुँची [याचिका पढ़े]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/03/supreme-court-of-india-1.jpg)
बहुविवाह की पीड़ित एक एक्टिविस्ट और तीन बच्चों की माँ ने बहुविवाह और निकाह-हलाला को भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक घोषित करने और मुस्लिम निजी क़ानून (शरीयत) की धारा 2 को असंवैधानिक कर देने की मांग की है क्योंकि यह इस निर्दय प्रथा को वैधता प्रदान करता है।
दक्षिण दिल्ली की रहने वाली 40 साल की समीना बेगम ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। समीना ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि कैसे उसके पति ने तीन तलाक का सहारा लिया जब उसने अपने ऊपर हो रहे अत्याचार की बात उठाई और उसके दूसरे पति, जो पहले से ही शादीशुदा था, ने उसे उस समय फ़ोन पर तलाक दे दिया जब वह गर्भवती थी।
एडवोकेट अर्चना पाठक के माध्यम से दायर अपनी याचिका में समीना ने कहा कि उसे बाध्य होकर यह याचिका दायर करनी पड़ रही है क्योंकि वह खुद बहुविवाह की पीड़ित रही है जोकि हलाला के साथ मुस्लिम समाज में काफी प्रचिलित है।
समीना ने कहा कि उसकी शादी 1999 में जावेद अनवर से हुई जिससे उसको दो बेटा पैदा हुआ। जावेद ने उस पर काफी अत्याचार किया। जब उसने आईपीसी की धारा 498A के तहत शिकायत दर्ज कराया तो जावेद ने उसको तीन तलाक का पत्र भेज दिया।
दूसरी बार उसने 2012 में रियाज़ुद्दीन से शादी जिसकी पहले ही आरिफा से शादी हो चुकी थी। रियाज़ुद्दीन ने भी उसको फोन पर ही तलाक दे दिया जब वह उसके बच्चे के साथ गर्भवती थी।
इसके बाद से समीना अपने तीन बच्चों के साथ रह रही है और अपनी ही तरह की अन्य महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती हैं।
इस सप्ताह इसी तरह की एक याचिका एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय ने भी दायर की जिसमें उन्होंने भी यही मुद्दे उठाए हैं।
समीना ने अपनी याचिका में कहा है, “भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों को अपने अपने निजी कानूनों के अनुरूप चलने की अनुमति दी गई है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि विभिन्न धार्मिक समुदायों के अपने अलग कानून हो सकते हैं पर निजी क़ानून को संवैधानिक वैधता और नैतिकता पर खड़ा उतरना चाहिए। ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि बहुविवाह की प्रथा सातवीं सदी में उस समय शुरू हुई जब मदीना के पास उह्दु में हुई लड़ाई में मुसलमान पराजित हुए और इस लड़ाई के कारण भारी संख्या में महिलाएं विधवा हो गईं और बच्चे अनाथ हो गए।
समीना ने कहा, “बहुविवाह की अनुमति इसलिए दी गई कि विधवाओं और अनाथ बच्चों को सहारा मिल जाए। किसी भी तरह से यह मुस्लिमों को एक से ज्यादा महिलाओं के साथ शादी करने का आम लाइसेंस नहीं देता”।
समीना ने याचिका में कहा है कि मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 के तहत शादी के विघटित होने के नौ आधार दिए गए हैं जिनमें नपुंसकता, शादी की जिम्मेदारियों को नहीं निभा पाना और क्रूरता शामिल है। पर कहीं भी यह नहीं है कि शादी की पूर्व शर्तें क्या हैं। मुस्लिमों के लिए यह भी जरूरी नहीं है कि दूसरी शादी करने से पहले वह पहली बीवी से अनुमति ले। इस तरह से मुस्लिम पुरुष बहुविवाह के अपराध की जद से पूरी तरह बाहर हैं।
“विवाहित मुस्लिम महिला के लिए पहली शादी में रहते हुए दूसरी शादी करने की मनाही है। चूंकि इस्लाम में शादी एक करार है, इसलिए लड़की निकाहनामा में एक शर्त जोड़ सकती है कि लड़का पहली शादी में रहते हुए दूसरी शादी नहीं कर सकता। इससे दूसरी शादी को करार को तोड़ने वाला माना जाएगा। लेकिन यह भी बहुविवाह को गैरकानूनी नहीं बनाता।
“तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह-हलाला मनमाना है और यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है। राज्य को इसे वैसे ही रोकना चाहिए जैसे उसने मानव बलि या सती पर रोक लगाया”।