चेक बाउंस मामलों में सम्मन भेजने में ईमेल या टेक्स्ट मैसेज के प्रयोग को गुजरात हाई कोर्ट दे रहा है प्रोत्साहन [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
9 March 2018 4:16 PM IST
![चेक बाउंस मामलों में सम्मन भेजने में ईमेल या टेक्स्ट मैसेज के प्रयोग को गुजरात हाई कोर्ट दे रहा है प्रोत्साहन [निर्णय पढ़ें] चेक बाउंस मामलों में सम्मन भेजने में ईमेल या टेक्स्ट मैसेज के प्रयोग को गुजरात हाई कोर्ट दे रहा है प्रोत्साहन [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/03/Section-138-of-NI-Act.jpg)
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर अमल करते हुए चेकों के बाउंस होने के मामले को शीघ्रता से निपटाने के लिए गुजरात हाई कोर्ट ने हाल में निचली अदालतों को निर्देश दिया कि वे आरोपी को धन की राशि सीधे शिकायतकर्ता के खाते में डालने की अनुमति दें और कोर्ट को इसकी जानकारी ईमेल के माध्यम से दें।
कोर्ट राकेश सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। इस याचिका में वडोदरा के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गई जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया था जिस पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत आरोप लगाए गए थे।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आरोपी कोर्ट द्वारा जारी नोटिस को स्वीकार करने से मना कर दिया था। यह भी कहा गया कि निचली अदालत में इस मामले की सुनवाई में इसलिए देरी हुई क्योंकि आरोपी को समय पर नोटिस नहीं जारी किया जा सका।
इसके बाद कोर्ट ने कहा, “कई मामलों में यह देखा गया है कि प्रतिपक्ष-आरोपी द्वारा नोटिस नहीं प्राप्त करने के लिए कई तरह की युक्तियाँ आजमाई जाती हैं। उस स्थिति में सीआरपीसी की धारा 65 के तहत प्रतिवादी-आरोपी के पते पर इस तरह के आदेश को चस्पा करना आवश्यक होगा...
...हालांकि शुरुआती स्तर पर कम्पाउंडिंग संभव नहीं हुआ, तो बाद में भी, कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि सभी पक्ष सौहार्दपूर्ण तरीके से किसी निष्कर्ष पर पहुंचें और ऐसे मुआवजे पर सहमत हों जो सभी पक्ष को स्वीकार्य हो और तब इस मामले को ख़त्म किया जा सकता है”।
कोर्ट ने Meters and Instruments Private Limited and Another vs. Kanchan Mehta, मामले का भी जिक्र किया जिसमें अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चेक बाउंस मामले में आरोपी को शिकायतकर्ता की अनुमति के बिना भी कोर्ट बरी कर सकता है बशर्ते कि कोर्ट इस बारे में आश्वस्त हो कि शिकायतकर्ता को उचित मुआवजा मिल गया है। अन्य बातों के अलावा, कोर्ट ने यह अनुमति दी थी कि आरोपी सीधे शिकायतकर्ता के खाते में ब्याज के साथ भुगतान की जाने वाली राशि जमा कर सकता है और इसके बाद इस कार्यवाही को समाप्त किया जा सकता है।
उपरोक्त निर्देशों को देखते हुए हाई कोर्ट ने उस आदेश को निरस्त कर दिया और मूल मामले को निचली अदालत में सुनवाई के लिए बहाल कर दिया। उसने स्पष्ट किया कि प्रतिवादी अगर सीधे शिकायतकर्ता के खाते में पैसे जमा कराना चाहता है तो राशि के भुगतान के बाद कोर्ट इस मामले को बंद कर सकता है।