सासंदों को आजीवन पेंशन और भत्ता : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ये आदर्श हालात नहीं, फैसला सुरक्षित
LiveLaw News Network
8 March 2018 6:26 AM GMT
पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और भत्ता देने के खिलाफ दाखिल याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
वहीं केंद्र ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि सासंदों के वेतन व भत्तों के लिए स्वतंत्र आयोग के विचार को सरकार ने छोड दिया है क्योंकि ये व्यवहारिक नहीं है।
वहीं पीठ ने कहा कि ये नीतिगत मामला है। दुनिया में किसी भी लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता कि कोर्ट नीतिगत मुद्दों पर फैसला देता हो।
लेकिन पीठ ये मानती है कि ये आदर्श हालात नहीं है लेकिन कोर्ट इस मामले में फैसला नहीं कर सकता।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट में पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और भत्ता दिए जाने का समर्थन किया। केंद्र सरकार ने कहा कि पूर्व सासंदो को यात्रा करना पड़ता है , देश विदेश में जाना पड़ता है ।
वही लोक प्रहरी एनजीओ की तरफ से सरकार की इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि 82 प्रतिशत सांसद करोड़पति है लिहाजा पेंशन की जरूरत उनको नही है। लेकिन पीठ ने कहा कि फिर तो नौकरशाहों का आंकडा भी इकट्ठा करना चाहिए। इस तरह जांच नहीं हो सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि अपनी सेवाओं के लिए सांसदों को पेंशन प्रदान करने के पीछे संसद की बुद्धिमता व सोच है और अदालत इस तरह के फैसले पर बैठी नहीं रह सकती। न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के पीठ ने अपने कार्यकाल के बाद भी सांसदों और उनके परिवार के सदस्यों को पेंशन, भत्ते और अन्य यात्रा सुविधाओं के अनुदान को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान यह मौखिक टिप्पणी की।
हालांकि, पीठ ने अटॉर्नी जनरल को बुधवार को सूचित करने को कहा था कि क्या पेंशन और भत्तों को सांसदों को देने के लिए कोई तंत्र बनाया जा रहा है क्योंकि पिछले 12 सालों से यह मुद्दा केंद्र सरकार के पास लंबित है।
इससे पहले AG के के वेणुगोपाल ने प्रस्तुत किया कि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने पहले ही 2002 में पेंशन के अनुदान को बरकरार रखा था और ताजा फैसला लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि अदालत ने यह मान लिया था कि सांसदों को पेंशन देने के लिए संसद पर कोई रोक नहीं है। AG ने कहा कि कानून के तहत पेंशन शब्द के बारे में कोई विशिष्ट उल्लेख नहीं है, हालांकि सांसदों को देय वेतन और भत्ते से संबंधित कानून के तहत इसे कवर किया गया है।
गैर सरकारी संगठन लोक प्रहारी की ओर से एस एन शुक्ला ने प्रस्तुत किया कि 2006 में सभी पार्टी मीटिंग में यह तंत्र बनाने के लिए सहमति बनाई गई थी। लेकिन अब तक कुछ भी नहीं हुआ है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा याचिका को खारिज करने के बाद एनजीओ सर्वोच्च न्यायालय में आया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि सांसदों के वेतन का निर्धारण करने के लिए एक स्थायी स्वतंत्र तंत्र होना चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया है कि पूर्व विधायकों को कोई पेंशन नहीं दी जानी चाहिए और सांसदों के परिवार के सदस्यों को ट्रेन यात्रा भी नहीं होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने शुक्ला से कहा, "लोकतंत्र में, कानून निर्माताओं के रूप में, सांसदों को कुछ अधिकार और विशेषाधिकार मिलते हैं और वे कुछ सुविधा प्राप्त करते हैं। संसद में सालों की सेवा की संख्या के साथ पेंशन का गठजोड़ नहीं होना चाहिए। कल को संसद शब्द 'पेंशन' शब्द को बदल सकती है और पुरानी सेवाओं के लिए मुआवजा कह सकती है। सार्वजनिक जीवन में वे अपने जीवनकाल को सांसद बनने के लिए समर्पित करते हैं। वे एक चुनाव में हार सकते हैं और अगले चुनाव में निर्वाचित हो सकते हैं। वे चुनाव हारने के बाद भी सार्वजनिक जीवन में बने रहना जारी रखते हैं। उन्हें लोगों से मिलने और उनके साथ संपर्क में आने के लिए देश भर में जाने की जरूरत है। आप पूछ सकते हैं कि क्या सांसद स्वयं की पेंशन का निर्धारण कर सकते हैं या इसके लिए एक तंत्र होना चाहिए। यह औचित्य का सवाल है। लेकिन हमे यह नहीं तय करना है कि मामले की आदर्श स्थिति क्या होनी चाहिए। "
वहीं न्यायमूर्ति कौल ने कहा, "राजनीति में अपनी सारी जिंदगी को समर्पित करते हुए, पेंशन उनके जीवन को एक सम्मानजनक तरीके से आगे बढ़ाने के लिए एक अस्तित्व भत्ता हो सकती है।"