केरल हाई कोर्ट ने कहा, मक्कथायम क़ानून के मुताबिक़, मृतक की बेटी को न कि उसके भाई को मिलेगी उसकी स्व-अर्जित संपत्ति [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

7 March 2018 12:33 PM GMT

  • केरल हाई कोर्ट ने कहा, मक्कथायम क़ानून के मुताबिक़, मृतक की बेटी को न कि उसके भाई को मिलेगी उसकी स्व-अर्जित संपत्ति [निर्णय पढ़ें]

    केरल हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को दरकिनार करते हुए कहा कि मक्कथायम क़ानून के मुताबिक़ किसी व्यक्ति की खुद की अर्जित संपत्ति उसके मरने पर उसकी बेटियों को मिलेगी न कि उसके भाइयों को। खंडपीठ ने कहा कि बेटियों को संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का हक़ है।

    विवाद एक मृतक के तीन भाइयों के बीच सरकार द्वारा अधिग्रहीत 115 वर्ग फुट जमीन के मुआवजे को लेकर है। यह जमीन उस एक एकड़ जमीन का हिस्सा है जो तीन भाइयों ने खरीदी थी जो कि पूर्व कालीकट के थिय्या (पिछड़ी जाति के) भी रह चुके हैं। एक भाई के सिर्फ बेटियाँ ही हैं। तीनों भाइयों की मौत के बाद अन्य दो भाइयों के बेटों ने बंटवारे का एक करारनामा किया और उक्त 115 वर्गफुट जमीन एक बेटे को दे दिया। अब सरकार ने इस जमीन को अधिग्रहीत कर लिया है और जब इसके मुआवजे को बांटने की बात आई तो उप-न्यायाधीश ने कहा कि यह राशि तीनों भाइयों के कानूनी वारिसों में बराबर बंटेगी। बेटों द्वारा तैयार किए गए बंटवारे के करारनामे को उप-न्यायाधीश ने नजरअंदाज किया और शेष भाई के बेटियों को भी एक-तिहाई हिस्सा मिलने की बात कही।

    इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। एकल पीठ ने उप-न्यायाधीश के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि बंटवारे का करारनामा ही लागू होगा। इस एकल पीठ ने कहा कि यह संपत्ति तीनों भाइयों के संयुक्त परिवार की है और इस पर सह-दायिकी के रूप में सिर्फ बेटों का ही अधिकार हो सकता है। तीसरे भाई की बेटियों ने इस फैसले को चुनौती दी।

    खंडपीठ ने पाया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि तीनों भाइयों ने पैतृक संपत्ति से हुई आमदनी से यह संपत्ति खरीदी। यह पाया गया कि पारिवारिक व्यवसाय या अन्य थारवाड का कोई संयुक्त पट्टा नहीं है और इससे पता चलता है कि तीनों भाई हिंदू संयुक्त परिवार के हिस्सा हैं, ऐसा माना गया। पर तथ्य यह था कि यह संपत्ति तीनों भाइयों ने अपनी स्वतंत्र आय से हुई बचत की राशि से सम्मिलित रूप से खरीदी थी।

    न्यायमूर्ति वी चितम्बरेश ने सतीश नाइनान के साथ जो फैसला लिखा वह केलुकुट्टी एवं अन्य बनाम मम्माद एवं अन्य [1972 KLT 725(SC)] मामले के फैसले से अलग है। केलुकुट्टी मामले में यह कहा गया कि मक्कथायम उत्तराधिकार नियम के मुताबिक एक मृत व्यक्ति के अविभाजित भाई को मृतक की स्व अर्जित परिसंपत्ति प्राप्त होगी न कि उसकी पत्नी और बेटियों को।

    उपरोक्त स्थिति तभी लागू हो सकता है अगर केलु थवझी का अविभाजित भाई रह जाता है जिसके पास थारवाड संपत्ति है जबकि संकेत यह है कि हुआ इसके विपरीत। केलु एक विभाजित भाई है। हम यह फिर कह रहे हैं कि केलु और उसके भाइयों के बीच कोई आम हित नहीं था और इसलिए केलु की हिस्सेदारी उसके बेटियों को जानी चाहिए जो कि दावेदार नंबर 7 से 10 हैं।

    खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को निरस्त कर दिया और कहा कि मुआवजे की राशि तीनों भाइयों के कानूनी वारिसों में में बराबर बंटेगी जिनमें बेटियाँ भी शामिल हैं।

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