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हाई कोर्ट अधिकार पृच्छा तब तक जारी नहीं कर सकता जब तक कि अयोग्यता के बारे में वह असंदिग्ध रूप से आश्वस्त नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
6 March 2018 4:35 PM GMT
हाई कोर्ट अधिकार पृच्छा तब तक जारी नहीं कर सकता जब तक कि अयोग्यता के बारे में वह असंदिग्ध रूप से आश्वस्त नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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सुप्रीम कोर्ट ने भारती रेड्डी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में कहा है कि जब तक रिट न्यायालय यह असंदिग्ध तौर पर सुनिश्चित नहीं हो जाता कि पद पर बैठा व्यक्ति कानूनी प्रावधानों के तहत किसी सार्वजनिक पद पर बैठने के योग्य या चुनाव के योग्य नहीं है, तब तक उसे अधिकार पृच्छा जारी नहीं करनी चाहिए।

कर्नाटक हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई कि पंचायत की एक सदस्य भारती रेड्डी ने चोरी छिपे फर्जी दस्तावेज पेश किया था कि वह पिछड़ी जाति समुदाय-बी श्रेणी की है।

हाई कोर्ट ने पाया कि आवेदक को प्रमाणपत्र काफी जल्दबाजी में जारी किया गया। इस आधार पर हाई कोर्ट ने कहा कि जाति प्रमाणपत्र जारी करने के लिए अधिकारियों द्वारा जिस तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है उसमें काफी गंभीर दोष है। यह प्रमाणपत्र आवेदनकर्ता को जारी किया गया ताकि वह चुनाव लड़ सके। हाई कोर्ट ने जाति प्रमाणपत्र को रद्द नहीं किया बल्कि जाति प्रमाणन समिति पर क़ानून के अनुरूप कार्रवाई की जिम्मेदारी सौंप दी।

इस तरह, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुद्दा यह था कि जाति जांच समिति द्वारा उसके प्रमाणपत्र की जांच होने तक क्या हाई कोर्ट अधिकार पृच्छा जारी कर सकता था।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि अधिकार पृच्छा तभी जारी किया जा सकता है जब आय और जाति प्रमाणपत्र गलत हों और योग्य अधिकारी इसका सत्यापन करें।

कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इतने भर से कि जाति प्रमाणपत्र सभी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए सिर्फ पांच दिनों में जल्दबाजी में जारी किया गया, उस प्रमाणपत्र को गलत ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। पीठ ने कहा, “किसी व्यक्ति के पास किसी उचित प्राधिकरण द्वारा जारी आय और जाति प्रमाणपत्र है और यह कानूनन वैध है और यह अभी तक लागू है तो इस तरह के व्यक्ति को यह बताना कि उसने सार्वजनिक पद को हड़प लिया है और वह इस पद पर गैर कानूनी ढंग से काबिज है यह कहना उचित है”।


 
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