जज लोया मामला : सीपीआईएल ने दायर की हस्तक्षेप याचिका, उच्चाधिकारप्राप्त टीम से कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की माँग की [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network

6 March 2018 4:45 AM GMT

  • जज लोया मामला : सीपीआईएल ने दायर की हस्तक्षेप याचिका, उच्चाधिकारप्राप्त टीम से कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की माँग की [याचिका पढ़े]

    सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप याचिका दायर कर सीबीआई के विशेष जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत की जांच कोर्ट की देखरेख में एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति से कराने की मांग की।

    यह आवेदन सीपीआईएल की सचिव एडवोकेट इंदिरा जयसिंह की ओर से दायर किया गया। आवेदन में कुछ दिन पहले अंग्रेजी पत्रिका कारवाँ में प्रकाशित रिपोर्ट का हवाला दिया गया जिसमें देश के एक बहुत ही बड़े फोरेंसिक विशेषज्ञों में से एक डॉ. आरके शर्मा की राय छापी गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार डॉ. शर्मा ने जज लोया के पोस्ट मॉर्टम की रिपोर्ट की जांच की है और जज लोया के हृदयाघात से मरने की बात से इनकार किया है। डॉ. शर्मा ने तो यह कहा है कि रिपोर्ट को देखकर ऐसा लगता है कि उनके मष्तिष्क को आघात लगा और यहाँ तक कि वे उनको जहर दिए जाने की बात से भी इनकार नहीं करते।

    सीपीआईएल ने दावा किया है कि उसने जज लोया की ईसीजी रिपोर्ट और हिस्टोपैथोलोजी रिपोर्ट डॉ. उपेन्द्र कौल को भेजी है जो कि देश के बहुत ही प्रतिष्ठित कार्डियोलॉजिस्ट हैं और उनसे ये सवाल पूछे गए हैं :




    1. क्या इस व्यक्ति को उसका ईसीजी कराए जाने से एक-दो घंटा पहले भारी हृदयाघात लगा?

    2. क्या उनके कोरोनरी आर्टरीज और ह्रदय की मांसपेशी की हिस्टोपैथोलॉजी रिपोर्ट इस बात से मेल खाती है कि उनकी मौत मायोकार्डिअल इन्फ्रैक्शन या कॉरोनोरी थ्रोम्बोसिस से हुई?

    3. अगर कोई व्यक्ति मायोकार्डिअल इन्फ्रैक्शन के कारण मर गया है तो क्या उसके ड्यूरा (मस्तिष्क एवं सुषुम्ना रज्जु को ढकने वाली सबसे बाहर की झिल्लीनुमा परत), लीवर, स्प्लीन, गुर्दा, गला, श्वास नली, फेफड़े में काफी रुकावट पैदा हो सकती है? क्या यह हो सकता है, जैसा कि उसके पोस्ट मॉर्टम में कहा गया है, कि उनके इन सभी अंगों में पैदा हुई यह रुकावट उनकी मौत के समय उनको दी गई सीपीआर के कारण पैदा हुई हो?


    इसके बाद आवेदनक ने कहा कि डॉ. कौल ने पहले प्रश्न का जवाब नकारात्मक में दिया और कहा : ऐसा नहीं लगता कि ईसीजी में हाल के मायोकार्डिअल इन्फ्रैक्शन का कोई प्रमाण है। अन्य दो प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने कहा : यह “लगभग निष्कर्षतः इस सरकारी दावे को नेस्तनाबूद करता है कि जज लोया की मौत ह्रदय गति रुकने के कारण हुई”।



    आवेदन में वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण द्वारा एक अन्य मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट की राय का जिक्र भी किया गया है जो इस निष्कर्ष की पुष्टि करते हैं कि ईसीजी में हृदयाघात का किसी तरह का निशान नहीं दिखाई देता और अगर जज लोया की मौत ह्रदय गति रुकने के कारण हुई होती, तो उनके ह्रदय की मांसपेशी के कुछ हिस्से मर जाते पर इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।

    आवेदन में इसके बाद कोर्ट को ईसीजी और हिस्टोपैथी की रिपोर्ट नहीं उपलब्ध करा पाने की राज्य की विफलता की और ध्यान दिलाया गया है और कहा है : “महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोर्ट को (बिना हलफनामे की) अन्य दस्तावेजों के साथ ईसीजी रिपोर्ट और हिस्टोपैथोलोजी की रिपोर्ट नहीं देना इन परिस्थितियों को देखते हुए महत्त्वपूर्ण हो जाता है। ऐसा लगता है कि सरकार ने इन दस्तावेजों को छिपाया क्योंकि वे इस बात को जानते थे कि ये दस्तावेज सरकार के उस दावे को झुठला सकते हैं कि जज लोया की मौत ह्रदय गति रुकने के कारण हुई”।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, डीवाई चंद्रचूड़ और एएम खानविलकर की पीठ इस समय जज लोया मामले में दो याचिकाओं की सुनवाई कर रहे हैं जिनमें इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई है।

    यह मामला तब प्रकाश में आया जब कारवाँ पत्रिका ने जज लोया के रिश्तेदारों के इंटरव्यू के साथ रिपोर्ट प्रकाशित किया और कई विरोधाभासी सबूतों और वक्तव्यों के आधार पर यह बताने की कोशिश की कि जज लोया की मौत ह्रदय की गति रुकने के कारण नहीं हुई। इस रिपोर्ट में जज लोया की पत्नी शर्मिला और उनके पुत्र अनुज ने अपने जान को ख़तरा बताकर इस बारे में कुछ भी बात करने से मना कर दिया।

    जज लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ के मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अभियुक्त थे। पर जज लोया की मौत के बाद नए जज एमबी गोसावी ने शाह को तीन दिन की सुनवाई के बाद इस मामले में बरी कर दिया।


     
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