भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) विनियमन 2017 को चुनौती के मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने दिया विभाजित फैसला [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
5 March 2018 7:36 PM IST
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा 2017 में शुक्लों की वैधता और उनके अंतर्संबंधों के बारे में मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और एम सुन्दर की पीठ बहुमत से फैसला नहीं दे सकी। न्यायमूर्ति बनर्जी ने जहाँ विनियमन और शुल्क के आदेश को वैध माना वहीं न्यायूर्ति सुंदर ने इससे भिन्न मत प्रकट किया।
दूरसंचार (प्रसारण और केबल) सेवा अंतर्संबंध (एड्रेसेबल सिस्टम) विनियमन, 2017 और दूरसंचार (प्रसारण और केबल) सेवा (आठवाँ) (एड्रेसेबल सिस्टम) टैरिफ आदेश, 2017 को स्टार इंडिया और विजय टेलीविज़न ने चुनौती दी है।
2017 के विनियमन ने पे चैनल्स और फ्री टू एयर चैनल्स को एक साथ रखने पर रोक लगा दिया था। इस विनियमन ने एक ही चैनल के हाई डेफिनिशन फॉर्मेट और साधारण फॉर्मेट को एक साथ रखे जाने पर भी रोक लगा दिया था। एक अन्य प्रतिबन्ध यह था कि पे चैनल्स के बुके में कोई भी ऐसा पे चैनल नहीं होगा जिसका अधिकतम खुदरा मूल्य 19 रुपए से अधिक है। कुछ अन्य प्रतिबन्ध भी हैं जिसमें कहा गया है कि किसी भी बुके पर छूट की सीमा 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ट्राई ने ट्राई अधिनियम की धारा 11 आर 36 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए सिर्फ प्रसारण के माध्यम को ही विनियमित कर सकता है और वह इसके कंटेंट को विनियमित नहीं कर सकता। उनके कार्यक्रम/प्रसारण के कंटेंट को सिर्फ कॉपीराईट अधिनियम के द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है जिसके तहत दो भिन्न तरह के अधिकारों को स्वीकृति दी गई है – इनमें एक है कॉपीराइट और दूसरा ब्रॉडकास्ट रिप्रोडक्शन राईट (बीआरआर)। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनके टीवी चैनल्स पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों के कंटेंट ऐसे होते हैं जिसे या तो याचिकाकर्ता खुद बनाते हैं या फिर किसी तीसरे व्यक्ति से काफी बड़ी कीमत पर ये खरीदे जाते हैं और इस तरह के कंटेंट कॉपीराइट अधिनियम के तहत आते हैं।
न्यायमूर्ति सुंदर का फैसला
न्यायमूर्ति सुंदर ने ट्राई की स्थिति पर गौर किया और कहा कि यह कंटेंट को विनियमित नहीं कर सकता है और वह सिर्फ इसको दिखाने वाले माध्यम को ही विनियमित कर सकता है। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला गया कि ट्राई यह स्वीकार करता है कि वह कंटेंट को विनियमित नहीं कर सकता। अपनी बात स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा:-
अगर हम गुलाब के एक बुके को लें जिसमें लाल, सफ़ेद, पीले, बैंगनी, नीले फूल हैं और इनमें से प्रत्येक रंग ब्रॉडकास्टर का एक चैनल है, तो हर रंग के गुलाब की कीमत दूसरे से अलग होगी। यह मानते हुए कि लाल, सफ़ेद, पीले और बैंगनी गुलाब की कीमत 1 से 18 रुपए के बीच है, नीला गुलाब इतना अच्छा होता है कि हो सकता है कि उसकी कीमत 100 रुपए हो। कहने का मतलब यह कि उक्त विनियमन के तहत ट्राई को अपना बहुत ही महँगा नीला गुलाब भी 19 रुपए में ही इस बुके के तहत बेचने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
ट्राई एक ओर तो कहता है कि वह कंटेंट को विनियमित नहीं करता है पर दूसरी और वह प्रसारणकर्ताओं को एक चैनल एक बुके के अधीन एक ख़ास दर पर ही बेचने के लिए बाध्य करता है और वह इसकी कीमत पर प्रतिबन्ध भी लगाता है यह जानते हुए भी कि कंटेंट की कीमत कई बार बहुत अधिक और ट्राई द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक होती है। ...इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि आलोच्य प्रावधान प्रसारणकर्ता के कंटेंट को प्रभावित करने वाले हैं और ...यह ट्राई की सर्वविदित राय है कि उनकी इच्छा कंटेंट को विनियमित करने की नहीं है और वे ऐसा कर भी नहीं सकते हैं।
इसलिए विनियमन के आलोच्य प्रावधान जो कि कंटेंट को विनियमित करने से जुड़े हैं, ट्राई के अधिकार और उसके न्यायिक अधिकार क्षेत्र से बाहर का है इसलिए न्यायमूर्ति सुंदर ने इस प्रावधान को निरस्त कर दिया।
न्यायाधीश बनर्जी का निष्कर्ष
जहां तक कॉपीराइट अधिनियम की बात है, इसका प्रसारणकर्ता और प्रसार वितरक के बीच संबंधों से कोई लेना देना नहीं है। चैनल की कीमतों से भी उसका कोई लेना देना नहीं है जो कि एक अंतिम उपभोक्ता के रूप में प्रसारणकर्ता को चुकाता है। ये प्रावधान सिर्फ ब्रॉडकास्टर और कॉपीराइट धारकों के बीच किसी कार्यक्रम विशेष के सम्बन्धों से ही जुड़ा है जिसे बार बार दिखाया और प्रसारित किया जाता है। ब्रॉडकास्ट रिप्रोडक्शन राईट सिर्फ ब्रॉडकास्टर का राईट है जो कि कॉपीराईट अधिनियम के द्वारा संरक्षित है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह इस बात से सहमत नहीं हो सकती कि किसी बुके की कीमत की सीमा तय कर देने से ट्राई उसके कंटेंट को भी विनियमित करता है। प्रसारणकर्ता अपना चैनल चुनने के लिए स्वतंत्र है कि वे एक या ज्यादा पे चैनल ऑफर करते हैं और एक या एक से अधिक बुके। लेकिन यह कहा गया कि छूट की 15% की सीमा का निर्धारण मनमाना है और इसे निरस्त किया जा सकता है।
इस विभाजित फैसले को देखते हुए इस मामले को अगले वरिष्ठ जज के समक्ष पेश किया गया ताकि इस मामले को सुलझाने के लिए एक तीसरे जज की मदद ली जा सके।