सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक ट्रायल के लिए एक समान दिशानिर्देशों पर जवाब देने की समय सीमा तय की, अपील दाखिल करने के लिए डिजिटल समाधान की आवश्यकता जताई [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

5 March 2018 10:43 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक ट्रायल के लिए एक समान दिशानिर्देशों पर जवाब देने की समय सीमा तय की, अपील दाखिल करने के लिए डिजिटल समाधान की आवश्यकता जताई [आर्डर पढ़े]

    मार्च, 2017 में केरल में एक राजनीतिक हत्या से संबंधित आपराधिक अपीलों  की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील बसंत ने न्यायमूर्ति एसए बोबडे और एल नागेश्वर राव की सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने ट्रायल के दौरान कुछ सामान्य अपर्याप्तताओं और कमियों को इंगित किया।

     पीठ ने 2017 में इसे स्वत: संज्ञान रिट याचिका (आपराधिक) नंबर 1 के रूप में इसे परिवर्तित कर दिया और इस मामले में बसंत और वरिष्ठ वकील  सिद्धार्थ लूथरा को अमिक्स  क्यूरी के रूप में नियुक्त किया।

     न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल और सभी राज्यों / संघ शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव / प्रशासक और एडवोकेट जनरल / वरिष्ठ स्टैंडिंग काउंसिल को नोटिस जारी किए थे ताकि देश भर में एक समान सर्वोत्तम प्रथाओं को लाने के लिए आपराधिक नियमावली के प्रासंगिक नियम/ प्रैक्टिस पर संशोधन करने की आवश्यकता पर सामान्य सहमति बन सके।

    20 फरवरी को बेंच ने अधिवक्ता के परमेश्वर को एक और अमिक्स के रूप में लूथरा और बसंत की सहायता के लिए नियुक्त किया और 16 मार्च को उच्च न्यायालयों और राज्यों / संघ शासित प्रदेशों से सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिक्रिया की प्राप्ति की नई तारीख तय की और कहा कि अमिक्स को पहले ही प्रति दी जाएं।

     बेंच ने विभिन्न प्रस्तावों को सुलझाने और इस अदालत को प्रस्तुत करने के लिए मसौदा प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए सभी पार्टियों की बैठक बुलाए जाने का अनुरोध किया।

    अंतिम मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि,सभी दलों के प्रतियों के साथ, सर्वोच्च न्यायालय में 16 अप्रैल है। बेंच ने 25 अप्रैल को आगे की सुनवाई के लिए मामले को तय किया है।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने ऐसे ही मामले सुनवाई करते हुए जिसे संज्ञान मामले से अलग किया गया, कहा कि आपराधिक अपील की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए और ये सुनिश्चित करने के लिए कि सर्वोच्च न्यायालय में देरी के बिना अपील दायर की गई है,  इस पहलू के लिए मानव इंटरफेस के साथ साथ एक डिजिटल समाधान आवश्यक है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए  यह आवश्यक है कि कानूनी सहायकों को उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए कि जिनकी सजा उच्च न्यायालयों द्वारा बरकरार रखी गई है उनकी अपील की जाए।

    बेंच ने कहा कि इसी दौरान कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में प्रत्येक मामले के बारे में नवीनतम जानकारी रखने की आवश्यकता है ताकि कानूनी सहायक इसका पालन कर सकें।

    इस मामले में विभा दत्ता मखीजा अमिक्स क्यूरी हैं। बेंच ने NALSA के निदेशक डॉ. एस एस राठी को हितधारकों की नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया है जिसमें गृह मंत्रालय, पुलिस / जेल अधिकारी और ई-समिति शामिल हैं ताकि वो  एक डिजिटल समाधान तैयार कर सकें।

    इस  मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी  ।


     
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