बीमा पॉलिसी :अनुवांशिक विकार से पीड़ित लोगों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

26 Feb 2018 1:23 PM GMT

  • बीमा पॉलिसी :अनुवांशिक विकार से पीड़ित लोगों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    स्वास्थ्य बीमा का अधिकार स्वास्थ्य सेवा के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार का एक अभिन्न अंग है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में ये मान्यता प्राप्त है।” 

    “  बीमा पॉलिसी में `आनुवांशिक विकारों 'का विशिष्ट क्लॉज बहुत व्यापक, अस्पष्ट और भेदभावपूर्ण है - इसलिए ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।”  दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा 

    एक ऐतिहासिक फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उचित आनुवंशिक परीक्षण के अभाव और बुद्धिमत्ता भिन्नता के मानदंड तय किए बिना, आनुवंशिक स्वभाव या आनुवांशिक विरासत के आधार पर व्यक्तियों के विरूद्ध स्वास्थ्य बीमा में भेदभाव को असंवैधानिक बताया है।

     न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने स्पष्ट रूप से यह माना है कि स्वास्थ्य बीमा का अधिकार स्वास्थ्य सेवा के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार का एक अभिन्न अंग है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में ये मान्यता प्राप्त है।

    यह भी माना गया है कि बीमा पॉलिसी में `आनुवांशिक विकारों 'का विशिष्ट क्लॉज बहुत व्यापक, अस्पष्ट और भेदभावपूर्ण है - इसलिए ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने पाया है कि स्वास्थ्य बीमा से सभी रूपों में आनुवंशिक विकारों को बाहर करना सार्वजनिक नीति के विपरीत होगा। प्रचलित चिकित्सा स्थितियों में से कई, हृदय की स्थिति, उच्च रक्तचाप, सभी प्रकार के मधुमेह सहित जो जनसंख्या के बड़े पैमाने को प्रभावित करते हैं, को आनुवंशिक विकार के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि सभी आनुवंशिक विकारों को बाहर रखा गया तो चिकित्सा बीमा लेने का पूरा उद्देश्य परास्त हो जाएगा। "

    " आनुवंशिक विकार "का व्यापक बहिष्कार “ बीमा कंपनी और बीमाधारक के बीच केवल एक अनुबंध का मुद्दा ही नहीं है बल्कि स्वास्थय के अधिकार के व्यापक कैनवास में ये फैल जाता है।

    अनुवांशिक भेदभाव से रोकने के लिए और अनुवांशिक डेटा के संग्रह, संरक्षण और गोपनीयता की रक्षा के लिए उचित फ्रेमवर्क तैयार करने की तत्काल आवश्यकता प्रतीत होती है। बीमा कंपनियां अपने अनुबंध को उचित और सुगम कारकों पर आधारित बनाने के लिए स्वतंत्र हैं, जिन्हें मनमाना नहीं होना चाहिए और किसी भी मामले में "बहिष्कार" नहीं किया जा सकता।

    ऐसे अनुबंधों को अनुभवजन्य परीक्षण और डेटा पर आधारित होना चाहिए और केवल व्यक्तिपरक या अस्पष्ट कारकों के आधार पर नहीं किया जा सकता। कानून निर्माताओं को इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने के की जरूरत है।”

    अदालत ने बीमा नियामक विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) को बीमा अनुबंधों में इन क्लाजों को फिर से देखने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि बीमा कंपनियां आनुवंशिक विकारों से संबंधित बहिष्कार के आधार पर दावों को अस्वीकार ना करें।


     
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