सीआरपीसी की धारा 88 के तहत बॉन्ड पर जमानत देना कोर्ट के लिए बाध्यकारी नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

24 Feb 2018 9:02 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 88 के तहत बॉन्ड पर जमानत देना कोर्ट के लिए बाध्यकारी नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करने वाले या जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं हुए आरोपी को बांड लेकर जमानत पर छोड़ने के लिए कोर्ट बाध्य नहीं होता।

    न्यायमूर्ति एके सिकरी और अशोक भूषण की पीठ ने इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। यह अपील एक आरोपी ने दायर की थी जिसको निचली अदालत ने जमानत देने से मना कर दिया था।

    इस मामले का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या सीआरपीसी की धारा 88 के तहत यह कोर्ट के लिए बाध्यकारी है कि चूंकि उसको जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया था, तो वह बांड स्वीकार करके आरोपी को जमानत पर छोड़ दे। और क्या उक्त धारा के तहत जमानत नहीं देकर क्या कोर्ट ने अपने अधिकार का सही प्रयोग किया है।

    वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने याचिकाकर्ता की पैरवी करते हुए कहा कि जांच के दौरान सीबीआई के विशेष जज के समक्ष उसकी पेशी के दौरान जब उसे गिरफ्तार नहीं किया गया तो धारा 88 के तहत कोर्ट के लिए यह बाध्यकारी था कि उसके जमानत दे।

    इसके विपरीत एएसजी मनिंदर सिंह ने कहा कि हाई कोर्ट ने धारा 88 की ठीक ही व्याख्या की है। ऐसा कहा गया कि आवेदनकर्ता के खिलाफ विशेष जज ने धारा 82 और 83 के खिलाफ सम्मन और गैर-जमानती वारंट भी जारी किया था। इसलिए वह बांड भरकर जमानत का हकदार नहीं हो सकता। उन्होंने आगे कहा कि धारा 88 के तहत कोर्ट के पास विशेषाधिकार है कि वह बांड को स्वीकार कर आरोपी को जमानत दे दे पर आरोपी इसको अपना अधिकार नहीं समझ सकता।

    पीठ ने कहा कि धारा 88 किसी व्यक्ति को जमानत प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं देता है।

    पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता एक ऐसा व्यक्ति नहीं है जो कि कोर्ट में पेश हो सकता है और नहीं भी हो सकता है। उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट भी जारी हो चुका है। इसे देखते हुए उसे धारा 88 के तहत कोई लाभ नहीं मिल सकता।

    कोर्ट ने कहा, जब आरोपी को कोर्ट में पेश करने के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ, तो उसे एक स्वतंत्र एजेंट नहीं माना जा सकता कि वह चाहे तो कोर्ट में पेश हो या हो”

    कोर्ट ने निष्कर्षतः कहा कि धारा 88 के तहत प्रयुक्त शब्द “हो सकता है” कोर्ट की स्वेच्छा पर इस बात को छोड़ता है कि वह आरोपी का बांड स्वीकार करे या न करे।

    पीठ ने कहा, “...सीबीआई के विशेष जज और हाई कोर्ट का यह निर्णय कि आरोपी को धारा 88 के तहत बांड पर जमानत नहीं दी जा सकती है, में हमें कोई गड़बड़ी नहीं दिखती है। सो हमें हाई कोर्ट के इस फैसले में कहीं कोई खोट नजर नहीं रही है”


     
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