[आधार सुनवाई: 13वां दिन]-गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, कोर्ट को चाहिए कि वह आधार की वजह से विशेषकर भुखमरी के शिकार हुए लोगों को मुआवजा अवश्य दिलाए

LiveLaw News Network

23 Feb 2018 4:22 AM GMT

  • [आधार सुनवाई: 13वां दिन]-गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, कोर्ट को चाहिए कि वह आधार की वजह से विशेषकर भुखमरी के शिकार हुए लोगों को मुआवजा अवश्य दिलाए

    आधार की सुनवाई के 13वें दिन भोजनावकाश के बाद की सुनवाई में वरिष्ठ एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने याचिकाकर्ताओं की पैरवी करते हुए आधार अधिनियम की धारा 28 और 29, जो कि डाटा सुरक्षा और उनकी गोपनीयता की बात करता है, की आलोचना की।

    उन्होंने कहा, “ये मात्र आश्वासन देते हैं। फिर ज्यों ही सत्यापन विफल होता है, यह मान लिया जाता है कि धोखाधड़ी हुई है...”।

    आधार (विनियमन और अपडेट) विनियमन 2016 के विनियमन 28 में ऐसे हालातों का जिक्र किया गया है जब आधार नंबर को निष्क्रिय किया जा सकता है और विशेषकर उसका यह अनुबंध कि इस बारे में ‘प्राधिकरण (यूआईडीएआई) जैसा उचित समझेगा’, उन्होंने कहा, “यूआईडीएआई द्वारा इस विशेषाधिकार के प्रयोग में किसी भी तरह की प्रक्रियात्मक या तात्विक तर्कसंगतता नहीं है”।

    जहाँ तक आधार अधिनियम 2016 की धारा 33 की बात है, जिसमें बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय सूचनाओं को अदालत के आदेश पर या राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सार्वजनिक करने की बात है, संबंधित नागरिक की महत्त्वपूर्ण संवेदनशील सूचनाओं को सार्वजनिक किए जाने से पहले उसकी बात सुनी जाने का भी प्रावधान नहीं है”।

    उन्होंने कहा कि इस अधिनियम की धारा 7 केंद्र और राज्य सरकारों को हर तरह की सब्सिडी, लाभ या सेवाएं आधार नंबर प्राप्त करने पर ही देने का अधिकार देता है। यह धारा वास्तविक व्यक्ति को सब्सिडी, लाभ या सेवा देने की बात तक भी नहीं करता। क्या मोबाइल फोन और बैंक खाते भी इस धारा के तहत आते हैं?, सुब्रमण्यम ने पूछा।

    धारा 4(3) जो कि भौतिक या इलेक्ट्रॉनिक रूप में आधार की अनुमति देता है और जो किसी भी तरह की पहचान को साबित करने के लिए जरूरी है, उन्होंने कहा, “इसका इस तरह का सर्वव्यापी कवरेज असंवैधानिक है”।

    सुब्रमण्यम ने कहा, “बायोमेट्रिक आईडी प्रूफ के रूप में महज एक संभावना है। यूआईडीएआई जिस अलगोरिथम पर निर्भर करता है वह अप्रत्याशित है और इसे यूआईडीएआई  ने नहीं बनाया है। सत्यापन की विफलता किसी नागरिक को उसके आवश्यक जरूरतों से महरूम कर देगा। बड़े डाटा और मेटाडाटा को मिला देने से प्रोफाइलिंग का खतरा बढ़ जाएगा। बड़े डाटा को जब अन्य डाटाबेस से मिलाया जाएगा तो किसी आमंत्रण के भौगोलिक लोकेशन का भी पता लग जाएगा”।

    उन्होंने कहा, “डाटा सुरक्षा की किसी व्यापक व्यवस्था के अभाव में पूरी आबादी का डाटा इकट्ठा करना बहुत ख़तरनाक खेल है और ऐसा तात्विक और प्रक्रियात्मक तर्कसंगतता के अनुरूप ही किया जाना चाहिए”।

    सुब्रमण्यम ने कहा, “अलगोरिथम पर नियंत्रण विदेशी कंपनियों के पास है जो कि संवेदनशील बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डाटा तक पहुँच सकती हैं और उसका जैसा चाहे प्रयोग कर सकती हैं”।

    वरिष्ठ वकील ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इससे पहले पास किए गए कतिपय अंतरिम आदेशों का जिक्र किया जो कि आधार विवाद से जुड़े हैं। 23 सितम्बर 2013 को उसने आदेश दिया कि किसी व्यक्ति को आधार नहीं होने की वजह से मुशिकल नहीं आनी चाहिए इसके बावजूद कि सरकार ने ऐसा कहा है और यह कि आधार कार्ड आवश्यक जांच के बाद ही जारी किया जाएगा ताकि इसे गैरकानूनी आप्रवासियों को न जारी कर दिया जाए। 24 मार्च 2014 को एक विशेष अनुमति याचिका 2524/2014, में यह कहा गया कि आधार नहीं होने की वजह से किसी को किसी भी सेवा या सामाजिक योजनाओं के लाभ से वंचित नहीं किया जाएगा और अधिकारियों को इसी के अनुरूप अपने ऐसे किसी भी सर्कुलर या सूचना को संशोधित करने को कहा अगर उन्होंने इसे जारी किया है तो। इसी तरह के कई अन्य आदेश भी जारी किए गए। 15 अक्टूबर 2015 को पांच जजों की पीठ ने एमजीएनआरईजीए, राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना और ईपीएफ योजना को भी इसमें जोड़ दिया। यह कहा गया कि 23 सितम्बर 2013 को जारी आदेश लागू रहेगा और आधार पूरी तरह तब तक स्वैच्छिक होगा जब तक कि कोर्ट इसके बारे में अंतिम फैसला नहीं कर लेता।

    उन्होंने कहा कि अधिनयम 2016 के लागू होने के बाद सरकार और नागरिक अथॉरिटीज सुप्रीम कोर्ट के आदेश में बदलाव की याचना करें यह जरूरी हो गया ताकि आधार के बारे में जारी सर्कुलर और अधिसूचनाएं वैध बनी रहें।

    उन्होंने पीठ से कहा कि उन्हें बहिष्करण का दंश झेलने वाले नागरिकों विशेषकर भूख के कारण मौत का शिकार हुए लोगों को मुआवजा दिलाना चाहिए।

    अपनी बहस समाप्त करते हुए उन्होंने पीठ से विनती की कि आधार अधिनियम की संवैधानिकता पर सुनवाई के जारी रहने को देखते हुए पीठ को 15 दिसंबर 2017 को जारी अंतरिम आदेश के तहत बैंक खातों, मोबाइल फोन और अन्य सेवाओं को आधार से जोड़ने की अंतिम समय सीमा को 31 मार्च से आगे बढ़ा देना चाहिए।

    आधार मामले की अगली सुनवाई अब 6 मार्च को होगी जब वरिष्ठ एडवोकेट अरविंद दातर याचिकाकर्ताओं की ओर से अपनी दलील पेश करेंगे।

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