पीठ के विरोधाभासी फैसले : अब सुप्रीम कोर्ट में ‘ पुणे नगर निगम’ के फैसले को पलटने वाले दो जजों ने मामले को बड़ी बेंच के लिए CJI के पास भेजा
LiveLaw News Network
22 Feb 2018 10:20 PM IST
'हम उचित मानते हैं कि इन मामलों को माननीय मुख्य न्यायाधीश को एक उपयुक्त पीठ का गठन करने के लिए भेजा जाए और यह देखने के लिए कि हम सुनवाई के साथ आगे बढ़ सकते हैं या नहीं।' न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा
“ मामले में शामिल मुद्दों की प्रकृति के संबंध में, मुद्दों को जल्द से जल्द एक बड़ी बेंच द्वारा हल करने की आवश्यकता है", न्यायमूर्ति ए के गोयल की बेंच ने कहा।
8 फरवरी, 2018 को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस मोहन एम शांतनागौदर ने इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम शैलेंद्र (मृत) व अन्य मामले में 2: 1 बहुमत से यह निर्णय दिया था कि पुणे नगर निगम और अन्य बनाम हरकचंद मिश्रिमल सोलंकी मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ का फैसला सही नहीं था।
एक नए कदम के तहत न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा जो 3 न्यायाधीश की बेंच के अध्यक्ष थे, जिन्होंने 'पुणे नगर निगम मामले' में फैसला दिया था और न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली दूसरी पीठ ने हाल ही में एक आदेश का संज्ञान लिया था, ने इस मुद्दे को तय करने के लिए एक बड़ी पीठ का गठन करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजा है। वह न्यायिक अनुशासनहीनता है या नहीं इसका फैसला किसी बड़ी बेंच द्वारा हो।न्यायमूर्ति मिश्रा ने CJI को अनुरोध करते हुए एक और बेंच का गठन करने के लिए कहा है कि भूमि अधिग्रहण मामले पर फैसले को लागू किया जाना चाहिए या नहीं।
इंदौर विकास प्राधिकरण के फैसले में शामिल न्यायमूर्ति ए के गोयल की अध्यक्षता वाली एक अन्य पीठ ने भी CJI को यह कहा है कि 'मुद्दों को जल्द से जल्द बडी पीठ द्वारा हल करने की जरूरत है'।
न्यायमूर्ति मिश्रा द्वारा दिए गया आदेश निम्नानुसार हैं: "विशेष अनुमति याचिका (सी) सीसी 8453/ 2017, हरियाणा राज्य और अन्य बनाम मैसर्स जीडी गोयनका पर्यटन निगम सीमित और अन्य में 21.2.2018 को इस अदालत के आदेश को ध्यान में रखते हुए, जिसे इस न्यायालय के सामने रखा गया है, हम इसे उचित मानते हैं कि इन मामलों को माननीय मुख्य न्यायाधीश को उचित न्यायालय का गठन करने के लिए भेजा जाए और यह देखने के लिए कि हम सुनवाई के लिए आगे बढ़ सकते हैं या नहीं। चूंकि एक बड़ा मुद्दा शामिल है, इसलिए हम मामले को उचित मानदंडों के साथ माननीय मुख्य न्यायाधीश को सौंपने के लिए कहते हैं, क्योंकि वो कोई उचित बेंच बना सकते हैं। "
इससे पहले गुरुवार को एक आश्चर्यजनक आदेश में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की अन्य बेंच और उच्च न्यायालयों से अनुरोध किया है कि वे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वसन अधिनियम, 2013 की धारा 24 से जुडे उचित मुआवजा और पारदर्शिता और संबंधित मामलों में कोई सुनवाई या फैसला ना दें।
इस आदेश से तीन न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं, ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक अन्य 3 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम शैलेंद्र (मृत) व अन्य मामले में 2: 1 बहुमत से सुनाए गए फैसले पर रोक लगा दी है।
पीठ ने यह निर्णय दिया था कि पुणे नगर निगम और अन्य बनाम हरकचंद मिश्रिमल सोलंकी मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ का फैसला सही नहीं था। इसमें गया है कि पुराने और नए भूमि अधिग्रहण अधिनियमों के प्रावधानों के तहत राशि जमा न कराना अधिग्रहण की कोई चूक नहीं है।
न्यायमूर्ति लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ हरियाणा राज्य द्वारा दायर 29 जून 2016 के फैसले और आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रहा था, जो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा मैसर्स जी.डी. गोयंका पर्यटन निगम लिमिटेड और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य मामले में पारित किया गया था।
राज्य के वकील ने अदालत के सामने बहस करते हुए इंदौर विकास प्राधिकरण के मामले पर भरोसा किया और न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि इसमें शामिल मुद्दा उस फैसले द्वारा कवर किया गया है। लेकिन उसी समय मुकुल रोहतगी सहित कुछ वरिष्ठ वकील ने कहा कि इंदौर विकास प्राधिकरण में फैसले से लंबे वक्त तक कानून के बडे सवाल खडे हो गए हैं और भूमि अधिग्रहण के मामलों पर इसका बहुत गंभीर परिणाम होगा।
उन्होंने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि जब 3 न्यायाधीशों की एक पीठ तीन न्यायाधीशों की ही एक अन्य पीठ द्वारा दिए गए फैसले से सहमत नहीं है, तो उचित कार्रवाई के लिए इस मामले को एक बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए। कुछ फैसलों का जिक्र करते हुए उन्होंने पीठ से कहा कि तीन न्यायाधीशों की पीठ ऐसी ही पीठ के फैसले के खिलाफ आदेश नहीं दे सकती। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मामलों का निर्णय पहले ही इंदौर विकास प्राधिकरण के मामले में दिए गए फैसले के आधार पर किया गया है, वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा दी गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने कहा: "यह अंतरिम में उचित होगा और एक बड़ी बेंच के बनाने पर फैसला लंबित रहेगा , तो उच्च न्यायालयों से अनुरोध किया जाएगा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वसन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार 24 की व्याख्या या इससे संबंधित किसी भी मामले में अंतिम फैसला ना दे। सेकेट्री जनरल तत्काल इस आदेश को रजिस्ट्रार जनरल तक पहुंचाएंगे।"
मामले को 7 मार्च तक टालते हुए, बेंच ने संबंधित पीठ को भी सुनवाई को स्थगित करने का अनुरोध किया ताकि इस मामले में उठे मुद्दों का निपटारा हो सके।