जूनियर अधिकारियों द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी गई फाइल नोटिंग आरटीआई अधिनियम के तहत तीसरी पार्टी की जानकारी नहीं : दिल्ली हाई कोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

22 Feb 2018 2:37 PM GMT

  • जूनियर अधिकारियों द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी गई फाइल नोटिंग आरटीआई अधिनियम के तहत तीसरी पार्टी की जानकारी नहीं : दिल्ली हाई कोर्ट [आर्डर पढ़े]

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि जूनियर अधिकारियों द्वारा अपने वरिष्ठ अफसरों को भेजी गई फाइल नोटिंग को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 के तहत खुलासे से छूट नहीं दी गई है।

     न्यायमूर्ति विभू बाखरू  पारस नाथ सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे जिन्होंने केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमेंकर्नाटक राज्य में राष्ट्रपति शासन को लेकर आरटीआई आवेदन की  फाइल नोटिंग के बारे में जानकारी के लिए उनके अनुरोध कोखारिज कर दिया गया था।

     इस अधिनियम की धारा 8 (1) (ई)  के आधार पर जानकारी देने से इंकार किया जिसमें केस से रिश्ते को लेकर अधिकारियों द्वारा कुछ जानकारी ना देने से छूट दी जाती है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि लेकिन इसका ये अर्थ नहीं है कि अधिकारियों हर मामले में  फाइल नोटिंग से संबंधित व्यक्ति के लिए सूचना उपलब्ध करने से छूट मिल जाती है।

    कोर्ट ने दलील दी,  "यह तर्क कि अपने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उपयोग के लिए एक जूनियर अधिकारी द्वारा की गई टिप्पणियां तीसरी पार्टी की सूचना है, जिसके लिए अधिनियम की धारा 11 के अनुपालन की आवश्यकता होती है, इसे अस्वीकार किया जाता है।

     सरकार / सार्वजनिक प्राधिकरण के आधिकारिक रिकॉर्ड में दी गई नोटिंग संबंधित सरकार / सार्वजनिक प्राधिकरण की जानकारी होती है।

     सवाल यह है कि क्या जानकारी तीसरी पार्टी से जुड़ी है, वह जानकारी की प्रकृति से निर्धारित होती है और इसका स्रोत नहीं है। सरकार एक प्राकृतिक व्यक्ति नहीं है और सरकार / सार्वजनिक प्राधिकरण के आधिकारिक रिकॉर्डों में शामिल सभी जानकारियां व्यक्तियों या अन्य संस्थाओं द्वारा बनाई गई हैं (चाहे सरकार के साथ कार्यरत हैं या नहीं) । इस प्रकार ये तर्क कि किसी कर्मचारी द्वारा अपने रोजगार के दौरान उत्पन्न नोटिंग या सूचना उसकी सूचना है और इस प्रकार उसे तीसरी पार्टी से संबंधित माना जाना चाहिए, यह दोषपूर्ण है। "

    इसलिए उक्त आदेश को पलटते हुए कोर्ट ने मामले को वापस सीआईसी भेज दिया और  उसे तीन महीने की अवधि के भीतर आदेश देने के निर्देश दिए गए।


     
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