अधिकारों की समीक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए बीसीआई अपने ही आदेश पर अपीली प्राधिकरण की तरह व्यवहार नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
22 Feb 2018 5:44 PM IST
बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया की अनुशासन समिति की समीक्षा करने के अधिकार की सीमा के बारे में दुबारा जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट नेअद्वांता इंडिया लिमिटेड बनाम बीएन शिवन्ना मामले में कहा कि बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया समीक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए अपने ही आदेश पर किसी अपीली अधिकरण की तरह व्यवहार नहीं कर सकता।
राज्य बार काउंसिल की अनुशासन समिति ने एक वकील के खिलाफ शिकायत पर कार्रवाई करते हुए उसके प्रैक्टिस करने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया और बार काउंसिल के रोल्स से उसका नाम भी हटा दिया। उसने बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया में अपील की जिसने उसकी सजा को बदल दिया और और उस पर 18 महीने तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया और 25 हजार रुपए का जुर्माना भी किया। उसकी पुनर्विचार याचिका बीसीआई ने स्वीकार कर लिया और इसके पहले जारी आदेश को निरस्त कर दिया और मामले पर फिर से विचार करने को अपनी सहमति दे दी। इसकी वजह यह बताई कि राज्य अनुशासन समिति में वकील को शिकायतकर्ता से सवाल पूछने के पर्याप्त अवसर नहीं दिए गए।
शिकायतकर्ता कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी और पुनर्विचार याचिका के औचित्य पर यह कहते हुए सवाल उठाया कि पुनर्विचार के अधिकार का अवसर सीमित है। बीसीआई ने ओएन मोहिंद्रू बनाम जिला जज, दिल्ली और अन्य मामले में फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि अधिनियम के तहत बार काउंसिल की अनुशासन समिति का समीक्षा करने का अधिकार सीसीपी की धारा 114 के तहत न्यायिक अदालत को मिले समीक्षा के अधिकार से ज्यादा है।
न्यायमूर्ति एके सिकरी और अशोक भूषण की पीठ ने इस पर कहा : “बीसीआई ने जो ऊपर कहा है उसके बारे में कोई संदेह नहीं है। हालांकि, इस मामले में उसने जो किया है वह स्पष्ट रूप से टिकने वाला नहीं है”।
पीठ ने अनुशासन समिति में चली कार्यवाही के बारे में कहा कि यह मुद्दा कि शिकायतकर्ता से सवाल नहीं पूछने देना कहीं स्वाभाविक न्याय का अवसर दिए जाने या निष्पक्ष सुनवाई का मौक़ा नहीं देने का मामला तो नहीं है या फिर ऐसा तो नहीं कि राज्य बार काउंसिल ने जो किया वह सही था, बीसीआई ने इन मुद्दों पर गौर किया और अपील पर अपना फैसला देते हुए इनको रद्द कर दिया।
पीठ ने कहा, “इस तरह की स्थिति में इस मुद्दे पर दुबारा यह कहते हुए गौर करना कि प्रतिवादी को शिकायतकर्ता से पूछताछ का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया, स्पष्ट रूप से पुनर्विचार के कार्यक्षेत्र के बाहर है”।