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PNB मामले में हाई वोल्टेज सुनवाई, केंद्र ने अर्जी का विरोध किया, SC ने सुनवाई टाली

LiveLaw News Network
21 Feb 2018 8:24 AM GMT
PNB मामले में हाई वोल्टेज सुनवाई, केंद्र ने अर्जी का विरोध किया, SC ने सुनवाई टाली
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नीरव मोदी-PNB मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हाई वोल्टेज सुनवाई देखने को मिली। हालांकि केंद्र सरकार ने इस मामले में दाखिल याचिका का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 16 मार्च तक टाल दी।

बुधवार को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड की बेंच के सामने जैसे ही ये मामला आया, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि वो इस याचिका का विरोध कर रहे हैं। एजेंसिया मामले की जांच कर रही हैं और कुछ गिरफ्तारियां भी की गई हैं। बेंच ने कहा कि इस मामले में बाद में सुनवाई करेंगे।

लेकिन याचिकाकर्ता विनीत ढांडा ने कहा कि कोर्ट ने कोई नोटिस आदि जारी नहीं किया है तो AG कैसे बीच में बोल सकते हैं ?

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इसका जवाब दिया कि वो खुद आए हैं और क्या कोर्ट उनका पक्ष सुनने से इंकार कर सकता है ? किसी भी देश में ऐसा नहीं होता।

लेकिन ढांडा अपनी बात पर अडे रहे, कहा ये गंभीर मामला है और 11400 करोड की बात है। देश के किसान लोन को लेकर परेशान हैं और कोई इतना लोन लेकर देश छोड गया।

इसका जवाब न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड ने दिया, “ ये पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटीगेशन लगती है। ये आजकल फैशन बन गया है। मीडिया में खबर आती है तो अगले ही दिन कोर्ट में याचिका दाखिल हो जाती है। ये दुरुपयोग है।”

लेकिन ढांडा ने कहा कि ये पब्लिसिटी इंटरेस्ट नहीं है। लोगों की भावनाएं इससे जुडी हुई हैं।  ये अपमानजनक बात है।

लेकिन न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि ऐसे मामलों में कोर्ट को सरकार को जांच करने का वक्त देना चाहिए। याचिका की पहली प्रार्थना भी जांच की बात कह रही है।

फिर चीफ जस्टिस ने कहा, “ अदालत भाषण से प्रभावित नहीं होती। भावना नहीं कानून का कोई मुद्दा होना चाहिए।”

 बेंच ने कहा कि इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा जाएगा और अब मामले की सुनवाई 16 मार्च कोहोगी। AG बताएंगे कि वो इसका विरोध क्यों कर रहे हैं।

दरअसल  नीरव मोदी- पीएनबी में 11400 करोड रुपये की  धोखाधड़ी को लेकर दो जनहित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं। इनमें अदालत  की निगरानी में  एसआईटी जांच की मांग की गई है।

वकीलों द्वारा दाखिल याचिकाओं में दस करोड रुपये से ज्यादा के लोन पर गाइडलाइन जारी करने को कहा गया है और नीरव मोदी का जल्द प्रत्यार्पण किए जाने की मांग की गई है।


पहली याचिका वकील विनीत ढांडा ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि इस मामले में पंजाब नेशनल बैंक के वरिष्ठ अफसरों के खिलाफ FIR दर्ज कर कारवाई की जाए।  केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि नीरव मोदी का जल्द प्रत्यार्पण किया जाए। दस करोड रुपये से ऊपर के बैंक लोन के लिए गाइडलाइन बनाई जाए।

जो लोग लोन डिफाल्टर हैं उनकी संपत्ति तुरंत जब्त करने जैसे नियम बनाए जाएं। याचिका में मांग की गई है कि एक एक्सपर्ट पैनल का गठन हो जो बैंकों द्वारा 500 करोड व ज्यादा के लोन का अध्ययन कर इसे सावर्जनकि किया जाए। विजय माल्या, ललित मोदी आदि का हवाला देते हुए याचिका में ये भी कहा गया है कि बडे लोगों को राजनीतिक लोगों का सरंक्षण प्राप्त होता है इसलिए  वो पकड में नहीं आते। याचिका में कहा गया है कि इस तरह के घोटालों ने देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है

वकील मनोहर लाल शर्मा ने  भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है जिसमें न्याय के हित में सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एसआईटी की जांच की मांग की गई है।   शर्मा कहते हैं कि मामले की पूरी तरह से जांच की आवश्यकता है क्योंकि इससे सामान्य जनता  की हानि हुई है और इस तरह की एक बडी धोखाधड़ी उच्च और शक्तिशाली लोगों के शामिल हुए बिना नहीं हो सकती। जानकारी  को छिपाने के प्रयासों पर इशारा करते हुए, शर्मा ने दावा किया कि "16 जनवरी को धोखाधड़ी के बारे में जानकारी होने के बावजूद, पीएनबी ने इसे पुलिस या सीबीआई को नहीं बताया, लेकिन बैंक के रिकॉर्ड / अन्य लिखित जानकारी को वित्त मंत्री के आदेश पर बदलने में व्यस्त रहा और  29 जनवरी को सीबीआई को मुंबई की शाखा में 7 बैंक कर्मचारियों और तीन कंपनियों से 280.70 करोड़ रुपये का नुकसान दिखाया  गया।

"भारतीय बैंकों की विदेशी शाखा  द्वारा 90 दिनों के लिए जारी होने वाले एलओयू को बिना सुरक्षा और पुनर्निर्माण के ऐसे उच्च मूल्य वाले फंड को जारी करना आरबीआई वित्तीय नियम और नियमित प्रणालियों के खिलाफ है।"

“ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अभियुक्त नीरव मोदी और उनके पार्टनर नियमित रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ निकटतम  सहयोगियों की तरह यात्रा कर रहे थे और वित्तीय सुविधाओं के लिए इतनी बड़ी रकम के लिए उच्चतम वित्त मंत्रालय / राजनीतिक नेताओं की मंजूरी के बिना एक आम शाखा प्रबंधक द्वारा अनुमति नहीं दी जा सकती।  "

  याचिका में कहा गया है कि सीबीआई के ऐसे विभिन्न उदाहरण हैं, जो प्रधान मंत्री कार्यालय के सीधे नियंत्रण में है,  उसने कई मामलों में कोई कार्रवाई नहीं की और सबूत गायब किए। इसलिए इस मामले में अदालत की सख्त निगरानी में जांच की आवश्यकता है।

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