चुनाव सुधार को लेकर लोक प्रहरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : जानिए क्या है यह

LiveLaw News Network

19 Feb 2018 6:13 PM IST

  • चुनाव सुधार को लेकर लोक प्रहरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : जानिए क्या है यह

    न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और अब्दुल नज़ीर की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने शुक्रवार को एनजीओ लोक प्रहरी की याचिका पर अपना फैसला दिया। याचिका में चुनाव के लिये नामांकन करने के समय आय के स्रोत के बारे में घोषणा करने की मांग की गई थी क्योंकि इस बीच यह बात सामने आई है कि लोकसभा के 26 और राज्यसभा के 11 सदस्यों तथा 257 विधायकों की परिसंपत्ति में भारी वृद्धि हुई है और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की जांच से भी इसकी आंशिक पुष्टि हुई है।

    फैसले में पीठ ने कहा, “संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि भारत एक समाजवादी गणतंत्र है। संविधान का अनुच्छेद 38 और 39 में कहा गया है कि राज्य सामुदायिक संपत्ति का वितरण इस तरह से करेगा कि आम लोगों की भलाई हो सके और आर्थिक व्यवस्था ऐसी न हो जिसके कारण संपत्ति और उत्पादन का केंद्रीकरण हो और आम लोगों का इससे अहित हो।”

    पीठ ने कहा, “अगर किसी क़ानून निर्माता की परिसंपत्ति बढ़ती है जो कि उसके आय के ज्ञात स्रोतों से होने वाली आय से जुड़ी नहीं है, तो इसका एक ही तर्कपूर्ण निष्कर्ष निकाला जा सकता कि ‘क़ानूननिर्माता ने अपने संवैधानिक पद का दुरुपयोग किया है।”

    पीठ ने कहा, “संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 102(1) और 191(1) में प्रावधान किया है कि लाभ का कोई भी पद किसी व्यक्ति को “क़ानूननिर्माता’ बनाने के अयोग्य बना देता है”।

    जहाँ तक गलत तरीकों से अकूत धन इकट्ठा करने की बात है, पीठ ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत ऐसे क़दमों का जिक्र किया जो इसके तहत अपराध की श्रेणी में आते हैं जैसे बैंकों का एनपीए बढ़ाने वाला कमर्शियल ऋण और ज्यादा पैसे वाले सरकारी ठेके हासिल करना।

    निर्देश  

    पीठ ने याचिकाकर्ता की दलील को मानते हुए चुनाव आयोजन नियम, 1961 के नियम 4A के फॉर्म 26 को संशोधित करने के निर्देश दिए ताकि उम्मीदवारों को अपने और अपने रिश्तेदारों की आय की हलफनामे में घोषणा करने को कहा जा सके।

    हालांकि कोर्ट ने गलत सूचना देने या किसी एचयूएफ/ट्रस्ट/साझेदारी फार्म/निजी कंपनी जिसमें उम्मीद्वार या उसके आश्रितों की हिस्सेदारी होने की स्थिति में नामांकन रद्द करने के लिए निर्देश जारी करने या संबंधित क़ानून में उपयुक्त संशोधन के लिए निर्देश देने से मना कर दिया। ऐसा इस स्थापित व्यवस्था को देखते हुए किया गया कि किसी विधायिका को किसी क़ानून में संशोधन के लिए रिट नहीं जारी किया जा सकता।

    कोर्ट ने याचिका के साथ पेश सूची में जिन लोगों के नाम शामिल हैं उनकी परिसंपत्तियों में गैर-आनुपातिक वृद्धि एवं इसी तरह के अन्य क़ानून निर्माताओं की जिनकी परिसंपत्ति में 100% से अधिक की वृद्धि हुई है, की जांच के लिए एक स्थाई व्यवस्था स्थापित करने का निर्देश दिया।

    इसके अलावा कोर्ट ने याचिकाकर्ता की यह अपील भी मान ली कि उम्मीदवार, उसके आश्रितों और संबंधियों द्वारा अपनी आय के स्रोतों के बारे में नहीं बताने का मतलब यह होगा कि ऐसे उम्मीदवार के चुनाव को 1951 के अधिनियम की धारा 100(1) के तहत रद्द घोषित किया जा सकता है। यह निर्णय कृष्णमूर्ति [(2015) 3 SCC 467] फैसले पर आधारित है।


     
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