इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के लिए जरूरी है कि मुकदमों की प्रबंधन प्रणाली शुरू की जाए ताकि न्याय सक्षमता से दिलाया जा सके : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
18 Feb 2018 11:21 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुकदमों के प्रबंधन की प्रणाली शुरू करने की जरूरत पर जोर दिया ताकि व्यवसाय को आसान बनाने के लिए इसके एक जरूरी पक्ष न्याय दिलाने की व्यवस्था में सुधार लाया जा सके।
न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा, “ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस और एन्फोर्समेंट ऑफ़ कॉन्ट्रैक्ट आजकल बहुत लोकप्रिय हो गया है। व्यवसाय करने में आसानी के लिए जहाँ तक न्याय दिलाने की व्यवस्था का सवाल है, अब समय आ गया है जब मुकदमों के प्रबंधन का कार्यक्रम लागू किया जाए”।
1987 के एक मुकदमे के बारे में एक अपील दायर की गई जो कि बिक्री के एक समझौते के बारे में था। खरीदार ने यह कहते हुए मुकदमा दायर किया था कि विक्रेता उपयुक्त अथॉरिटी से अनापत्ति प्रमाणपत्र और कई और क्लीयरेंस प्राप्त प्राप्त करने में विफल रहा था। हालांकि, मामले की सुनवाई के दौरान विक्रेता ने विवादित जमीन किसी तीसरे पक्ष को बेच दिया।
सुनवाई अदालत ने यह कहते हुए खरीदार के खिलाफ फैसला दिया था कि वह बकाया राशि चुकाने में विफल रहा और यह ये दिखाता है कि वह करार को पूरा करने का इच्छुक नहीं है। हाई कोर्ट ने हालांकि, निचली अदालत के फैसले को यह कहते हुए बदल दिया कि वास्तव में, विक्रेता बिक्री के करार को पूरा नहीं करना चाहता है।
अपील पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को निपटाने में हुए इतने विलंब पर अफ़सोस जताया और कहा, “इस अपील की एक विचलित कर देने वाली बात यह है कि 31 साल बाद भी पक्षकार 1986 में हुए इस करार का क्या होगा इस बारे में वे सुनिश्चित नहीं हैं। यह अवधि काफी बड़ी है और अगर इस मामले को निपटाने में इतना वक्त लग गया तो इसकी प्रक्रिया पर पुनर्विचार का पर्याप्त कारण उपलब्ध है।”
इसके बाद उसने हाई कोर्ट के फैसले को उलट दिया और कहा, “हमारे सामने जो तथ्य पेश किया गया है उसको देखकर हम इस बात से संतुष्ट हैं कि निचली अदालत का फैसला सही था। खरीददार राकेश कुमार कलावती और अन्य को शेष राशि के भुगतान की स्थिति में नहीं था और इसके आवश्य निहितार्थ के रूप में, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वह इस करार को पूरा करने के लिए न तो तैयार है और न ही इच्छुक।”