दो लड़कों को अगवा कर हत्या करने का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के बरी करने के फैसले को निरस्त कर अभियुक्त को सजा सुनाई [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

17 Feb 2018 10:25 PM IST

  • दो लड़कों को अगवा कर हत्या करने का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के बरी करने के फैसले को निरस्त कर अभियुक्त को सजा सुनाई [आर्डर पढ़े]

    दो लड़कों को अगवा करके हत्या करने के दोषी एक आदमी को बरी करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा उसको सजा सुनाने का फैसला बरकरार रखा पर उसकी मौत सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

    निचली अदालत ने अभियुक्त महिपाल को मौत की सजा सुनाई थी। अभियुक्त के खिलाफ मुख्य साक्ष्य यह था कि उसके कमरे से सिम कार्ड बरामद हुआ था और उस लड़के का शव भी उसके अहाते में मिला था।

    निचली अदालत के जांच परिणामों को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने यह कहते हुए अभियुक्त को बरी कर दिया कि अगर अभियुक्त को संपत्ति को लेकर कोई शिकायत होती जो कि मृतक के माँ-बाप को दे दिया गया था तो दो बच्चों की हत्या से उसको क्या हासिल होता और इससे वह उस संपत्ति को हासिल नहीं कर पाता। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर उसके पूरे परिवार को भी वह मार देता तो भी उसको वह संपत्ति हासिल नहीं होती।

    हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि 11 जनवरी 2013 को अभियोजन पक्ष द्वारा फिरौती का कॉल भी वास्तविक नहीं लगता क्योंकि 9 जनवरी को ही दोनों बच्चों की हत्या हो गई थी। जहाँ तक सिम कार्ड की बात है, तो हाई कोर्ट ने कहा कि सिम कार्ड अभियुक्त का नहीं था।

    राज्य द्वारा इस फैसले के खिलाफ अपील पर न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर बनुमथी की पीठ ने कहा, “...जो प्रासंगिक है वह यह कि सिम कार्ड अभियुक्त के एक कमरे से मिला जिसके बारे में वह कुछ भी संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया। एक मोबाइल फ़ोन से किए गए कॉल के बारे में लिंक मौखिक साक्ष्य से स्थापित किया जा सकता है बशर्ते कि कोर्ट इसको स्वीकार करने के लिए तैयार हो”।

    पीठ ने कहा कि दो बच्चों की हत्या के बाद फिरौती की मांग की गई इस तथ्य से स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ता। अगवा कर लिए जाने के बाद फिरौती वसूली के लिए कॉल करना इस तरह के मामले में जो कि कोर्ट के समक्ष है, आम बात है। उपरोक्त तथ्य अभियुक्त के पक्ष में नहीं जा सकता।

    निचली अदालत द्वारा अभियुक्त को दोषी करार देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया लेकिन उसकी मौत की सजा को यह कहते हुए आजीवन कारावास में बदल दिया कि यह विरलों में विरल मामला नहीं है।


    Next Story