दिल्ली की एक अदालत ने मीडिया पर पाबंदी लगाने की आरके पचौरी की अपील खारिज की; फैसला आने तक चेतावनी के साथ रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
15 Feb 2018 10:09 AM IST
दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि मीडिया को अपनी रिपोर्टिंग से किसी मुद्दे पर ज्यादा प्रकाश डालना चाहिए न कि उसको लेकर ज्यादा विवाद उत्पन्न करना चाहिए। कोर्ट ने मीडिया पर पाबंदी लगाने के आरके पचौरी के आग्रह को खारिज कर दिया। टेरी के पूर्व प्रमुख पचौरी अपने खिलाफ यौन प्रताड़ना के आरोप झेल रहे हैं। पर कोर्ट ने कहा कि इस मामले की किसी भी तरह की रिपोर्टिंग में उनके विचारों को तरजीह दी जानी चाहिए यह समझते हुए कि मामला कोर्ट के विचाराधीन है।
अतिरिक्त जिला जज सुमित दास ने मीडिया पर इस मामले की रिपोर्टिंग पर किसी भी तरह का प्रतिबन्ध लगाने से मना कर दिया और अपने पूर्ववर्ती के गत वर्ष 25 फरवरी को इस बारे में दिए फैसले को निरस्त कर दिया। उन्होंने मीडिया को निर्देश दिया कि अगर उसने कोई इंटरव्यू प्रकाशित किया या पचौरी के खिलाफ कुछ लिखा तो उन्हें यह उप-शीर्षक देना होगा कि “उनके खिलाफ किसी भी कोर्ट में उनका दोष साबित नहीं हुआ है और यह सही नहीं हो सकता है”।
एडीजे दास ने आदेश पास किए और कहा कि प्रतिवादी 1, 2, और 3 (क्रमशः बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड, एनडीटीवी, इंडिया टुडे समूह) और अन्य मीडिया हाउसेज को मानना होगा।
पचौरी पर एक महिला के यौन उत्पीड़न का आरोप है और उन्होंने मीडिया को इस मामले की रिपोर्टिं से रोकने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था यह कहते हुए कि इससे उनकी प्रतिष्ठा को हानि पहुँच रही है।
इसकी शुरुआती रिपोर्ट 2015 में टेरी की एक महिला कर्मचारी ने दाखिल किया था।
दूसरी ओर, मीडिया हाउसेज और एक्टिविस्ट वृंदा ग्रोवर और शिकायतकर्ता ने दावा किया कि जनहित में या जिसमें जनता की दिलचस्पी है उस तरह के आलेख प्रकाशित करने का उनको अधिकार है और मीडिया और प्रेस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा करना अभिव्यक्ति की संवैधानिक आजादी पर पाबंदी लगाना होगा।
इस मामले में पिछले आदेश को निरस्त करते हुए एडीजे दास ने कहा, “निर्देश यह था कि इस मामले को कुछ इनकारी-बयान (डिस्क्लेमर) चेतावानी के साथ रिपोर्ट किया जा सकता। अब अगर किसी मीडिया को किसी निषेधाज्ञा से नियंत्रित नहीं किया जा सकता – मीडिया के खिलाफ कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता तो इसी के आधार पर, मीडिया/प्रतिवादी नंबर 1, 2 और 3 को भी कोई रिपोर्ट या किसी बात की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता...सत्य तो यह है कि अगर किसी व्यक्ति पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता है तो उसे एक विशेष तरह से बोलने के लिए बाध्य भी नहीं किया जा सकता। दोनों ही अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं।”