उत्तर प्रदेश सरकार को अग्रिम जमानत संशोधन विधेयक को राज्य विधानसभा से पास करने पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह का समय दिया
LiveLaw News Network
13 Feb 2018 9:02 AM GMT

उत्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत के प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एसए बोबडे और एल नागेश्वर राव की पीठ ने आपराधिक प्रक्रिया (यूपी) संशोधन विधेयक 2010 को राज्य विधासभा में पेश नहीं करने के लिए राज्य सरकार की खिंचाई की। राष्ट्रपति ने इस विधेयक को सितम्बर 2011 में कुछ तकनीकी आधार पर वापस कर दिया था।
कोर्ट ने राज्य सरकार को इस विधेयक पर अपनी राय स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का वक्त दिया है। पीठ ने कहा, “आप कोई न कोई समस्या खड़ी करना चाहते हैं। आप इस पर कुछ करना चाहते हैं कि नहीं...सरकार इस संशोधन विधेयक को विधानसभा से पास कर अपना संवैधानिक दायित्व पूरा क्यों नहीं करा चाहती।”
न्यायमूर्ति बोबडे ने राज्य के वकील से कहा कि वह राज्य में क़ानून विभाग के सचिव को कहे कि वह इस मामले की अगली सुनवाई के दिन कोर्ट में उपस्थित रहें ताकि वे सरकार की स्थिति स्पष्ट कर सकें।
पीठ ने केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी को कोर्ट में उपस्थित रहने की बात कहने के बाद उसके वकील यशांक अध्यारू से कहा कि वह अगली सुनवाई के दिन इस मामले पर गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें।
इस मामले के बारे में याचिका वकील संजीव भटनागर ने दायर किया है। अपनी याचिका में उन्होंने कहा है कि अग्रिम जमानत के प्रावधान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी वैसे ही लागू होने चाहिएं जैसे कि देश के अन्य हिस्सों में।
1975 में आपातकाल के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सीआरपीसी को 1976 में संशोधित किया था और राज्य में अग्रिम जमानत के प्रावधान को वापस ले लिया था।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा देश के सभी राज्यों में आपराधिक प्रक्रिया में अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू है।
लेकिन मायावती की सरकार ने 2010 में राज्य विधानसभा में क़ानून पासकर उसमें अग्रिम जमानत के प्रावधान को बहाल कर दिया था। पर कुछ बिन्दुओं पर स्पष्टीकरण मांगने के लिए राष्ट्रपति ने इसे सितम्बर 2011 में वापस कर दिया। उसके बाद से उत्तर प्रदेश सरकार विधानसभा में इस संशोधन विधेयक को पास नहीं करा पाई है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने कहा था कि राज्य में अग्रिम जमानत को बहाल किया जाना जरूरी है ताकि सत्र अदालत और इलाहाबाद हाई कोर्ट अग्रिम जमानत दे सकें।