न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा समिति ने मीटिंग की बातें सार्वजनिक की; डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट सार्वजनिक होने की बात एमईआईटीवाई ने कबूल की

LiveLaw News Network

12 Feb 2018 12:11 PM GMT

  • न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा समिति ने मीटिंग की बातें सार्वजनिक की; डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट सार्वजनिक होने की बात एमईआईटीवाई ने कबूल की

    शुरुआत में डाटा सुरक्षा के लिए बनी न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा समिति की बैठक की बातें और एजेंडा पेपर के बारे में कुछ भी बताने से इनकार करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक और सूचना तकनीक मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने आरटीआई के अंतर्गत अब बताया है कि 8 सितम्बर 2017 और 3 अक्टूबर 2017 की उसकी बैठकों में जो बातें हुईं उसके विवरण और एजेंडा पेपर सार्वजनिक हो गया था। यह आरटीआई आवेदन पारस नाथ सिंह ने दायर किया था।

    यह खुलासा उन कानूनी विशेषज्ञों और एडवोकेट्स के लिए एक बहुत बड़ी राहत है जिन्होंने हाल में समिति को लिखा था कि वह अपनी बैठकों की प्रक्रियाओं, उसके मिनट्स और ड्राफ्ट विधेयक का खुलासा करें।

    पहली बैठक की मिनट को पढने से पता चलता है कि समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा ने कहा कि आधार सकल डाटा सुरक्षा क़ानून का एक छोटा हिस्सा है। उन्होंने कहा कि समिति डाटा सुरक्षा की वृहत्तर तस्वीर पर गौर कर रही है – जो कि एक समग्र क़ानून हो सकता है। अध्यक्ष ने यह भी सुझाव दिया कि डाटा सुरक्षा के अलग-अलग पक्षों को लेकर छोटे-छोटे कार्य समूह का गठन किया जाना चाहिए :




    1. व्यापक डाटा पारिस्थितिकीय प्रणाली और अन्य उभरती हुई तकनीक – इसमें समिति के ऐसे लोग शामिल होंगे जो तकनीकी पक्षों को जानते हैं और यह रिपोर्ट का सन्दर्भ  बनेगा जो, डाटा संग्रहण के लाभ और घाटे और उसके प्रयोग की बारीकियों का अध्ययन करेगा। प्रो. रजत मूना और प्रो. ऋषिकेश कृष्णन इस कार्य समूह के सदस्य हैं।

    2.  क़ानून की परिधि और इसके तहत छूट – इसके तहत भूभागीय कार्य, डाटा लोकलाइजेशन एवं इससे छूट जिसका कि उद्योगों पर काफी ज्यादा प्रभाव होगा के जांच होगी। इस समूह के सदस्य हैं डॉ. अजय कुमार और रमा वेदश्री।

    3.  प्रोसेसिंग के आधार और पार्टियों के अधिकार एवं उनके कर्त्तव्य (उपरोक्त दोनों को मिलाकर) : बैठक की मिनट के अनुसार, यह समूह डाटा प्रोसेसिंग के अहम कानूनी पक्षों की जांच करेगा। इस समय, इसका सबसे बड़ा पक्ष है आधार पारिस्थितिकीय प्रणाली के बारे में विचार विमर्श। न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा और डॉ. अजय भूषण पांडेय इस कार्य समूह के सदस्य हैं।

    4.  प्रवर्तन – यह सूमह प्रस्तावित क़ानून के प्रवर्तन पक्ष की जांच करेगा और अरुणा सुंदरराजन और डॉ. गुलशन राय इसके सदस्य हैं।


    दूसरी बैठक की मिनट से पता चलता है कि ड्राफ्ट डाटा संरक्षण बिल को एमईआईटीवाई ने प्रचारित किया है। यह बिल टीडीएसएटी का प्रस्ताव करता है और इसको लागू करने वाले अधिकारी अभियोजन और निर्णय प्रक्रिया की जांच करेगा।

    प्रवर्तन पर कार्य समूह के सदस्य डॉ. गुलशन राय ने कहा कि वर्तमान प्रारूप विधेयक की परिधि और उसको लागू करने की क्षमता बहुत ही सीमित है और हमारे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक भलाई के लिए इसका रणनीतिक महत्त्व बहुत कम है। उन्होंने आगे कहा कि टीडीएसएटी की इस समय क्षमता काफी सीमित है और इसका निर्णय करने वाला अधिकारी आपराधिक सुनवाई नहीं कर सकता। इसलिए उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर दुबारा विचार करने की जरूरत है और विधेयक में इसको मजबूत करने की जरूरत है। उनके अनुसार, वर्तमान विधेयक के प्रारूप में सहमति के फ्रेमवर्क को छोड़ दिया गया है; सहमति का यह फ्रेमवर्क और इसको लागू करने की क्षमता और इसके अपवादों को दुबारा देखने की जरूरत है; और ऑब्जेक्ट, डिवाइस, सेन्सर्स या फेनोमेना पर गौर किया जाना चाहिए।

    प्रो. रजत मूना जो कि पहले कार्य समूह के सदस्य हैं, ने कहा कि सहमति पता करने योग्य, साबित करने योग्य, और गैर-रेपुडेबल क़ानून पे खड़ा उतड़ने वाला अवश्य ही होना चाहिए। उन्होंने प्रस्ताव किया कि “सहमति प्रबंधन” का स्वतंत्र प्रबंधन की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए ताकि इस तरह की व्यवस्था डाटा की साझेदारी को मजबूत बनाए। समिति ने “सहमति प्रबंधन” की परिकल्पना पर गौर किया और इस बात पर बातचीत की कि क्या इस तरह की व्यवस्था संगठन पर आनुपातिक लाभ की तुलना में अतिरिक्त बोझ तो नहीं डालेगा। अध्यक्ष ने तब सहमति-आधारित मॉडल और अधिकार-आधारित मॉडल के बीच अंतर को स्पष्ट किया और कहा कि इसका दायित्व इस पूरे चेन में डाटा नियंत्रक और उसको प्रोसेस करने वाले पर होना चाहिए।

    डॉ. अर्घ्य सेनगुप्ता, जो कि तीसरे कार्य समूह के हैं, ने कहा कि इस समय निजी सूचना संग्रह करने के लिए प्रयुक्त होने वाला सहमति फॉर्म “जुड़ने की सहमति” (contract of adhesion) जैसा है क्योंकि अभी यह “स्वीकार करो या छोड़ो” का ही विकल्प देता है। उन्होंने “डैशबोर्ड-आधारित सहमति कोष” की परिकल्पना को सामने रखा। डैशबोर्ड की परिकल्पना पर सदस्यों ने गौर किया कि किस इस तरह के डैशबोर्ड पर सहमति को साझा करने के लिए भी सहमति की जरूरत होगी या नहीं। आगे यह कहा गया कि क्या इस तरह की सहमति उपलब्ध कराने वाले संग्राहक द्वारा निजता का उल्लंघन होगा या नहीं। फिर इसके बाद सुझाव दिया गया कि डिजिटल लॉकर को ही डैशबोर्ड के रूप में प्रयोग किया जाए।

    समिति ने अपने दूसरी सुनवाई में अन्य बातों के अलावा सुझाव दिया कि प्रत्येक कार्य समूह एमईआईटीवाई द्वारा प्रचारित किए गए डाटा सुरक्षा विधेयक के प्रारूप पर विशेष टिप्पणी/संशोधन उपलब्ध कराएगा। उन्हें किसी अन्य संबंधित विधेयक जैसे आधार अधिनियम 2016, सूचना तकनीक अधिनियम 2002 पर भी अगर किसी परिवर्तन की जरूरत है, तो इस बारे में सुझाव देने होंगे।

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