बॉम्बे हाई कोर्ट ने की जीएसटी नेटवर्क के कामकाज की आलोचना; कहा, संसद का विशेष सत्र और जीएसटी काउंसिल के ईजीएम का कोई मतलब नहीं अगर असेसी को राहत नहीं है [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

10 Feb 2018 3:44 PM GMT

  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने की जीएसटी नेटवर्क के कामकाज की आलोचना; कहा, संसद का विशेष सत्र और जीएसटी काउंसिल के ईजीएम का कोई मतलब नहीं अगर असेसी को राहत नहीं है [आर्डर पढ़े]

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में रोबोटिक एवं ऑटोमेशन मशीन बनाने वाली कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) के कामकाज की आलोचना की।

    न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने अबिकोर एंड बेन्ज़ेल टेक्नोवेल प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त बातें कहीं।

    मामले की पृष्ठभूमि

    कम्पनी ने अपनी याचिका में कहा कि उन्हें सेंट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स एक्ट, 2017 के तहत अस्थाई पंजीकरण नंबर दिया गया था पर जीएसटीएन पर वे अपना प्रोफाइल अक्सेस नहीं कर सकते।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि प्रतिवादियों ने कर रिटर्न स्वीकार करने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम  की स्थापना की।

    पर इलेक्ट्रॉनिक वे बिल्स रूल्स अभी तक शुरू नहीं हुआ है। अपने ऑनलाइन प्रोफाइल तक नहीं पहुँच पाने के कारण वे अपना ई-वे बिल नहीं बना सकते और इसके बिना वे अपना माल कहीं नहीं ले जा सकते। और इस वजह से कंपनी का सारा काम ठप हो गया है। इसकी वजह से याचिकाकर्ता अपना टैक्स नहीं भर पा रहा है।

    कम्पनी को उपरोक्त कठिनाई की वजह से फाइनल पंजीकरण नंबर भी नहीं मिल पा रहा है और इसके अभाव में कंपनी पर ब्याज का भार बढ़ रहा है और हो सकता है कि उसे जुर्माना भी भरना पड़े। याचिकाकर्ता कंपनी और उसके ग्राहक इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा भी नहीं उठा पा रहे हैं।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि जब उसने याचिका दायर की तो उसको उसके प्रोफाइल तक जाने की अनुमति दी गई और उसे पंजीकरण नंबर दिया गया पर अब भी वह अपना टैक्स रिटर्न विशेषकर, जीएसटी3बी, नहीं भर पा रहा है और कर का भुगतान तब तक नहीं हो सकता जब तक कि यह रिटर्न न हो। यह रिटर्न 2017 से आगे तक के बिना लेट फी के स्वीकार नहीं हो रहा है।

    कोर्ट का आदेश

    पीठ ने सरकार के वकील से याचिकाकर्ता को हो रही दिक्कतों के बारे में पूछा और यह भी कि कोर्ट इस तरह की शिकायतों के बारे में क्या कर सकता है। पर मिश्रा ने इस बारे में कुछ भी कहने के लिए समय माँगा। इस पर कोर्ट ने कहा,

    “हमें नहीं लगता कि स्थिति संतोषजनक है। जीएसटी को कितना ज्यादा प्रचारित किया गया और इसे बहुत ही लोकप्रिय बताया गया। नई कर व्यवस्था के बारे में जश्न मनाते हमने किसी को नहीं देखा है लेकिन इसके बारे में हो-हल्ला जरूर सुना है...संसद का विशेष सत्र या काउंसिल की विशेष बैठक का असेसीज के लिए क्या मतलब है जब तक कि उनको अपने प्रोफाइल तक पहुँचना ही मुशिकल है। यह व्यवस्था टैक्स फ्रेंडली नहीं है हमें उम्मीद है कि जो भी इसको लागू करने और इसके प्रशासन के लिए जिम्मेदार हैं उनकी नींद टूटेगी...इस देश की छवि, प्रतिष्ठा और इज्जत को बचाने के लिए यह जरूरी है...हम उम्मीद करते हैं कि इस तरह के आवेदन विरले ही आएँगे और कोर्ट को क़ानून को लागू करवाने के लिए आगे नहीं आना पड़ेगा...”

    कोर्ट ने इसके बाद इस ओर इशारा किया कि ऐसा ही एक आवेदन इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी दायर किया गया और पोर्टल को दुबारा खोलने का आदेश दिया गया था। अगर ऐसा उस समय नहीं किया गया तो फिर यह आदेश दिया जा रहा है कि आवश्यक छानबीन के बाद आवेदनकर्ता की शिकायत पर जरूरी ध्यान दिया जाए।

    कोर्ट ने केंद्र सरकार को 16 फरवरी 2018 या इससे पहले इस बारे में हलफनामा दायर करने को कहा है।


     
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