सुप्रीम कोर्ट ने देश के हाई कोर्ट्स से कहा, सभी जिलों में बच्चों और कमजोर गवाहों की मदद करने वाली अदालतों की स्थापना पर गौर करें [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

9 Feb 2018 3:42 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने देश के हाई कोर्ट्स से कहा, सभी जिलों में बच्चों और कमजोर गवाहों की मदद करने वाली अदालतों की स्थापना पर गौर करें [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश के सभी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से आग्रह किया कि वे सभी जिलों में बच्चों की सहूलियत और कमजोर गवाहों की मदद के लिए अदालतों के गठन पर गंभीरता से विचार करें।

    न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा, “जेजे अधिनियम, प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ओफेंसेज एक्ट 2012, प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006 तथा आईपीसी और इसी तरह के अन्य कानूनों के तहत मामलों की सुनवाई बहुत ही ऊंचे दर्जे की संवेदनशीलता और पीड़ितों के प्रति हमदर्दी के साथ होनी चाहिए। कई बार ऐसा कहा जाता है कि हमारे यहाँ की अदालतों में किसी बाल अपराधी या यौन अपराध के शिकार हुए व्यक्ति के अनुभव बहुत ही दर्दनाक रहे हैं।

    “हमें उनके लिए कुछ दर्द होना चाहिए  यहाँ तक कि क़ानून के साथ लड़ रहे बाल अपराधी के प्रति भी क्योंकि वह दोषी नहीं है इस अनुमान का लाभ प्राप्त करने का वह अधिकारी है – बच्चों और कमजोर गवाहों की मददगार कोर्ट की स्थापना उनके दर्द और उनकी मुश्किलों को आसान कर सकता है। इस तरह की अदालातों का प्रयोग ऐसे मामलों के लिए हो सकता है जिसमें वयस्क महिलाएं अपराधों की शिकार हुई हैं क्योंकि हमारी अदालतों की स्थिति उनके अनुकूल नहीं होने के कारण वे भी इस व्यवस्था से काफी परेशान होती हैं।”

    कोर्ट ने उक्त बातें मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. सम्पूर्ण बेहुरा की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) एक्ट 2002 को या तो लागू नहीं किया गया है या फिर उसे बहुत ही धीमी गति से लागू किया जा रहा है। आरोपों की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्टों के लिए यह उचित होगा कि वे इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इसे बेहतर तरीके से लागू करवाएं।

    निर्देश

    कोर्ट ने सुनवाई के बाद निम्नलिखित निर्देश जारी किए :

    राष्ट्रीय और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों के काम काज का तरीका




    1. भारत सरकार और राज्य सरकारों के महिला और बाल विकास विभाग यह सुनिश्चित करें कि एनसीपीसीआर और एससीपीआर में सभी रिक्त पद भरे जाएं और वैधानिक निकायों को पर्याप्त स्टाफ समय से मुहैया कराई जाए ताकि ये संस्थान बच्चों की भलाई के लिए प्रभावी ढंग से काम कर पाएं।

    2. एनसीपीसीआर और एससीपीआरको अपने कर्तव्यों, कार्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वाह यह ध्यान में रखते हुए करना चाहिए कि संसद ने उसमें अपना विश्वास जताया है। इन वैधानिक निकायों की नौकरी चैन की नौकरी नहीं है। इन निकायों पर देश भर में बच्चों को सुधारने में बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाने की जिम्मेदारी है।


    राज्य और जिलों के बाल संरक्षण इकाइयों के काम काज




    1. राज्यस्तरीय बाल संरक्षण सोसाइटीज एवं जिलास्तरीय बाल संरक्षण इकाई को सलाह दी जाती है कि वे एनजीओ और नागरिक समाज की मदद से यह सुनिश्चित करे कि जेजे अधिनियम को संसद ने जिन उद्देश्यों के लिए बनाया था उसकी पूर्ति हो।


    बाल न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों का काम काज




    1. राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करे कि जेजेबी और सीडब्ल्यूसी में खाली पदों को शीघ्र भरा जाए और ये राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए आदर्श नियमों के तहत हों। अगर खाली पदों को भरने में देरी होती है तो इससे बच्चों पर इसका असर पड़ेगा और इस स्थिति से बचना चाहिए।

    2. जेजेबी और सीडब्ल्यूसी बैठकें नियमित रूप से होना जरूरी है ताकि किसी भी समय लंबित मामलों की संख्या कम हो और जरूरतमंद बच्चों की देखभाल हो सके और उन्हें संरक्षण मिल सके। यह एक संवैधानिक उत्तरदायित्व है।

    3. एनसीपीसीआर और एससीपीसीआर को विभिन्न मुद्दों पर जेजे अधिनियम के तहत जैसा उचित हो, समयबद्ध अध्ययन अवश्य ही करना चाहिए। इन अध्ययनों के आधार पर राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों को जरूरी कदम उठाना चाहिए।


    तकनीक का प्रयोग




    1. एमडब्ल्यूसीडी को अवश्य ही सूचना और संचार तकनीक का रचनात्मक प्रयोग करना चाहिए और ऐसा सिर्फ डाटा और सूचना संग्रहण के लिए ही नहीं होना चाहिए बल्कि जेजे अधिनियम से जुड़े अन्य मुद्दों के लिए भी इनका प्रयोग हो। इन तकनीकों को पूरी तरह से उपयोग करने से प्रशासनिक सक्षमता बढ़ेगी और इससे बच्चों की जिंदगी अच्छी होगी।


    पुलिस की भूमिका




    1. यह महत्त्वपूर्ण है कि बच्चों के खिलाफ अपराधों में पुलिस संपर्क का पहला सूत्र होती है। इसलिए यह जरूरी है कि एक सार्थक विशेष बाल पुलिस इकाई गठित की जाए। इस संदर्भ में यह जरूरी है कि इस तरह की इकाइयों के अधिकारियों के कर्तव्यों और उनकी जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया जाए।

    2. राष्ट्रीय पुलिस अकादमी और राज्य पुलिस अकादमियों को अपने पाठ्यक्रम में बाल अधिकारों को अवश्य ही नियमित रूप से जगह देनी चाहिए।


    बाल संरक्षण संस्थानों का प्रबंधन और भर्ती




    1. राज्य और केंद्र शासितप्रदेशों को यह सुझाव दिया जाता है कि बाल संरक्षण से जुड़े सभी संस्थान पंजीकृत हों ताकि बच्चे इनमें मर्यादित जीवन जी सकें।

    2. राज्य और केंद्र शासितप्रदेशों को यह सुझाव दिया जाता है कि वे सभी जिलों में बाल संरक्षण केन्द्रों के प्रबंधन में नागरिक समाज के प्रमुख लोगों को शामिल करें ताकि वे इनकी निगरानी में अपनी भूमिका अदा कर सकें।


    धन की अनुपलब्धता




    1. राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा जिस तरह से नजरअंदाज किया जाता है उसको देखकर जेजे फंड को देखकर शर्म हाती है। अगर बच्चों के कल्याण के लिए वित्तीय संसाधन नहीं उपलब्ध कराये जाते हैं तो फिर फंड के औचित्य क्या हैं।


    नालसा 30 अप्रैल 2018 से पहले इस अधिनियम पर रिपोर्ट पेश करेगा




    1. जेजे अधिनियम को लेकर डाटा और सूचनाओं को इकट्ठा करने में नालसा ने बहुत ही प्रशंसनीय काम किया है। हम नालसा से आग्रह करते हैं कि वह पूर्व में पेश रिपोर्ट की ही तरह आगे की रिपोर्ट 30 अप्रैल 2018 तक दे दे ताकि सभी नीति निर्माताओं और निर्णय लेने वालों को इसके बारे में प्लान बनाने में सुविधा हो सके।


    अधिकारियों का प्रशिक्षण और संवेदीकरण




    1. यह जरूरी है कि जेजे अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए इससे जुड़ी सभी संस्थाओं के कर्मचारियों को बाल अधिकारों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए और इस बारे में उन्हें जागरूक बनाया जाए। नालसा ने इस बारे में बहुत ही सकारात्मक कदम उठाया है और उम्मीद है कि एनसीपीसीआर और एससीपीसीआर मिलकर इसको आगे बढ़ाएंगे ताकि जेजे अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।


    स्वतः संज्ञान की कार्यवाही




    1. चूंकि बाल अधिकारों और जेजे अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों का इसमें शामिल होना जरूरी है, यह उचित होगा कि हाई कोर्ट और जेजे कमिटी राज्य में बच्चों के कल्याण के लिए अपना उत्पादक काम करते रहें। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस फैसले की एक प्रति इस अदालत के महासचिव और सभी हाई कोर्टों के रजिस्ट्रार जनरल को भेजी जाए ताकि ये सभी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के समक्ष पहुँच सके और वे इस पर स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकें”।


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