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आधार पर सुनवाई का 9वां दिन : कपिल सिबल ने कहा, अनुच्छेद 21 हमें चयन का अधिकार देता है पर आधार अधिनियम हमसे यह छीन लेता है

LiveLaw News Network
8 Feb 2018 3:15 PM GMT
आधार पर सुनवाई का 9वां दिन : कपिल सिबल ने कहा, अनुच्छेद 21 हमें चयन का अधिकार देता है पर आधार अधिनियम हमसे यह छीन लेता है
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आधार पर सुनवाई के 9वें दिन वरिष्ठ वकील कपिल सिबल ने कहा कि कई लोगों को आधार नहीं होने की वजह से वृद्धों को वृद्धाश्रमों में रजिस्ट्रेशन में कठिनाई आ रही है।

सिबल ने पूछा, “देश के कितने हिस्सों में बिजली नहीं है, वाईफाई नहीं है? ऐसे कितने स्थान हैं जहाँ मशीनें अभी तक नहीं पहुँची हैं और जहां लोग काम नहीं करते हैं? भारत जैसे देश में आधार को कैसे लागू किया जा सकता है?”

न्यायमूर्ति एके सिकरी ने कहा, “1.2 अरब भारतीयों को आधार परियोजना के तहत पंजीकृत किया जा चुका है। सिर्फ 10 करोड़ लोग ही अब बचे हैं। इसका मतलब यह है कि यह योजना जरूर काम कर रही होगी”।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा, “इस आधार पर इस अधिनियम असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता”।

 “पहचान एकमात्र प्रूफ है। हकदारी स्टेटस पर आधारित होना चाहिए न कि पहचान पर। आज ही एक रिपोर्ट छपी है कि दिल्ली में राशन की दुकानों का सत्यापन नहीं हुआ है”, सिबल ने कहा।

इस पर एएसजी तुषार मेहता ने उठकर कहा, “किसी को भी इससे बाहर नहीं रखा गया है। मेरे पास इसको साबित करने के लिए एक हलफनामा है”।

वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, “आधार अधिनियम की धारा 7 के तहत अगर किसी व्यक्ति का सत्यापन नहीं हो पाया है तो उसे अपना आधार कार्ड दिखाना होता है। धारा 4(3) आधार कार्ड को फिजिकल और इलेक्ट्रोनिक फॉर्म में मान्यता देता है। धारा 31 में डाटा में गड़बड़ी को ठीक करने का प्रावधान है। इसके बाद आधार का विनियमन 6 है जिसके तहत ऐसे निवासियों के पंजीकरण का प्रावधान है जो बायोमेट्रिक नहीं दे सकते।”

इस पर मेहता ने मंत्रिमंडलीय सचिव के 19 दिसंबर 2017 के निर्देश के बारे में बताया जिसमें कहा गया है : “सब्सिडी, लाभ और सेवाएं वैकल्पिक पहचानपत्र जैसे मतदाता पहचानपत्र, राशन कार्ड आदि दिखाने पर भी मिलेगा। जहाँ पर आधार विफल रहता है वहाँ पर उँगलियों के निशान के अलावा आयरिस स्कैन भी किया जा सकता है; इन्टरनेट कनेक्शन नहीं होने पर मोबाइल आधारित ओटीपी की मदद ली जा सकती है। पंजीकरण विनियमन 2016 के तहत विनियमन 12 है और इसका भी प्रयोग किया जा सकता है”।

 न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “इस निर्देश में इस योजना को लागू करने में आने वाली दिक्कतों का पूर्वानुमान किया गया है और इसको दूर करने की वैलापिक व्यवस्था भी की गई है”।

सिबल ने कहा, “कृपया कम से कम राशन के लिए वैकल्पिक आईडी के बारे में अंतरिम आदेश जारी कर दीजिए”।

न्यायमूर्ति सिकरी ने बीपीएल वर्ग के लोगों में इन प्रावधानों के बारे में जानकारी होने को लेकर चिंता जाहिर की। मेहता ने कहा, “आधार योजना नागरिकों को मदद पहुंचाने वाली योजना है और हम इसको लेकर सभी संभावित और वर्तमान कठिनाइयों पर गौर कर रहे हैं”।

इस परियोजना के ‘बहिष्करण’ संबंधी विशेषता की चर्चा करते हुए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा, “ 6 फरवरी 2018 को यूआईडीएआई ने कॉमन सर्विस सेंटर्स (सीएससी) डिजिटल केंद्र, जो कि केंद्र सरकार के अधीन पेंशन बांटने वाली विशेष उद्देश्य की एजेंसी है, को लिखा है कि जितनी भारी संख्या में शिकायतें आ रही हैं उसको देखते हुए सीएससी के साथ एमओयू को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा”।

न्यायमूर्ति सिकरी ने सिबल से इस बात पर सहमति जताई कि सिर्फ वैधानिक सुरक्षा ही काफी नहीं है – “वर्तमान समय में भी मेरे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। एक अंतरिम आदेश की जरूरत है”।

महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा, “अगर किसी ने पंजीकरण के लिए आवेदन भी किया है तो वो भी चलेगा भले ही उसको आधार नंबर मिला है या नहीं”।

सिबल ने कहा, “इन प्रावधानों को इस तरह व्याख्यायित नहीं किया जा सकता। वह आईडी के वैकल्पिक प्रूफ की अनुमति देता है। यहाँ तक कि धारा 4(3) भी इसकी इजाजत देता है”।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूछा, “अगर आधार व्यवस्था विफल हो जाए तो उस स्थिति में अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान है?, सिबल ने कहा, “नहीं”।

न्यायमूर्ति खानविलकर और सिकरी ने राय व्यक्त की कि अगर आधार सत्यापन विफल रहता है तो सिर्फ कार्ड का प्रूफ भी दिखाने से काम चलेगा और आधार कार्ड नहीं होने से आधार पंजीकरण के लिए आवेदन का प्रूफ पर्याप्त होगा।

सिबल ने आधार नंबर की विशेषताओं के बारे में कहा, “यह कोई भी इधर-उधर से लिया गया नंबर हो सकता है; फिजिकल और इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही फॉर्म में कार्ड स्वीकार्य है...”

 “धारा 7 को इसी संदर्भ में पढ़ने की जरूरत है। पहला है सत्यापन, दूसरा है आधार होने का सबूत, और अंतिम, आधार के लिए आवेदन करने का सबूत। तो जहाँ तक दूसरे बिंदु की बात है, तो क्या ऐसा कोई विकल्प नहीं है ताकि आधार के सत्यापन की जरूरत न पड़े?”, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूछा।

सिबल ने कहा, “हम अधिनियम की व्याख्या इस तरह से न करें कि यह एक विशेष स्थिति का समर्थन करे। इससे आगे और समस्या पैदा होगी”।

लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और सिबल ने इस बात पर सहमति जताई कि “सत्यापन समस्या की जड़ है”।

सिबल ने कहा, “विनियमन 26 भी है जिसमें हमारी सुरक्षा के उल्लंघन के परिणाम का जिक्र है। पर यह अधिनियम 2016 में आया जबकि उल्लंघन तो शुरू से ही हो रहा है”।

सिबल ने इंग्लैंड की नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स स्कीम, 2010 का जिक्र किया जो कि अधिनियम 2006 का स्थान लेगा। सिबल ने इंग्लैंड के तत्कालीन गृहमंत्री थेरेसा मे के बयान को उद्धृत किया – “यह अधिनियम नागरिकों की मर्यादा पर प्रहार करता है...यह दखलंदाजी और डराने-धमकाने जैसा है...यह किसी अच्छे काम के लिए नहीं है...सरकार आम लोगों का मालिक नहीं है...”

सिबल ने यूनाइटेड किंगडम आईडी योजना के संदर्भ में कहा, “एचएमआरसी ने 250 लाख लोगों का डाटा खो चुका है।”

सिबल ने कहा “उदाहरण के लिए, सामाजिक सुरक्षा की संख्या को ही लीजिए। वह महज एक आईडी कार्ड है। जैसे कि आपके पास एक क्रेडिट कार्ड है जो कि किसी भी सेंट्रल डाटाबेस से जुड़ा नहीं है। आप जाइए और इसका प्रयोग कीजिए। लेकिन आधार में ‘पहचान प्लस’ का जो प्रावधान है वह असंवैधानिक है”।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के एक प्रश्न के उत्तर में सिबल ने कहा, “पहचान प्लस  मेटाडाटा है। जब मैं कोई बैंक खाता खुलवाता हूँ, तो राज्य को इसकी जानकारी क्यों होनी चाहिए? जैसे कि यह कहा जाना कि किसी को अपने मोबाइल से इसलिए जुदा न किया जाए क्योंकि उसमें उसकी हिस्ट्री है; यह एक फुटप्रिंट की तरह है।”

 “धारा 3, 4, 8 और 57 इस क़ानून की मुख्य धाराएं हैं।  अगर धारा 7 नहीं हो तो इसका काम खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 12 कर सकती है। पीएमएलए के नियम भी हैं; यहाँ तक कि दूरसंचार सेक्टर ने भी अलग से आदेश जारी किए हैं। अधिनियम 2016 सिर्फ पंजीकरण, सत्यापन और धारा 57 के लिए है जो कि अन्य निकायों के लिए जगह बनाता है”।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “धारा 7 सभी सुरक्षा सेवाओं के लिए है न कि केवल खाद्य सुरक्षा के लिए। यह गैर-जरूरी नहीं है”।

 “यह अधिनियम खुद ही अन्य आईडी जैसे पासपोर्ट, पैन कार्ड, पानी का बिल या टेलीफोन कनेक्शन की अनुमति देता है। यूआईडीएआई भी इसको स्वीकार कर सकता है पर इनके द्वारा पहचान साबित करने की अनुमति नहीं दी जाती? यह कितना असंवैधानिक है?”, सिबल ने कहा।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “संवैधानिक पहचान कई तरह के हो सकते हैं – जेंडर, धार्मिक जैसे ओबीसी, साधारण आदि, लेकिन इस अधिनियम के तहत पहचान संवैधानिक पहचान नहीं है”।

सिबल ने कहा, “लेकिन अनुच्छेद 21 हमें विकल्प देता है पर आधार अधिनियम इसे मुझसे छीन लेता है। दो फैसलों में इस अदालत ने कहा है कि विकल्प का होना मर्यादा का हिस्सा है”।

चंद्रचूड़ ने कहा, “क्या यह अधिनियम किसी पहचान साबित करने के लिए नहीं किसी व्यक्ति को साबित करने के लिए है?” इस पर सिबल ने कहा, “तो क्यों न मुझे खुद को किसी भी वैकल्पिक तरीके से साबित करने दिया जाए?”

सिबल ने अंत में कहा, “आपके पास आईडी कार्ड हो सकता है। पर इसका सत्यापन एक विकल्प भर होना चाहिए। और वैकल्पिक आईडी को स्वीकार किया जाना चाहिए।”

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