एक पत्र पर कार्रवाई करते हुए हिमाचल हाई कोर्ट ने पानी, बर्फबारी में बाहर छोड़े गए दिए टट्टूओं को उपलब्ध कराया शेल्टर [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

8 Feb 2018 9:17 AM GMT

  • एक पत्र पर कार्रवाई करते हुए हिमाचल हाई कोर्ट ने पानी, बर्फबारी में बाहर छोड़े गए दिए टट्टूओं को उपलब्ध कराया शेल्टर [निर्णय पढ़ें]

    क्या शिमला के रिज क्षेत्र में बच्चों को घुमाने के लिए प्रयुक्त होने वाले लाइसेंसशुदा पालतू घोड़ों को बारिश और बर्फबारी के दौरान शेल्टर में रहने का अधिकार है?

    हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने इसका सकारात्मक जवाब दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “पशुओं के संदर्भ में जिंदगी का अर्थ सिर्फ जीवित रहना, अस्तित्व में बने रहना या लोगों के लिए उसका महत्त्वपूर्ण बने रहना नहीं है बल्कि उसके आतंरिक मूल्य, सम्मान और मर्यादा से है”।

    कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की पीठ ने निधि भल्ला के पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए उक्त बातें कहीं। शिमला निवासी भल्ला ने शहर में टट्टूओं की दुर्दशा के बारे में अपने पत्र में लिखा था कि कैसे इन्हें उन्हें बारिश और बर्फबारी में बाहर एक पोल से बांधकर और उनके देह पर प्लास्टिक की एक चादर डालकर छोड़ दिया जाता है।

    कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद शिमला नगर निगम ने रिज के नीचे एक जगह की पहचान की जहाँ पर बारिश और बर्फ गिरने के समय इन टट्टूओं को रखा जा सकता है।

    शिमला नगर निगम के आयुक्त ने कोर्ट को आश्वासन दिया था कि इस चिन्हित जगह को 28 फरवरी या इससे पहले इन पशुओं के रहने लायक बनाया जाएगा।

    पोनी राइड्स विरासत का हिसा पर इन पशुओं का भी मौलिक अधिकार है

    कोर्ट ने संविधान के तहत पशुओं के मौलिक अधिकार पर भी जोर डाला। कोर्ट ने कहा कि शिमला एक विरासत स्थल है। रिज इसकी विरासत का हिस्सा है और बच्चों के लिए पोनी राइड्स भी।

    वर्तमान में 17 लोगों को शिमला नगर निगम ने “घोड़े का लाइसेंस” दे रखा है। कोर्ट ने कहा, “(जब बारिश होती है या बर्फ गिरती है) मालिक तो अपने घरों में चले जाते हैं पर अपने घोड़ों को पलास्टिक की शीट से ढक कर उन्हें खुले में पोल से बाँध देते हैं जहाँ उनको कोई देखने वाला नहीं होता...”।

    कोर्ट ने कहा, “हमारा मानना है कि क़ानून के शासन के अधीन अविच्छेद्य अधिकार मनुष्यों की तरह पशुओं पर भी लागू होता है...न ही घोड़ों के मालिक और न ही लाइसेंस जारी करने वाला प्रशासन उनकी इस पीड़ा से अनजान बना रह सकता है जिसकी वजह से उनको इतना कष्ट उठाना पड़ता है”।

    कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 51-A की चर्चा करते हुए कहा कि एक साझी संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी न केवल हर नागरिक का है बल्कि उसे सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव दिखानी चाहिए। और राज्य का भी यही दायित्व है...”

    एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ़ इंडिया बनाम नागराजा एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए कोर्ट ने कहा, “अनुच्छेद 21 हर प्राणी और वातावरण के हरके जीव पर लागू होता है।”

    “... पोनी राइड शहर की विरासत का अभिन्न हिस्सा हो सकता है, पर प्राधिकरण पर यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई मालिक या अन्य हिस्सेदार घोड़ों पर कोई जुल्म न करे”।


     
    Next Story