निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के 5,925 पद खाली : सरकार ने लोकसभा में बताया

LiveLaw News Network

8 Feb 2018 8:28 AM GMT

  • निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के 5,925  पद खाली : सरकार ने लोकसभा में बताया

    कानून और न्याय मंत्रालय ने बुधवार को लोकसभा में बताया कि जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों के 5,925 पद खाली हैं।

    ये जवाब YSR  कांग्रेस पार्टी के चीफ व्हिप वाईवी सुब्बा रेड्डी के सवाल पर दिया गया जिसमें उन्होंने निचली अदालतों में रिक्त पदों की संख्या पूछी थी और  इन रिक्तियों को भरने के लिए केन्द्र द्वारा उठाए गए कदम के बारे में पूछा था।

    जवाब देते हुए कानून और न्याय राज्य और कारपोरेट मामलों के राज्य मंत्री पी.पी. चौधरी ने कहा, "उच्च न्यायालयों द्वारा बताई गई रिक्तियों को भरने में देरी के कुछ कारण, उपयुक्त उम्मीदवारों को ढूंढने में असमर्थता, पिछले भर्ती मामलों को चुनौती के कारण लंबित मुकदमे, उच्च न्यायालयों और राज्य लोक सेवा आयोगों के बीच समन्वय में कठिनाई का होना है।

    इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखा गया और उन बिंदूओं की सूची दी गई जिनके चलते नेशनल मिशन ऑफ जस्टिस डिलिवरी और कानून सुधारों को लागू किया जा सके और ये भी चर्चा की गई कि बैठक में विचार किया जा सकता है कि अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीशों के पात्र उम्मीदवारों की सीधी भर्ती के लिए कई स्रोतों को अनुमति देने के लिए नियमों  में कुछ लचीलापन अपनाया जाए।

     हाल ही में सभी उच्च न्यायालयों रजिस्ट्रार जनरल और  सभी राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों के विधि सचिवों के बीच हुई वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों के खाली पदों को भरने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।”

     चाैधरी  ने आगे स्पष्ट किया कि जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने का अधिकार संबंधित उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों में निहित है और केंद्र इन रिक्तियों को पूरा करने के लिए  कोई वित्तीय सहायता नहीं प्रदान करता।

    यह ध्यान देने योग्य है कि ना सिर्फ निचली अदालतों में बल्कि बल्कि देश के उच्च न्यायालयों में भी न्यायिक रिक्तियां  चिंता का विषय रहा है। हालांकि इन न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों के मंजूर पद  1097 हैं जबकि इनमें से 403 पद रिक्त हैं।

    ये रिक्तियां, लंबित मामलों के अंबार धीरे-धीरे देश की न्यायिक व्यवस्था को एक गंभीर संकट की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं।

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