जज लोया केस : दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट में दो जजों समेत 11 गवाहों से जिरह करने की अनुमति की अर्जी दाखिल की [याचिका पढ़े]
LiveLaw News Network
6 Feb 2018 10:25 AM IST
एक अभूतपूर्व कदम के तहत बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन के लिए पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने न्यायाधीश लोया की मौत के संबंध में 11 लोगों जिरह करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।
दवे ने निम्नलिखित व्यक्तियों की क्रॉस परीक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय के नियम 2013 के आदेश XI तहत आवेदन दायर किया है, :
- संजीव बर्वे, महाराष्ट्र के राज्य खुफिया विभाग के महानिदेशक / आयुक्त
- डॉ. प्रशांत बजरंग राठी, निवासीसाईं रीजेंसी, रवि नगर, नागपुर,
- निरंजन टकले, कारवां के रिपोर्टर
- श्रीकांत डी कुलकर्णी, सदस्य सचिव, महाराष्ट्र राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण
- एस.एम. मोडक, प्रिंसिपल जिला न्यायाधीश, पुणे
- विजय सी बर्डे, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे
- डॉ. पिनाक गंगाधर राव, दांडे, राम नगर, नागपुर
- अनुज बृज गोपाल लोया, बी एच लोया के बेटे
- शर्मिला बृज गोपाल लोया, बी एच लोया की पत्नी
- हरि किशन रामचंद्र लोया, बी एच लोया के पिता
- डॉ. अनुराधा बालप्रसाद बियानी, बीएच लोया की बहन
अर्जी में कहा गया है, "हालांकि इस याचिका के समूह में सीबीआई जज के रूप में मुंबई में सेवा कर रहे न्यायाधीश ब्रिजगोपाल हरकिशन लोया की दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन दु: खद व असामयिक मृत्यु के रूप में बहुत गंभीर सवाल उठाए गए हैं। प्रतिवादियों खासकर महाराष्ट्र राज्य ने इन याचिकाओं को निकाल फेंकने के लिए दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से हठ दिखाई है।
ऐसा करने के एक प्रयास में, राज्य की तरफ से राज्य खुफिया विभाग के डीजी / आयुक्त संजय बर्वे की दिनांक 23.11.2017 की रिपोर्ट पेश की गई है और इन बारह लोगों के बयान पर भरोसा किया गया है वो भी बिना शपथ पत्र पर दाखिल किए।
इस माननीय न्यायालय ने इस रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लेने की कृपा की है और इसलिए यह इस माननीय न्यायालय की कार्यवाही के रिकॉर्ड का हिस्सा है। 22.01.2018 और 02.02.2018 को सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र राज्य के लिए उपस्थित वरिष्ठ वकीलों ने इस रिपोर्ट पर व्यापक रूप से भरोसा किया है और साथ ही रिपोर्ट में दिए उन सभी लोगों के बयानों का समर्थन करते हुए इन्हें सबूत मानते हुए कहा है कि ये याचिकाएं खारिज करने योग्य हैं।”
दवे ने यह भी निवेदन किया कि राज्य खुफिया विभाग के डीजी / आयुक्त द्वारा दर्ज किए गए बयान और उनकी रिपोर्ट दबाव के तहत बनाई गई है। उन्होंने कहा, " ये गवाह वास्तव में सच्चाई नहीं कह रहे हैं और उनके बयान विरोधाभासी हैं जो अब कारवां सहित विभिन्न समाचार संगठनों के पत्रकारों द्वारा स्वतंत्र जांच के बाद सार्वजनिक तौर पर सामने आए हैं। किसी भी मामले में इस माननीय न्यायालय का सच्चाई के साथ संबंध है और ये सच्चाई राज्य द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर इस तरीके से एक पक्षीय तौर पर सामने नहीं आ सकती।
यह जरूरी और सर्वोच्च महत्व वाला है कि जिन व्यक्ति के रिकॉर्ड दर्ज किए गए हैं, न्याय के हित में याचिकाकर्ता संघ द्वारा उनसे जिरह जांच की अनुमति दी जाए।”
उन्होंने यह भी कहा कि पहली नजर में महाराष्ट्र सरकार न्यायाधीश लोया की सुरक्षा नहीं कर पाई, पहले उनकी सुरक्षा हटाकर, फिर जब वो अपने जीवन के अंतिम चरण में थे तो उनके जीवन को सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं की गई।
अब वो पूर्वनिर्धारित आचरण के चलते स्वतंत्र जांच कराने के मामूली अनुरोध का भी विरोध कर उनके कफन पर अंतिम कील लगाने का प्रयास कर रही है।