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भारत को दुनिया की शरणार्थी राजधानी नहीं बनाना चाहते : सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार [आवेदन पढ़ें]

LiveLaw News Network
31 Jan 2018 4:42 PM GMT
भारत को दुनिया की शरणार्थी राजधानी नहीं बनाना चाहते : सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार [आवेदन पढ़ें]
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केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार नहीं चाहती कि भारत दुनिया की शरणार्थी राजधानी बन जाए।

ASG तुषार मेहता ने रोहिंग्या शरणार्थियों की एक याचिका पर जवाब देते हुए दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच को बताया, "हम नहीं चाहते कि भारत दुनिया की शरणार्थी राजधानी बन जाए। दूसरे देश के लोग हमारे देश में बाढ़ की तरह आ जाएंगे।”

मेहता ने कहा कि सरकार बातचीत कर रही है और उस निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए।अब इस मामले में  में कोई आकस्मिक माहौल नहीं है और अदालत के लिए इसकी सुनवाई जरूरी नहीं है।

दरअसल मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि देश की सीमाओं पर म्यांमार के उत्पीडन से परेशान लोगों को वापस धकेला जा रहा है और सीमा सुरक्षा बल इसके लिए मिर्च स्प्रे और स्टंट गन का इस्तेमाल कर रहा है।

सरकार के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शरणार्थियों लगाए गए आरोपों का उत्तर देने के लिए समय की जरूरत है।

एक बिंदु पर मेहता ने कहा कि सरकार "संवैधानिक रूप से बाध्य" है ताकि वो रोहिंग्या के मुद्दे पर फैसला कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि "यह कोई ऐसा मामला नहीं है जिसमें हम कोई उदारता दिखा सकते है।”

 वहीं प्रशांत भूषण ने कहा कि हिंसा से छुटकारा पाने वाले शरणार्थियों का स्वागत ना करना भारत की अंतर्राष्ट्रीय और मानवीय प्रतिबद्धताओं के खिलाफ है।

उन्होंने  कहा कि भारत में शिविरों में रोहिंग्या घृणित गरीबी और परेशानी में रहते हैं। " हालात अमानवीय हैं। स्कूल या अस्पताल तक नहीं हैं।”

इस दौरान बेंच में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड  ने कहा कि  अदालत  भूषण की प्रस्तुति में मानवतावादी पहलुओं को स्वीकार करती है, लेकिन भारत के न्यायिक मानकों के तहत जो पहले से ही भारतीय मिट्टी में रह रहे शरणार्थियों पर लागू होती हैं या देश में प्रवेश करने का प्रयास करने वालों पर भी लागू होती हैं।

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने जवाब दिया,  "कोई आपकी सीमा पर आता है और कहता है कि 'मैं शरणार्थी हूं', यह तय किया जाना चाहिए कि वह शरणार्थी है या नहीं। उसे सीधे वापस नहीं भेजा जा सकता। फिर शरणार्थी निर्धारण के लिए भारत की प्रतिबद्धता क्या है। सरकार को इसमें कूटनीतिक व्यवहार करने दें, लेकिन इस पर अदालत को स्वयं फैसला भी करना चाहिए। शरणार्थियों के लिए पेश वरिष्ठ वकील अश्विनी  कुमार ने कहा कि सीमा पर "न्यूनतम मानवीय नैतिकता" रोहिंग्या मामले में दिखाई जानी चाहिए। "हम उन्हें मौत के जबड़े में वापस नहीं भेज सकते हैं। आप किसी व्यक्ति को जीवन के अधिकार से इनकार नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट जीवन के अधिकार के अंतिम संरक्षक के रूप में हस्तक्षेप करता है," कुमार ने कहा।

वहीं एनएचआरसी के वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि सीमा पर प्रवेश करने की कोशिश करने वाले शरणार्थियों से निपटने के मुद्दे को राजनयिक रूप से हल किया जाना चाहिए।

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह शरणार्थियों के बारे में मानवीय चिंता के साथ राष्ट्रीय हितों को संतुलित करना चाहता है। दरअस सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या मामले में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है |


 
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