विदेशी कानून फर्मों का भारत में प्रवेश: ए के बालाजी केस का हवाला देते हुए अरविंद दातार ने कानून के अभ्यास और परामर्श या प्रबंधन सेवाओं के बीच अंतर बताया

LiveLaw News Network

30 Jan 2018 8:45 AM GMT

  • विदेशी कानून फर्मों का भारत में प्रवेश: ए के बालाजी केस का हवाला देते हुए अरविंद दातार ने कानून के अभ्यास और परामर्श या प्रबंधन सेवाओं के बीच अंतर बताया

    5 साल पुराने  विदेशी कानून फर्म मामले में सुनवाई के दूसरे दिन ब्रिटेन की छह कानून फर्मों की तरफ से उपस्थित वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 21 फरवरी, 2012 को  ए के बालाजी बनाम  बीसीआई और अन्य दिए गए फैसले को एक हद तक छेडा नहीं जा सकता। "1961 के अधिवक्ता अधिनियम में और बीसीआई नियम में विदेशी कानून फर्मों या विदेशी वकीलों के लिए  अस्थायी अवधि के लिए भारत की यात्रा के लिए फ्लाई-इन और फ्लाई-आउट आधार पर, भारत में विदेशी कानूनों के बारे में अपने ग्राहकों को कानूनी सलाह देने के लिए या कानून की अपनी व्यवस्था और विविध अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मुद्दों पर राय देने के लिए प्रतिबंध नहीं है।”

     यह सुनकर जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित ने कहा, "क्या इसका ये मतलब है कि विदेशी वकील भारत में एक कार्यालय नहीं बना रहे हैं ? “

    हां", दातार ने उत्तर दिया।

    बेंच ने पूछा, “ इन वकीलों या फर्मों के संबंध में नियामक तंत्र क्या है ? “

    दातार ने जवाब दिया, “ कोई तंत्र नहीं है बीसीआई की भूमिका केवल नामांकन चरण के बाद शुरू होती है। "

    उन्होंने कहा, "1961 के अधिवक्ता अधिनियम की संरचना और इसके तहत बनाए गए नियम और कानून केवल अदालतों में अभ्यास पर केंद्रित हैं। 30 -40 साल पहले किसी को चेंबर अभ्यास, सीमा पार अभ्यास आदि के  बारे में नहीं पता था।

     बेंच ने पूछा, "तो आप सुझाव दे रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में शामिल विदेशी वकीलों के लिए कोई विनियामक तंत्र नहीं है।”

     वरिष्ठ वकील ने जवाब दिया, “ कोई नहीं है संविधान के अनुच्छेद 220 के तहत भी सलाहकार और राय संबंधी   सेवाएं प्रदान करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए एक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की आवश्यकता नहीं है।”   बेंच ने टिप्पणी की, "फिर मुकदमेबाजी और राय कार्य के संबंध में 2 नियामक तंत्र होने चाहिए; अगर एक नियम लागू नहीं होता है तो दूसरा होगा। "

     इसके बाद  दातार ने आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट 1995 ( 2015 मेंसंशोधित)  की धारा 2 (1) (ई) और 2 (1) (एफ) में सुधार के रूप में 'अदालत' और 'अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता' की परिभाषा पर बेंच का ध्यान आकर्षित किया। 'अदालत' के संबंध में उन्होंने दलील दी, "इससे पहले किसी भी प्रकार के मध्यस्थता के संबंध में पक्षकारों को जिला अदालत से संपर्क करने की आवश्यकता थी। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के मामलों में उच्च न्यायालय का सहारा लिया जाना चाहिए। "

    'अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता' की परिभाषा के संदर्भ में और 'विवाद के पदार्थों पर लागू नियमों' पर 1996 के अधिनियम 28 पर दातार ने कहा, "अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता यह है कि जहां कम से कम एक पार्टी भारत की निवासी नहीं है और जहां पार्टियों को इस तरह के कानून द्वारा शासित किया जाता है, जैसा कि उन्होंने सहमति व्यक्त की है। "

    “ ओएनजीसी बनाम रिलायंस के मामले की तरह ?"बेंच से पूछा।

     "हां," दातार  ने जवाब दिया।

    बेंच ने पूछा, "लेकिन अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के मामलों में भी पार्टी एक भारतीय वकील चुन सकती है। क्या मध्यस्थ  किसी विदेशी वकील को अनुमति नहीं देने के अपने अधिकारों के भीतर हो सकता है ?  "

     "यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चौंकाने वाला होगा" दातार ने उत्तर दिया।

    बेंच ने कहा, “ इसलिए 1961 के अधिवक्ता अधिनियम की धारा 30 के प्रावधान  लागू नहीं होंगे।”

    बेंच ने पूछा, “ क्या आप अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के लिए अपनी बहस को सीमित कर रहे हैं? और आप ऐसे मामलों को शामिल कर रहे हैं जहां भारतीय कानून, प्रक्रियात्मक या मूल, लागू नहीं होता है ?”

    “हाँ", दातार से उत्तर दिया।

    बेंच ने आगे पूछा, “ इसलिए अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता जो भारतीय कानून द्वारा शासित होने चाहिए, वे अधिवक्ता अधिनियम के चारों कोनों में आने चाहिएं या आप कह रहे हैं कि ऐसे मामलों में भी एक अंग्रेज वकील पेश हो सकता है ? “

     दातार ने सकारात्मक जवाब देते हुए दलीलें जारी रखी और दो बिंदुओं को तय करने के लिए बेंच से अनुरोध किया: "एक, कानून के पेशे का अभ्यास करने के लिए वाक्यांश के दायरे को निर्धारित करने के लिए, जैसाकि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 29 में इस्तेमाल किया गया; और दूसरा,

    1 961 के अधिनियम की धारा 30 में 'अभ्यास करने का अधिकार के रूप में हकदार' वाक्यांश की व्याख्या करने के लिए।” बाद के संबंध में दातार ने कहा, "क्या धारा 30 सही में एक प्रतिरक्षा या विशेषाधिकार प्रदान करता है? संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत अधिकार की तरह एक प्रतिरक्षा की प्रकृति में है मुझे लगता है कि धारा 30 'अधिवक्ताओं' को एक विशेषाधिकार देती है, जिसे 'अधिवक्ताओं' के रूप में पंजीकृत नहीं होने वाले लोगों के लिए अक्षमता  के रूप में देखा नहीं जा सकता।”

    उन्होंने जारी रखा, "मध्यस्थ न्यायाधिकरण यह नहीं कह सकता, 'आप, मि. स्मिथ, एक नामांकित' वकील 'नहीं हैं और इसलिए पेश  नहीं हो सकते।”

     बेंच ने टिप्पणी की,” धारा 29 का कहना है कि कानून के पेशे का अभ्यास करने के लिए केवल एक ही वर्ग का व्यक्ति होगा जबकि अभ्यास की प्रकृति के रूप में कोई योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। इसकी सामान्य भाषा को ध्यान में रखते हुए, यहां तक ​​कि 'फ्लाई-इन और फ्लाई-आउट आधार' को शामिल किया जाना चाहिए।”

    इसके बाद ये चर्चा सुप्रीम कोर्ट के   'अभ्यास' के अर्थ पर फैसले पर हुई। दातार ने अश्विनीकुमार घोष और अन्य बनाम  अरबिंदा बोस व अन्य (1952) में 'अभ्यास' की व्याख्या के साथ शुरुआत की।

    "संविधान के अनुच्छेद 124 (7) के तहत सुप्रीम कोर्ट का सेवानिवृत्त जज भले ही कार्य ना कर सकता हों लेकिन  वह राय लिख सकता है। यह भी अभ्यास है, "बेंच ने टिप्पणी की और इसके बाद बेंच ने वरिष्ठ वकील

    प्रवीण सी शाह बनाम के ए मोहम्मद अली (2001) और आर के आनंद बनाम रजिस्ट्रार, दिल्ली उच्च न्यायालय (2009) के फैसले के पढने का  निर्देश दिया कि जिनमे अब तक कानून के पेशे के अभ्यास पर चर्चा की गई है।

    बेंच ने प्रवीण सी शाह में फैसले के हिस्से को पढ़ने की आवश्यकता जताई जहां यह देखा गया कि “ पेशेवर कर्तव्यों के निर्वहन में उनके द्वारा अभ्यास वकील का अधिकार है। अदालतों में पेश होने के अलावा ग्राहकों के साथ परामर्श किया जा सकता है, वह अपनी कानूनी राय भी दे सकता है।  वह उपकरण, याचिकाओं, शपथ पत्रों या अन्य दस्तावेजों का मसौदा तैयार कर सकता है, कानूनी चर्चाओं से जुड़े किसी भी सम्मेलन में भाग ले सकता है। नियम 11 ( केरल उच्च न्यायालय द्वारा तैयार किए गए अधिवक्ता

    अधिनियम की धारा 34 (1) ) में अदालत के अंदर उनके प्रदर्शन को छोड़कर अपने अभ्यास के दौरान एक वकील द्वारा किए गए सभी कृत्यों से बाहर रखा गया है। "

    हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज द्वारा राय के देने के संबंध में बेंच ने दातार से पूछा,  "फिर भी अधिवक्ता अधिनियम की धारा 30 के नकारात्मक पहलू को स्वचालित रूप से लागू किया जाता है। "

      इसके बाद ने दातार ने अधिवक्ता अधिनियम की धारा 2 (1) के खंड (ए), (के) और (एन) में 'अधिवक्ता', 'रोल' और 'राज्य रोल' की परिभाषाओं का उल्लेख किया। उन्होंने  राज्य बार काउंसिलों द्वारा अधिवक्ताओं के रोल के रखरखाव से निपटने के लिए धारा 17 का उल्लेख किया।

     इसके अलावा उन्होंने अनुभाग 16 को 'वरिष्ठ अधिवक्ताओं' और 'अन्य अधिवक्ताओं' को 'अधिवक्ताओं' के दो वर्गों के रूप में दर्शाया जैसा कि धारा 2 के उपसंहार में दिया गया है।

     अंत में अधिवक्ता अधिनियम की धारा 33 के संबंध में 'केवल वकालत करने के लिए हकदार' पर दातार ने कहा, "कृपया 'अभ्यास' को अदालतों में पेश होने के संदर्भ में  पढ़ें।”

     इस बिंदु पर बेंच ने एक सवाल किया: "क्या ऐसा है कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण के सामने उपस्थिति 'अभ्यास' नहीं है?"

    वरिष्ठ वकील ने कहा,  "यह है। धारा 29, 30 और 33 न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर लागू होती हैं, जिनमें मध्यस्थ न्यायाधिकरण भी शामिल हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि इसमें एक वकील के रूप में नामांकित ना होने वाले व्यक्तियों को शामिल नहीं किया गया है।”

    उन्होंने जारी रखा, "यदि धारा 30 की सख्त व्याख्या दी जाती है  तो कोई भी चार्टर्ड एकाउंटेंट कानून के संबंध में कुछ कार्य नहीं कर सकता।

    बेंच ने कहा "आप इसे स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं कि 'कानून के पेशे का अभ्यास' का अर्थ है अदालत में कामकाज पर कार्रवाई और याचिका किसी वकील का एकाधिकार है। राय देने पर हम अलग से विचार कर सकते हैं।

    दातार ने कहा, ऐसी ‘कार्रवाई और याचिका ' भी मध्यस्थ न्यायाधिकरण तक फैल जाएगी  क्योंकि 'अधिनियम' में बहस और 'विनती करना' मसौदा है।”

     "इसलिए मध्यस्थ न्यायाधिकरण से पहले एक केस-टू-केस के आधार पर अनुमति दी जानी चाहिए," बेंच ने कहा।

    बॉम्बे उच्च न्यायालय का फैसला

      दातार ने ए के बालाजी बनाम बीसीआई में  फैसले के एक अनुच्छेद को पढ़ा, जिसमें लॉयर्स कलेक्टिव बनाम बीसीआई और अन्य  में 2009 के बॉम्बे हाईकोर्ट केफैसले पर चर्चा करते हुए कहा, “ जैसा कि ऊपर देखा गया है, बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने मामले का तथ्य यह था कि उत्तरदाता यूएस / यूके में कानून के पेशे का अभ्यास करने वाली विदेशी कानून फर्मों ने भारत में अपना संपर्क कार्यालय खोलने और सभी विवादित और गैर-विवादित मामलों में किसी अन्य व्यक्ति को कानूनी सहायता देने की अनुमति मांगी थी। इसलिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सही तरीके से यह माना था कि विदेशी कानून फर्म द्वारा भारत में संपर्क कार्यालय स्थापित करना और सभी रूपों में कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इस तरह की गतिविधियां अधिवक्ता अधिनियम और भारत के बार काउंसिल के नियमों के प्रावधानों के विरोध में हैं। हम इस पहलू पर बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उठाए गए विचार से अलग नहीं हैं।”

    राय के रूप में गैर विवादित मामलों के विशिष्ट चरित्र पर बल देते हुए उन्होंने निम्नलिखित पैराग्राफ को पढ़ा- "हालांकि, इस न्यायालय के सामने  विचार करने वाला मुद्दा यह है कि क्या कोई विदेशी कानून फर्म  भारत में किसी भी संपर्क कार्यालय की स्थापना के बिना भारत में विदेशी कानूनों पर भारत में अपने ग्राहकों को कानूनी सलाह देने के उद्देश्य से अधिवक्ता

     अधिनियम के प्रावधानों के तहत निषिद्ध है ? दूसरे शब्दों में, यह प्रश्न यहां है, क्या विदेशी कानून पर अपने ग्राहक को सलाह देने के लिए एक अस्थायी अवधि के लिए भारत आने वाले किसी विदेशी वकील को अधिवक्ता अधिनियम के प्रावधानों के तहत बाध्य किया जा सकता है ?  इस मुद्दे को न तो उठाया गया और न ही उक्त मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने उत्तर दिया।”  "भारतीय वकील अमेरिका में भारतीय कानून का अभ्यास कर सकते हैं ? " बेंच  ने पूछा।

    दातार ने कहा,  "हाँ, लेकिन अदालतों में नहीं।”

    इस संबंध में अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील राजीव दत्ता ने न्यूयॉर्क के कंट्री लॉयर्स एसोसिएशन  (Roel) [3 NY2d 224] के अमेरिकी मामले का हवाला दिया जिसमें मैक्सिकन कानून के अनुसार मेक्सिको में तलाक पाने पर पूरी तरह सलाह दी गई थी। न्यूयॉर्क में मैक्सिकन वकील की राय को कानून का अनधिकृत व्यवहार माना जाता था।

    बेंच ने पूछा, "क्या कोई मिक्स हो सकता है और कह सकता है कि वे कानून का अभ्यास कर रहे हैं और वे परामर्श / समर्थन या प्रबंधन सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।”

    दातार ने उत्तर दिया, "कोई भी भारत में एक पेशेवर के रूप में कानून के किसी विशेष पहलू की खोज करने के लिए आ सकता है और शैक्षिक तौर पर नहीं।  फिर एक ग्राहक को सलाह देने के लिए अपने देश में वापस जा सकता है। यह अभ्यास नहीं होगा, " बेंच ने इस सबमिशन पर उनसे सहमति जताई।

    बेंच ने टिप्पणी की, ‘'प्रैक्टिस' मतलब दोहराए जाने वाला, निरंतर कार्य करना है, और एक अकेले कार्य को अधिनियम के रूप में नहीं समझा जाएगा और 'फ्लाई इन एंड फ्लाई आउट' का मतलब नियमित रूप से आना जाना नहीं हो सकता।”

    दातार ने कहा, “ हां, जैसे जब एक प्रॉपर्टी डीलर घर बेचता है, तो इसे 'व्यापारिक आय' के रूप में माना जाता है लेकिन अगर मैं अपना घर बेचता हूं, तो यह 'कैपिटल गेन' होगा।”

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