जनता में आत्मविश्वास कायम करना पुलिस का कर्तव्य, जहाँ पुलिस पर आरोप लगते हैं वहाँ वह कार्रवाई में कोताही नहीं बरते : छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
29 Jan 2018 7:52 PM IST
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हाल में पुलिस को चेतावनी दी और कहा कि जिन मामलों में पुलिस वालों पर आरोप लगे हैं उन मामलों में कार्रवाई करने में उन्हें कोताही नहीं बरतनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि व्यवस्था में आम लोगों का विश्वास कायम करने की जिम्मेदारी उन्हीं पर है।
न्यायमूर्ति थोट्टाथिल बी राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति शरद कुमार गुप्ता ने कहा, “...पुलिस को यह सुनिश्चित करना है कि पुलिस व्यवस्था में जनता का विश्वास बना रहे और जिन मामलों में पुलिस वालों पर आरोप लग रहे हैं उन मामलों की जांच में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। सिर्फ एफआईआर दर्ज करने और उस पर क़ानून के अनुरूप आगे की कार्रवाई करने से ही उस व्यक्ति के अधिकारों या विशेषाधिकारों का हनन नहीं हो जाता जिसके खिलाफ आरोप लगाए गए हैं।”
कोर्ट बबिता नामक एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसने आरोप लगाया था कि एक पुलिस वाले की वजह से उसकी बेटी ने आत्महत्या की। अब इस महिला ने इस मामले की विशेष जांच (एसआईटी) दल द्वारा जांच कराने की मांग की है। थाना प्रभारी (एसएचओ) ने इस याचिका को चुनौती दी और कहा कि इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने और आगे की जांच की जरूरत नहीं है।
इससे पहले एकल जज ने उसकी मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि बबिता को इसके लिए सीआरपीसी की धारा 200 के तहत उपचार उपलब्ध है। अब इस आदेश को चुनौती दी गई है।
खंडपीठ ने हालांकि इस बात पर गौर किया कि अधिकारियों ने अभी तक सीआरपीसी की धारा 174 को लागू नहीं किया है जिसके तहत पुलिस को आत्महत्या की जानकारी नजदीक के कार्यपालक मजिस्ट्रेट को देनी चाहिए जो बाद में इसकी जांच करता।
कोर्ट ने कहा, “मौत के कारण का पता लगाने के लिए इस तरह की जांच को, जैसा कि पुलिस ने किया है, कार्यपालक मजिस्ट्रेट जांच नहीं कह सकता। वह अपने आप में कोई जांच भी नहीं है। अगर किसी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलती है तो यह पुलिस की ड्यूटी है कि वह एफआईआर दर्ज करे और क़ानून के प्रावधानों के अनुरूप इसकी जांच शुरू कर दे।”
इसलिए कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और एसएचओ को निर्देश दिया कि वह बबिता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करे और इसकी जांच करे।