Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

जाति भेदभाव के झूठे मामले लोगों की अखंडता के लिए उतने ही नुकसानदेह जितने असली मामले : दिल्ली हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
28 Jan 2018 12:19 PM GMT
जाति भेदभाव के झूठे मामले लोगों की अखंडता के लिए उतने ही नुकसानदेह जितने असली मामले : दिल्ली हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
x

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में जाति से भेदभाव के झूठे मामलों के खिलाफ कुछ कडी टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने  कहा कि “ इस आधार पर शत्रुतापूर्ण भेदभाव के कृत्यों के रूप में इस देश के लोगों की अखंडता के लिए समान रूप से विभाजनकारी और हानिकारक" है।

दरअसल जस्टिस विभू बाखरू  इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे जिसमें अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग की बैठकों को लेकर चुनौती दी गई थी। आयोग ने  आईओसीएल को एक आवंटन को बहाल करने का निर्देश दिया था।

आयोग ने अनुमान लगाया था कि अनुसूचित जनजाति के आवंटी को परेशान करने के उद्देश्य से डीलरशिप को रद्द कर दिया गया था और आईओसीएल को चेतावनी दी थी कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

 हालांकि न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित अभ्यर्थी को किसी भी शत्रुतापूर्ण कारवाई के अधीन नहीं रखा गया था। इसके बावजूद आदेश में कहा गया था, "यह पम्प अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्ति को आवंटित किया गया है और वह आवेदक की संपत्ति में काम कर रहा है। ST

वर्ग के आवंटियों से पंप को वापस लेने का प्रयास तेल कंपनी के खिलाफ संदेह उत्पन्न करता है।”

इस टिप्पणी में कहा गया,"ये आरोप किसी भी आधार के बिना और बिना दिमाग लगाए किया गया।”

बेंच ने  कहा, "वर्तमान मामले में आयोग के सामने दूर दूर तक ऐसी सामग्री नहीं थी जिससे पता चले कि अनुसूचित जाति से संबंधित व्यक्ति को अधिकारों या सुरक्षा उपायों से वंचित किया गया है। प्रतिवादी 2 द्वारा दिया गया ज्ञापन  केवल आईओसीएल द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में उनकी शिकायत को स्पष्ट करता है, जिसे उन्होंने उच्च हाथ के रूप में वर्णित किया था।

इसके अलावा अलग-अलग अनियमितताओं और अलग-अलग नियमों और विनियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।अनुसूचित जनजाति के सदस्य होने के कारण किसी भी भेदभाव या शत्रुतापूर्ण उपचार का कोई आरोप नहीं लगाया गया था।

दी गई टिप्पणियां स्पष्ट रूप से प्रतिकूल हैं क्योंकि कोई ऐसा आरोप प्रतिवादी नंबर दो द्वारा आयोग या आईओसीएल को अपने प्रतिनिधित्व में नहीं लगाया गया। जाति के आधार पर शत्रुतापूर्ण भेदभाव के झूठे दावे शत्रुतापूर्ण भेदभाव के कृत्यों के रूप में इस देश के लोगों की अखंडता के समान रूप से विभाजनकारी और हानिकारक हैं। "

इसलिए आरोपित आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि  आयोग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 338 ए के तहत अपनी भूमिका को गलत तरीके से समझा जिसमें कहा गया है कि विवाद के समाधान के लिए वह  वैकल्पिक मंच नहीं है और इसका कोई न्यायिक कार्य नहीं है।


Next Story