37 साल से पेंशन नहीं मिलने पर मद्रास हाई कोर्ट ने 89 वर्ष के स्वतंत्रता सेनानी से माँगी माफी [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

28 Jan 2018 10:31 AM GMT

  • 37 साल से पेंशन नहीं मिलने पर मद्रास हाई कोर्ट ने 89 वर्ष के स्वतंत्रता सेनानी से माँगी माफी [आर्डर पढ़े]

    “मुझे अफ़सोस है कि आपको हमारे लोगों के हाथों भी फजीहत झेलनी पड़ी, यह दुर्भाग्य है पर इस देश में, जिसकी आजादी के लिए आप लड़े, लालफीताशाही कभी कभी ऐसे ही काम करती है।”

    मद्रास हाई कोर्ट ने 89 साल के वी गाँधी से माफी मांफी जिनको अपने पेंशन के लिए 37 साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। इतनी लंबी प्रतीक्षा के बाद भी जब उन्हें पेंशन नहीं मिल रहा था तो अंततः वे अदालत की शरण में आए।

    न्यायमूर्ति के रविचंद्रबाबू ने गाँधी से माफी माँगी और तमिलनाडु पब्लिक (राजनीतिक पेंशन - III) विभाग के सचिव और जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि उन्हें दो सप्ताह के भीतर बकाया राशि सहित उनको मिलने वाली राशि का भुगतान उनके घर पर किया जाए।

    अदालत ने गुस्से में कहा कि सरकार ने उनके उम्र में गड़बड़ी होने का बहाना बनाया पर यह इसलिए मायने नहीं रखता है क्योंकि पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित कर्नल लक्ष्मी सहगल ने उनके बारे में कहा था कि गाँधी इंडियन नेशनल आर्मी के हिस्सा थे।

    अदालत वी गाँधी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। गाँधी ने 1980 में पेंशन के लिए आवेदन किया था और उसके बाद 37 साल तक वे संबंधित विभाग से इस बारे में किसी उत्तर की प्रतीक्षा करते रह गए।

    गाँधी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इंडियन नेशनल आर्मी में थे और वे रंगून, बर्मा  में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के हिस्सा थे। मई 1945 से दिसंबर 1945 तक वे रंगून सेंट्रल जेल में बंद रहे।

    6 जुलाई 1980 को गाँधी ने स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के लिए आवेदन तमिलनाडु सरकार को भेजा। 12 साल तक उन्हें प्रतीक्षा के बाद उन्हें कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने 18 नवंबर 1992 को रिमाइंडर भेजा। लेकिन इसका भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ।

    कोर्ट ने कहा कि उन्होंने पूरे सबूत के साथ पेंशन के लिए आवेदन दिया था और उनके साथ जेल में रहे के कलीमुथू ने यह प्रमाणित किया था कि वे भी जेल में रहे हैं।

    जिस बात ने कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया वह था गाँधी के नाम 15 अप्रैल 1994 को लिखा गया लक्ष्मी सहगल का प्रमाणपत्र।

    न्यायमूर्ति रविचंद्रबाबू ने कहा, “यह बहुत अफ़सोस की बात है कि एक व्यक्ति जिसने इस देश की आजादी के लड़ाई की उसको अपने ही देश में कुछ वित्तीय मदद के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। मेरा मानना है कि उनके जैसे व्यक्ति जिसने देश की आजादी के लिए लड़ाई की, उनको इस तरह के सम्मान से नवाजा जाना चाहिए न कि उनको इसके लिए प्रतीक्षा कराई जानी चाहिए।”


     
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