छात्र को गोल्ड मैडल देने से सिर्फ इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वो पहले प्रयास में परीक्षा में नहीं बैठ पाया था : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

27 Jan 2018 5:35 AM GMT

  • छात्र को गोल्ड मैडल देने से सिर्फ इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वो पहले प्रयास में परीक्षा में नहीं बैठ पाया था : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    दिल्ली हाईकोर्ट  ने मंगलवार को कहा कि पाठ्यक्रम की अनुसूची के अनुसार नियंत्रण से बाहर हालात में परीक्षा में बैठने मेंअसमर्थता के कारण छात्र द्वारा दूसरे शैक्षणिक वर्ष में परीक्षा देने को उसका 'पहला प्रयास' माना जाएगा।

    हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि यूनिवर्सिटी बैच में सबसे अधिक अंक प्राप्त करने के लिए छात्र को इस आधार पर पुरस्कार से वंचित नहीं कर सकती कि उसने

     दो पेपर के संबंध में परीक्षा अगले साल दी थी। दरअसल  वर्तमान याचिकाकर्ता को B.A.LLB के 5 वर्ष के पाठ्यक्रम में वर्ष 2010 में गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से संबद्ध अमिटी लॉ स्कूल में नामांकित किया गया था। अपने 6 वें सेमेस्टर परीक्षा के लिए वो 5 में से दो विषयों  सिविल प्रक्रिया संहिता और दंड प्रकिया

    संहिता के पेपर नहीं दे पाया। इन दो परीक्षाओं को मई, 2013 के लिए निर्धारित किया गया था। अभ्यर्थी परीक्षाओं में शामिल नहीं हो सका क्योंकि वह बेहद संक्रामक बीमारी यानी चिकन पॉक्स की बीमारी से पीड़ित था। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2014 में उपरोक्त 2 पत्रों में अपनी परीक्षा लिखी और बहुत अच्छे अंक पाए। उसने अपने पाठ्यक्रम के लिए उच्चतम स्कोर / संचयी प्रदर्शन सूचकांक (सीपीआई) के साथ 80.56 फीसदी के साथ विश्वविद्यालय से स्नातक किया।

    लेकिन फरवरी 2016 में याचिकाकर्ता  यह जानकर  हैरान हुआ कि पाठ्यक्रम में सर्वोच्च स्कोर हासिल करने के बावजूद उसे गोल्ड मेडल के पुरस्कार के लिए योग्य नहीं माना गया।

    प्रतिवादी विश्वविद्यालय हाईकोर्ट  से पहले याचिकाकर्ता की प्रार्थना का विरोध करता रहा । इसके लिए कहा गया था कि विश्वविद्यालय के शासीकरण अध्यादेश में 'अध्यादेश XI’ के तहत पहली बार परीक्षा में शामिल होने में विफल रहने वाले और उसके बाद आयोजित की गई परीक्षाओं में भाग लेने पर इसे दूसरा प्रयास माना जाएगा।

    इसके लिए विश्वविद्यालय के एक आदेश का हवाला दिया गया - "क्रेडिट आधारित मूल्यांकन के साथ अध्ययन के कार्यक्रमों के लिए किसी भी कार्यक्रम समूह / अध्ययन के कार्यक्रमों में अध्ययन के अंत में उच्चतम सीपीआई प्राप्त करने वाला छात्र  स्वर्ण पदक और / या अनुकरणीय प्रदर्शन प्रमाण पत्र का पुरस्कार पाने का हकदार होगा,  यदि छात्र ने पहले प्रयास में हर पेपर / पाठ्यक्रम उत्तीर्ण किया है। "

     दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में  पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के रूबिंदर बरार बनाम पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़, राजस्थान हाईकोर्ट के सोविला माथुर बनाम महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय और सुप्रीम कोर्ट के अभिजीत बनाम डीन, सरकारी मेडिकल  कॉलेज, औरंगाबाद के फैसले पर भरोसा जताते हुए निष्कर्ष निकाला कि वर्ष 2014 में वर्तमान याचिकाकर्ता द्वारा दी गई परीक्षाओं को "पहला प्रयास" माना जाएगा और प्रतिवादी विश्वविद्यालय को उसे स्वर्ण पदक प्रदान करने का निर्देश दिया। हालांकि हाईकोर्ट  ने सहयोगी छात्र की स्थिति को बदलने से इंकार कर दिया, जो वर्तमान रिट याचिका में प्रतिवादी के रूप में शामिल हुआ था और 2013 में परीक्षा में दूसरे उच्चतम सीपीआई हासिल करने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया था।


     
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