कैदी को भी वैवाहिक दौरे का अधिकार: मद्रास हाईकोर्ट ने ये कहते हुए उम्रकैद की सजायाफ्ता को पत्नी के बांझपन के इलाज के लिए दो हफ्ते की रिहाई दी [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
25 Jan 2018 7:20 PM IST
कैदियों के पति या पत्नी के लिए वैवाहिक संबंध निभाने भी कैदी को अधिकार है। ये कहते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम कदम उठाते हुए पलईमकोट्टई की केंद्रीय जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे एक 40 वर्षीय कैदी को अपनी पत्नी की बांझपन के इलाज सहायता के लिए दो सप्ताह के लिए छुट्टी पर जाने की अनुमति दी है।
बेंच ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से कहा गया कि "चाहे जेल में हो या बाहर किसी व्यक्ति को उसकी विधियों, सही और निष्पक्ष” जमानत की स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जायेगा। जस्टिस एस विमला और जस्टिस टी कृष्णवल्ली की बेंच ने उस व्यक्ति को उसकी 32 साल की पत्नी के पास जाने की अनुमति दे दी। पत्नी ने कोर्ट में हैबियस कॉरपस याचिका दाखिल कर कहा था कि डॉक्टरों ने उसे आश्वासन दिया है कि उसके लिए प्रजनन उपचार के साथ एक बच्चा पैदा करना संभव है। बेंच का मानना था कि "हालांकि पत्नी को कैद नहीं किया गया है, लेकिन कैदी के साथ वैवाहिक संबंध के कारण जेल के बाहर एक पीड़ित व्यक्ति और उसकी एक बच्चे की वैध उम्मीद को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।”
हालांकि दो सप्ताह के लिए रिहाई की अनुमति देते हुए अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर डॉक्टरों की प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि बच्चा पैदा होने की संभावना है और आगे की उपचार जरूरी है तो कोर्ट इसे दो सप्ताह तक के विस्तार पर विचार करेगा।
हाईकोर्ट ने सरकार को एक समिति का गठन करने के लिए भी कहा जो जेलों में वैवाहिक दौरों को प्रदान करने और वैवाहिक दौरों की अनुमति की योग्यता व दोषियों का विश्लेषण करने और पात्र कैदियों को सुविधा प्रदान करने की संभावना पर विचार करे।
अदालत ने नेल्सन मंडेला का हवाला देते हुए कहा "कोई भी वास्तव में किसी राष्ट्र को नहीं जानता जब तक कि उसकी जेलों में नहीं देखता। एक राष्ट्र को इससे परखा नहीं जा सकता कि वह अपने उच्चतम नागरिकों के साथ कैसे व्यवहार करता है, बल्कि ये देखना चाहिए कि वो निचले तबके के लोगों से कैसा व्यवहार करता है।”
वर्तमान मामले में जेल के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ने सिद्दीकी अली को रिहाई देने से इंकार कर दिया था जो 18 सालों से जेल में था। उस महिला ने पिछले वर्ष भी अदालत को अनुरोध किया था कि उसके पति को इलाज के लिए 60 दिन के लिए रिहाई दी जाए।
अदालत ने तब राज्य और जेल अधिकारियों से उनकी याचिका पर विचार करने और एक सप्ताह के भीतर फैसला लेने को कहा था। सितंबर 2017 में उसका अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि प्रोबेशन अफसर ने रिहाई की
सिफारिश नहीं की और अधिकारियों ने कहा कि उनका निजी जीवन खतरे में होगा। इसने उसे फिर से कोर्ट में जाने के लिए मजबूर किया। राज्य के लिए उपस्थित अतिरिक्त लोक अभियोजक ने इस आवेदन का विरोध किया कि कैदी की सुरक्षा खतरे में है, जो प्रोबेशन अफसर की रिपोर्ट से स्पष्ट है। प्रोबेशन अफसर की रिपोर्ट के बाद, अदालत ने कहा, "प्रोबेशन अफसर द्वारा उठाए गए मुख्य आक्षेप का आधार है कि कैदी की सुरक्षा खुद खतरे में है और इसलिए उसे छुट्टी पर नहीं भेजा जा सकता। इस आपत्ति में कोई तार्किक आधार नहीं है।रिपोर्ट में कहा गया है कि मृतक के परिवार के ठिकाने की जानकारी नहीं है। यदि सही में कैदी को कोई खतरा खतरा होता है तो यह मुख्य रूप से मृतक के परिवार से हो सकता है और मृतक के परिवार के बारे में प्रोबेशन अफसर को ज्ञात नहीं है, फिर कैदी के जीवन के लिए खतरे से संबंधित मुद्दा बहुत दूरदराज की बात है। यहां तक कि अगर कैदी के जीवन को खतरा है भी तो पुलिस को उसकी सुरक्षा करनी चाहिए।
दूसरी आपत्ति ये थी कि बांझपन उपचार के लिए रिहाई देने के लिए जेल मैनुअल के तहत कोई प्रावधान नहीं है। इस पर अदालत ने कहा, तमिलनाडु सस्पेंशन ऑफ सेंटेंस रूल्स, 1982 के नियम 20 में आठ आधार तय किए गए हैं जिसके तहत 7 वें स्थान पर 'किसी अन्य असाधारण कारण' है। किसी अन्य नियम के अभाव में उपलब्ध कानून के तहत बच्चे के लिए प्रजनन के उद्देश्य से कैदी की रिहाई के लिए यह व्याख्या की जानी चाहिए कि अनुरोध असाधारण कारणों के तहत कवर किया गया है।
यहां तक कि यह माना जाए कि यह कारण असाधारण नहीं है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 ही इस अदालत के लिए पत्नी द्वारा किए गए दावे पर विचार करने के लिए काफी होगा।” अदालत ने नोट किया कि "पत्नी / याचिकाकर्ता की आयु 32 वर्ष है। कैदी उम्रकैद की सजा काट रहा है और वह 18 साल की अवधि से हिरासत में है। तथ्य यह है कि वे उन्हें बच्चा नहीं मिला है। चूंकि पति 18 साल से पत्नी के साथ नहीं रह रहा तो ये भी वजह हो सकती है। डॉक्टर ने पत्नी को आश्वासन दिया है कि बांझपन उपचार की मदद से एक बच्चे को जन्म देना संभव है।”
वैवाहिक संबंध और सुधारवादी दृष्टिकोण
"मनुष्य एक सामाजिक पशु है उसे परिवार और साथ ही रहने के लिए एक समाज की जरूरत है। आदमी को अपनी भावनाओं और संवेदनाओं को साझा करने के लिए दोनों की जरूरत है। मनुष्य होने के नाते कैदियों को भी अपने जीवन साथी और समाज के साथ अपनी समस्याओं को साझा करने की जरूरत है। सिर्फ इसलिए कि उन्हें कैदियों के रूप में रखा जाता है, उनको सम्मान से जीवन जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।"
सुधारवादी दृष्टिकोण पर बल देते हुए बेंच ने कहा, "मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों का मानना है कि निराशा, तनाव, बीमार भावनाएं और हृदय की जलती हुई चीजों को कम किया जा सकता है यदि वैवाहिक संबंधों को
कभी कभार अनुमति दी जाती है तो इंसान को बेहतर बनाया जा सकता है। इसलिए कृत्रिम गर्भ के प्रयोजन के लिए वैवाहिक दौरों की अनुमति या छुट्टी की अनुमति के गुण और दोषों पर विचार करते हुए, फायदे नुकसान से कहीं अधिक हैं।
"वैवाहिक दौरों से परिवार का बंधन मजबूती की ओर जाता है और लंबे समय तक अकेलेपन और यौन संपर्क की कमी के कारण पारिवारिक संबंध रुक से जाते हैं।”
वैवाहिक दौरे प्रदान करने के लिए सरकार के लिए सही समय
जेल में एचआईवी / एड्स के असंख्य मामलों की रिपोर्ट में बेंच ने एक ही लिंग के बीच में संभोग होने की वजह से अवगत कराया।
"कैदी के लिए वैवाहिक संबंधों के अभाव के कारण ये बुराई हो रही है। इसलिए यह सही समय है कि वैवाहिक दौरे प्रदान करने और वैवाहिक मुलाकात की अनुमति के गुण और दोषों की जांच करने व सावधानियों / सुरक्षा उपायों के अधीन पात्र कैदियों को वैवाहिक दौरे की सुविधा प्रदान करने के लिए सरकार को एक समिति का गठन करना चाहिए।
कैदियों के पति या पत्नी का वैवाहिक दौरा भी कैदी का अधिकार है और कम से कम यह अधिकार दुनिया के कुछ देशों में मान्यता प्राप्त है। भीड भरी जेलों में वैवाहिक दौरे के लिए जगह प्रदान करना एक समस्या हो सकती है, लेकिन सरकार को इसका समाधान निकालना होगा।
आज वैवाहिक दौरों को परिवार के विस्तारित दौरे (या वैकल्पिक रूप से परिवार के पुनर्मिलन का दौरा) कहा जाता है। इन विस्तारित पारिवारिक यात्राओं के तीन आधिकारिक कारण हैं :
कैदी और उसके परिवार के सदस्यों के बीच रिश्ते को बनाए रखने, बंधुआपन को कम करने, और अच्छे व्यवहार के लिए प्रेरित करने या प्रोत्साहित करने के लिए।”
बेंच ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि 2015 में भारत सरकार ने कहा था कि कैदियों को वैवाहिक दौरे का अधिकार है और इसलिए यह विवाहित कैदियों के लिए एक विशेषाधिकार नहीं है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए अपने पति या पत्नी के शुक्राणुओं को देने के लिए अगर वे चाहें तो इन कैदियों को भी हक है।
अदालत ने निर्देश दिया कि अली को शुरूआती दो सप्ताह के लिए अस्थायी छुट्टी पर जाने की अनुमति दी जाए। ( 20 जनवरी से 3 फरवरी तक ) इस समय तक उसकी सजा निलंबित रहेगी |