सोहराबुद्दीन ट्रायल की रिपोर्टिंग पर रोक बॉम्बे हाईकोर्ट ने हटाई, कहा जनता को जानने का अधिकार [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
24 Jan 2018 5:48 PM IST
सोहराबुद्दीन शेख, कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड मामले की सुनवाई की रिपोर्टिंग पर रोक के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। अब इस केस की रिपोर्टिंग हो सकेगी।
सीबीआई कोर्ट के जज के आदेश को नौ पत्रकारों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने बुधवार को ये फैसला सुनाते हुए कहा कि सवाल यह है कि क्या जज के पास ऐसे आदेश को पारित करने की शक्तियां हैं ? क्या पाबंदी के आदेश ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।
CrPC 327 के तहत प्रतिबंध को सही ठहराए गए तथ्यों का संकेत मिलता है, जहां आपराधिक कोर्ट लगाई जाती हैं व जांच और परीक्षण खुले अदालत में चलेंगे। बेंच ने आदेश मे कहा कि खुली अदालतें महत्वपूर्ण हैं। न्याय न सिर्फ किया जाना चाहिए बल्कि होते हुए भी दिखाई देना चाहिए। लोग यह जानने के हकदार हैं कि न्याय वितरण व्यवस्था पर्याप्त है या नहीं ? क्या राज्य मशीनरी का दुरुपयोग कर रहा है, राज्य समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। बचाव पक्ष इस संबंध में कोई भी प्रावधान पेश नहीं कर पाया।
फैसले में कहा गया है कि कोर्ट को यह देखना होगा कि आशंका प्रामाणिक है या नहीं।
उत्तरदाताओं की तरफ से उनके शब्दों को छोड़कर कुछ भी रिकॉर्ड रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है और उनकी आशंका अनुचित है। जैसा कि पहले लिखा गया है कि मामला सीबीआई को दिया गया और 2012 में मामला दर्ज किया गया था। निश्चित रूप से जनता के पास ये जानकारी लेने का अधिकार है कि कार्यवाही में क्या हो रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत वास्तव में मीडिया न केवल खुद अधिकार रखता है बल्कि जानकारी के प्रसार के एक बड़े सार्वजनिक उद्देश्य को पूरा करता है जो जनता के लिए आसानी से सुलभ नहीं है। जस्टिस डेरे ने कहा है, "प्रेस समाज का सबसे शक्तिशाली पहरेदार है।मुकदमे की रिपोर्टिंग होनी चाहिए तिरस्कार नहीं। मीडिया जनता की आंखें और कान है।
दरअसल 29 नवंबर 2017 को सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष जज सुनील कुमार शर्मा ने सख्त कदम उठाते हुए मीडिया को निर्देश दिए थे कि वो कोर्ट की कार्रवाई की रिपोर्टिंग ना करे। हालांकि अदालती कार्रवाई के दौरान मीडियाकर्मी कोर्ट में मौजूद रह सकते हैं लेकिन उसकी रिपोर्टिंग नहीं कर सकते।
याचिकाकर्ताओं में अखबार और टीवी से जुडे विभिन्न मीडिया संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले पत्रकार शामिल हैं। याचिका में कहा गया कि ये गैग आदेश अवैध है और विशेष सीबीआई जज के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और ना ही दंड प्रक्रिया के तहत जज इसके लिए अधिकृत है।
यह याचिका में तर्क दिया गया कि विशेष सीबीआई जज ने मामले में गलत रिपोर्टिंग की आशंका के चलते ये आदेश जारी किया जबकि मीडिया 5 साल से अधिक से मामले की रिपोर्टिंग कर रहा है और आज तक गलत रिपोर्टिंग की कोई घटना नहीं हुई है।
याचिका में कहा गया, “ट्रायल कोर्ट को ये मानना चाहिए कि इस मामले में सार्वजनिक हित और हमारी आबादी का एक तत्व शामिल है, इसलिए सभी को ये जानने का अधिकार है कि सुनवाई में क्या हो रहा है। आरोपी व्यक्तियों, जिनमें से लगभग सभी पूर्व पुलिस अधिकारी हैं, वे गुजरात और उसके आसपास फर्जी मुठभेड़ में लगे आरोपों पर ट्रायल का सामना कर रहे हैं।”
2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को गुजरात पुलिस ने हैदराबाद से अगवा किया। आरोप लगाया गया कि दोनों को फर्जी मुठभेड में मार डाला गया। शेख के साथी तुलसीराम प्रजापति को भी 2006 में गुजरात पुलिस द्वारा मार डाला गया। उसे सोहराबुद्दीन मुठभेड का गवाह माना जा रहा था।
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल को महाराष्ट्र में ट्रांसफर कर दिया और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति और शेख के केस को एक साथ जोड दिया।
शुरुआत में जज जेटी उत्पत केस की सुनवाई कर रहे थे लेकिन आरोपी अमित शाह के पेश ना होने पर नाराजगी जाहिर करने पर अचानक उनका तबादला कर दिया गया। फिर केस की सुनवाई जज बी एच लोया ने की।
अब सीबीआई के पूर्व जज लोया की संदिग्ध मौत की खबर कारवां में आने के बाद मीडिया में कई खबरें प्रकाशित की गई।
बचाव पक्ष के वकील वहाब खान ने इन कैमरा के लिए जज बी एच लोया की मौत पर मीडिया की खबरों को आधार बनाया था।
पत्रकारों की ओर से वकील आबाद पोंडा और अभिनव चंद्रचूड पेश हुए।
Image Courtesy: The Wire