आश्रितों को चिकित्सा सुविधा देने के लिए पति/पिता की घोषणा को जरूरी बताने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रेलवे को फटकार लगाई [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
24 Jan 2018 3:14 PM IST
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में माँ-बेटी को चिकित्सा लाभ देने से मना करने पड़ रेलवे को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के लाभ को पति/पिता की घोषणा के बाद देने की बात असंवैधानिक होगा।
कोर्ट ने उत्तर रेलवे के एक पूर्व कर्मचारी की पत्नी और बेटी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। याचिकाकर्ता ने एकल बेंच के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें माँ और बेटी को मेडिकल कार्ड देने से इनकार कर दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कर्मचारी ओम प्रकाश गोरवारा और उनकी पत्नी के बीच कोर्ट में मामला चल रहा है और गोरवारा ने इसलिए रिटायर होने से पहले इन दोनों के नाम अपने मेडिकल कार्ड से हटा दिया और इस तरह उन लोगों को उन सेवाओं से वंचित कर दिया जो किसी भी रेलवे कर्मचारी के आश्रितों को उपलब्ध होता है। एकल जज ने इसे जायज ठहराया था और कहा था कि नामित नहीं किए जाने के कारण उन्हें यह सुविधा नहीं मिल सकती है।
माँ और बेटी ने इस आदेश को मनमाना कहते हुए इसे चुनौती दी और कहा कि पत्नी और बेटी को गोरवारा से गुजारा भत्ता मिलता है और पति-पत्नी अभी अलग नहीं हुए हैं।
गोरवारा ने इस याचिका का विरोध किया और कहा कि वे अलग रह रहे हैं और उनका कोई परिवार नहीं है और वे नहीं चाहते कि उनकी पत्नी और बेटी उनके मेडिकल कार्ड के आधार पर मुफ्त मेडिकल सुविधा प्राप्त करे।
कोर्ट ने कहा कि रेलवे की यह समझ कि आश्रितों को मेडिकल सुविधा कर्मचारी की घोषणा पर निर्भर है, गलत है।
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि वे आपस में मुकदमें में उलझे हैं, उनके बीच की रिश्तेदारी बदल नहीं जाती है। कोर्ट ने कहा कि वास्तविकता यह है कि रेलवे ने ऐसा करेक संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया है।
कोर्ट ने कहा, “मधु कई तरह की गंभीर बीमारियों से ग्रस्त है जिसके कारण से वह कोई नौकरी नहीं कर सकती। उनकी बेटी ने माँ की देखभाल के लिए नौकरी नहीं करना उचित समझा है। देश का संविधान एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की बात करता है और अपने नागरिकों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना उसके कर्तव्यों में शामिल है। यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत गरिमामय जीवन के अधिकार के रूप में संविधान द्वारा संरक्षित है। फिर, एक कर्मचारी के रूप में सरकार को अपने कर्मचारी के स्वास्थ्य का ध्यान रखना ही चाहिए...”।
कोर्ट ने इसलिए उक्त आदेश को निरस्त कर दिया और अधिकारियों को आदेश किया कि वह आवेदनकर्ता को अलग से मेडिकल कार्ड और विशेषाधिकार पास जारी करे।