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राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों की रिहाई के तमिलनाडु सरकार के प्रस्ताव पर तीन महीने में फैसला ले केंद्र : SC

LiveLaw News Network
23 Jan 2018 12:19 PM GMT
राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों की रिहाई के तमिलनाडु सरकार के प्रस्ताव पर तीन महीने में फैसला ले केंद्र : SC
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि तमिलनाडु सरकार के फरवरी 19, 2014 को भेजे गए उस प्रस्ताव पर तीन महीने में फैसला ले जिसमें 27 सालों से जेल में बंद राजीव गांधी के सात हत्यारों की रिहाई करने को कहा गया था।

जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस ए एम सपरे और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने केंद्र की ओर से ASG पिंकी आनंद और तमिलनाडू सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी की दलीलें सुनने के बाद ये निर्देश जारी किए।

जस्टिस गोगोई ने इस दौरान  कहा कि यदि केंद्र प्रस्ताव पर निर्णय ले लेता है तो ये पूरा मुद्दा ही खत्म हो जाएगा।

दरअसल दिसंबर 2015 में पांच जजों  की संविधान पीठ ने कहा था कि राज्य सात दोषियों मुरुगन, संथन, पेरारीवलन (जिनकी मौत की सजा को उम्रकैद की सजा में बदल दिया गया था) और नलिनी, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रवीचंद्रन को स्वत: संज्ञान लेकर उम्रकैद की सजा से रिहाई नहीं दे सकती।

पीठ ने ये माना था कि  सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच किए गए मामलों में राज्य सरकार सिर्फ केंद्र सरकार की सहमति से ही सजा में छूट दे सकती है। हालांकि, पीठ ने कहा था कि दोषियों की सजा में छूट देने के

फरवरी 19, 2014 के तमिलनाडु सरकार के आदेश की वैधता के लिए निर्धारित सिद्धांतों के प्रकाश में तीन जजों की बेंच द्वारा फिर से विचार किया जाएगा।

इसी के तहत जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच  के सामने मामले को सूचीबद्ध किया गया था। केंद्र ने उस वक्त सीधे कोर्ट में याचिका दाखिल कर रिहाई पर स्टे ले लिया था लेकिन वो प्रस्ताव पर सहमत है या नहीं, इस पर केंद्र ने अपना रुख साफ नहीं किया था।

मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि यद्यपि यह माना गया है कि तमिलनाडु को रिहाई की मंजूरी में केंद्र से परामर्श करना चाहिए लेकिन केंद्र सरकार अभी तक प्रस्ताव पर फैसला नहीं ले पाई है।  इस दलील को ध्यान में रखते हुए बेंच ने केंद्र से तीन महीने में प्रस्ताव पर फैसला करने को कहा।

गौरतलब है कि संविधान पीठ ने इस बात को खारिज कर दिया था कि आजीवन कारावास की सजा का मतलब केवल 14 साल होता है और यह माना गया कि आजीवन कारावास  का मतलब जीवन के बाकी हिस्सों के लिए  सजा है। हालांकि इसमें कहा गया कि सरकार का संविधान के अनुच्छेद 72 या अनुच्छेद 161 के तहत  छूट, कमीशन, दण्ड देने आदि  का अधिकार हमेशा बना रहेगा। इसी के तहत सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सजा में छूट देने के तमिलनाडु के प्रस्ताव पर फैसला करने को कहा है।

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