निर्माण श्रमिकों के कल्याण को अनदेखा करने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई केंद्र को फटकार

LiveLaw News Network

20 Jan 2018 9:17 AM GMT

  • निर्माण श्रमिकों के कल्याण को अनदेखा करने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई केंद्र को फटकार

    नाराज जस्टिस लोकुर ने ASG मनिंदर सिंह से कहा,   "आप निर्माण कर्मियों के कल्याण के लिए कानून का पालन नहीं कर रहे हैं। आप खुलकर सामने क्यों नहीं आते और औपचारिक रूप से ये क्यों नहीं कहते कि हमारे द्वारा दिए गए आदेश कचरे के डब्बे में फेंक रहे हैं तो कृपया और आदेश पारित ना करें।”

    सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण कार्य से जुडे श्रमिकों के कल्याण के लिए नियमों को लागू न करने के लिए केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर सवाल उठाया है कि 1996 के अधिनियम के तहत सेस के रूप में 37,000 करोड़ रुपये से ज्यादा एकत्र किए गए लेकिन  उन्हें इन श्रमिकों के लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

    जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह को कहा , "यह पूरी तरह असहाय की स्थिति है यह बहुत स्पष्ट है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है। जमीन पर ये हो रहा है कि आप धन इकट्ठा करते हैं, लेकिन इसे उन लोगों को नहीं देते जिनके लिए इसे एकत्र किया गया।”  बेंच ने कहा कि इस तरह से यह स्पष्ट है कि बिल्डिंग और अन्य निर्माण कर्मचारी (सेवा नियमन और शर्तों का नियमन) अधिनियम, 1996 बिल्कुल लागू नहीं किया जा सकता।

    नाराज जस्टिस लोकुर ने कहा,   "आप निर्माण कर्मियों के कल्याण के लिए कानून का पालन नहीं कर रहे हैं। आप खुलकर सामने क्यों नहीं आते और औपचारिक रूप से ये क्यों नहीं कहते कि हमारे द्वारा दिए गए आदेश कचरे के डब्बे में फेंक रहे हैं? "

    ये मानते हुए कि "यह एक पूरी तरह से असहाय की स्थिति” है, उन्होंने कहा,  "यदि सरकार गंभीर नहीं है, तो हमें बताएं। आप जो कर रहे हैं वह यह है कि आप पैसे इकट्ठा कर रहे हैं लेकिन उन (निर्माण श्रमिकों) को नहीं दे रहे जिनके लिए पैसा एकत्र किया गया है। "

    जस्टिस लोकुर ने कहा कि 1996 के अधिनियम के तहत उपकर के रूप में 37,000 करोड़ रुपये से अधिक एकत्र किया गया है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पहले एक शपथ पत्र में कहा था कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए निधियों को लैपटॉप और वॉशिंग मशीन खरीदने के लिए खर्च किया जा रहा है।

    दरअसल निर्माण श्रम पर केन्द्रीय कानून के लिए नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर सेंट्रल लेजिशलेशन द्वारा जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि निर्माण कार्य से जुडे श्रमिकों के कल्याण के लिए रीयल एस्टेट कंपनियों पर लगाए जाने वाले वैधानिक उपकर का सही उपयोग नहीं किया जा रहा है क्योंकि लाभार्थियों को लाभ देने के लिए कोई तंत्र नहीं है।

    ASG मनिंदर सिंह ने बेंच को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के श्रम सचिवों की निगरानी समिति की एक हालिया बैठक के बारे में बताया लेकिन बेंच ने कहा कि "सरकार का दृष्टिकोण बैठक के कुछ मिनट तक चलने से ही पता चलता है।”

     ASG  ने  बेंच से कहा कि इस अधिनियम के कार्यान्वयन को केन्द्रीयकृत किया जाना चाहिए क्योंकि राज्यों के पास अपने विचार हैं। वहीं याचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोन्जाल्विस ने  कहा कि इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हाल ही की बैठक दो घंटों से कम समय तक हुई और इसमें कुछ भी नहीं किया गया। बेंच ने याचिका में प्रार्थना को संदर्भित किया और गोन्जाल्विस से कहा, "बैठक और मिनटों से यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम को लागू नहीं किया जा सकता।”

    सुनवाई के  दौरान, ASG ने बेंच से कहा कि इस अधिनियम का निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए है जिसका लक्ष्य उस उद्देश्य से कार्य करना है जिसके साथ इसे लागू किया गया है।

    गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही श्रमिकों के कल्याण के लिए कानूनों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए नागरिक समाज को शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया था और केंद्र सरकार को  गैर-सरकारी संगठनों से सहायता लेने को कहा था।

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