कर ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य की नियुक्ति हाई कोर्ट से पूछे बिना नहीं और प्रशासनिक सदस्यों को न्यायिक प्रशिक्षण मिलना चाहिए : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

17 Jan 2018 1:56 PM GMT

  • कर ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य की नियुक्ति हाई कोर्ट से पूछे बिना नहीं और प्रशासनिक सदस्यों को न्यायिक प्रशिक्षण मिलना चाहिए : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    एक महत्त्वपूर्ण फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि कर ट्रिब्यूनलों के न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति हाई कोर्ट के साथ प्रभावी परामर्श के बिना नहीं हो सकती और प्रशासनिक सदस्यों को न्यायिक प्रशिक्षण देना जरूरी है।

    न्यायमूर्ति एएस ओका और रियाज़ चागला की पीठ ने कहा कि अगर ऐसे मामले जिसके बारे में एकल बेंच को फैसला देना है तो ये मामले हमेशा ही न्यायिक सदस्य के सामने पेश किये जाने चाहिएं। अगर आपातकालीन मामला है और न्यायिक सदस्य उपलब्ध नहीं हैं, तो ऐसे मामले जिसमें अंतरिम राहत की मांग की गई है उसे एकल प्रशासनिक सदस्य के सामने रखा जा सकता है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    उपरोक्त निर्देश बिक्री कर ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दिया। इसमें ट्रिब्यूनल में सदस्यों की नियुक्ति के बारे में महाराष्ट्र वैट रूल्स और वैट अधिनियम के कतिपय नियमों को चुनौती दी गई थी। आधारभूत संरचना से जुड़े मुद्दों को भी याचिका में उठाया गया था पर इसको लेकर पहले सुनाए गए फैसले में निर्देश दिया गया था।

    2 जून 1973 के सरकारी प्रस्ताव को भी इस याचिका में चुनौती दी गई है।

    राज्य वित्त विभाग द्वारा जारी सरकारी प्रस्ताव ट्रिब्यूनल के सदस्य के रूप में बिक्री कर उपायुक्त की नियुक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि अवकाशप्राप्त बिक्री कर उपायुक्त को ट्रिब्यूनल में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। इसके अनुसार ट्रिब्यूनल के सदस्यों के चयन की जिम्मेदारी एक उच्च अधिकार-प्राप्त चयन बोर्ड को दी जानी चाहिए। मुख्य सचिव को इस बोर्ड का चेयरमैन और विधि और न्याय विभाग एवं वित्त विभाग के सचिवों को इसका सदस्य बनाना चाहिए।

    अंतिम फैसला

    वरिष्ठ एडवोकेट आरवी देसाई ने याचिकाकर्ता की पैरवी की जबकि राज्य की पैरवी एजीपी वीए सोनपाल ने की।

    याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वैट अधिनियम की धारा 11 के तहत ट्रिब्यूनल के सदस्यों और उसके अध्यक्ष की नियुक्ति की जिम्मेदारी सरकार की है और कहीं भी हाई कोर्ट के साथ इस बारे में परामर्श की बात नहीं की गई है।

    एजीपी सोनपाल ने कहा कि ट्रिब्यूनल के गैर-न्यायिक सदस्य की नियुक्ति की जा सकती है लेकिन और परम्परा रही है कि वे एकल सुनवाई नहीं करते और जब वे बेंच में होते हैं तब वे न्यायिक सदस्य की मदद कर रहे होते हैं।

    सभी तरह के प्रावधानों की जांच करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को देखने के बाद पीठ ने ये निर्देश दिए :

    1)  ट्रिब्यूनल में किसी भी न्यायिक सदस्य की नियुक्ति हाई कोर्ट के प्रभावी सलाह के बिना नहीं की जानी चाहिए।

    2)  हम स्पष्ट करते हैं कि दो या दो से अधिक सदस्यों की बेंच की अध्यक्षता हमेशा ही न्यायिक सदस्य ही करेगा।

    3)  2 जून 1973 को जारी सरकारी प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया है। और

    4)   प्राशासनिक या गैर-न्यायिक सदस्यों की जहाँ तक बात है, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ये सदस्य न्यायिक मामलों में प्रशिक्षित किये जाएं और उनके पास अर्ध-न्यायिक प्रक्रियाओं के साथ निपटने का लंबा अनुभव हो।


     
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