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हड़ताल करने वाली राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित नहीं कर पाना राज्य की आपराधिक विफलता : केरल हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
![हड़ताल करने वाली राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित नहीं कर पाना राज्य की आपराधिक विफलता : केरल हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें] हड़ताल करने वाली राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित नहीं कर पाना राज्य की आपराधिक विफलता : केरल हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2017/08/Justice-Antony-Dominic-Justice-Naidu-LL.jpg)
केरल हाई कोर्ट ने हड़ताल को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक पार्टियों की आलोचना की है। कोर्ट ने एक ड्राईवर को 7 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने को सही ठहराते हुए उक्त बातें कही। एक राजनीतिक पार्टी द्वारा आयोजित हड़ताल के दौरान उग्र भीड़ द्वारा पथराव किए जाने के कारण इस ड्राईवर की एक आँख चली गई।
कोर्ट ने इस घटना के लिए राज्य और हिंसा भड़काने वालों को जिम्मेदार ठहराया था। राज्य ने मुआवजे की 25 फीसदी राशि देने के आदेश को कोर्ट में चुनौती दी है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अंटोनी डोमिनिक और डामा सेशाद्री नायडू की पीठ ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, “जहाँ तक राज्य की योग्यता की बात है, यह कहने की जरूरत नहीं है कि राज्य को आम नागरिकों के जीवन की रक्षा करनी चाहिए। ऐसी राजनीतिक पार्टियाँ जो आम लोगों को कुछ भी नहीं समझती हैं, उनको रोक पाने में सरकार की विफलता आम नागरिकों की सुरक्षा की सार्वभौमिक जिम्मेदारी का आपराधिक उल्लंघन है।”
पीठ ने कहा कि राज्य चाहे तो राजनीतिक पार्टियों से यह राशि वसूल सकता है। पीठ ने हड़ताल का आह्वान करने वाली राजनीतिक पार्टियों की आलोचना की और कहा, “जो केरल के सार्वजनिक जीवन के बारे में नहीं जानते हैं, हड़ताल एक छद्म बंद है जिसको बहुत पहले प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसको लेकर हम सबको चिंता करनी चाहिए। राज्य के किसी भी कोने में हुई किसी भी मामूली से मामूली घटना को राजनीतिक रंग दे दिया जाता है। बैंककर्मी, बेकरी का काम करने वाले, कसाई, नाई, छात्र, दुकानदार सब इसकी वजह से नुकसान उठाते हैं। अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है, व्यवस्था को नुकसान होता है, राज्य की छवि ख़राब होती है। सड़कों पर न तो कोई आदमी दिखाई देता है, न कोई वाहन चलते हैं और यहाँ तक कि चूहा भी नहीं दिखाई देता। अगर कोई प्रदर्शनकारियों की बात नहीं मानता है तो वह है राजनीतिक पार्टियाँ और इनके ही इशारे पर सब होता है। अगर किसी ने कार्यालय या दुकान खोलने की हिम्मत की तो उसे हिंसा और तोड़फोड़ का सामना करना पड़ता है। आज विघटन हड़ताल को परिभाषित करता है।”