प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के साथ, भ्रष्टाचार के तरीके भी तरक्की पर : इलाहाबाद हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

17 Jan 2018 4:53 AM GMT

  • प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के साथ, भ्रष्टाचार के तरीके भी तरक्की पर : इलाहाबाद हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को भ्रष्टाचार में बड़े पैमाने पर वृद्धि को उजागर करते हुए कहा कि आजकल ईमानदार लोगों को मिलना मुश्किल हो गया है।

    जस्टिस  सुधीर अग्रवाल और जस्टिस अजित कुमार की बेंच  ने कहा, "आज एक ईमानदार व्यक्ति की खोज एक दुर्लभ काम है। बेईमानी और भ्रष्टाचार नियमित कार्य हैं। ईमानदारी कम और वास्तव में एक लुप्तप्राय:  प्रजाति बन गई है व हमें ईमानदार और निष्पक्ष लोगों की रक्षा करने के लिए कोई योजना लानी होगी

    ( जैसाकि दुर्लभ जानवरों के संबंध में किया जा रहा है) । सच है कि ऐसे व्यक्तियों की संख्या कम हो रही है, फिर भी हम मानते हैं कि समाज में पर्याप्त ईमानदार लोग हैं। आवश्यकता केवल उन्हें पहचानने और प्रोत्साहित करने की

    है ताकि उनकी संख्या में वृद्धि हो सके। इसके लिए भ्रष्ट और बेईमान लोगों के खिलाफ  उन्हें तलाश कर और कठोर सजा देने के साथ- साथ विरोध करने वाली कार्रवाई की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार और बेईमानी के खतरे से निपटने में व्यवस्था की विफलता इन भ्रष्ट लोगों को प्रोत्साहित कर रही है, उनके संवर्ग को बढा रही है। यह ईमानदारी और ईमानदारी पर उल्टा प्रभाव पैदा कर रहा है। हम भ्रष्टाचार को हटाने के पक्ष में बहुत बात करते हैं लेकिन वास्तव में कोई गंभीर प्रयास कम ही करते हैं।ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जाता जो सामान्य नागरिकों को उम्मीद की किरण भी दे सकें। ये रोग की तरह फैल रहा है और उपचार के लिए एक दर्द से भरे प्रयास  की आवश्यकता है। "

    हाईकोर्ट नरेंद्र कुमार त्यागी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने कणकदखेड़ा, मेरठ में रक्षा एन्क्लेव योजना में 200 वर्ग मीटर के भूखंड  के आवंटन को चुनौती दी थी। त्यागी  ने आरोप लगाया था कि भूमि के लिए नीलामी प्रक्रिया एक बहाना थी क्योंकि उनकी बोली को अस्वीकार कर दिया गया जबकि  वह एकमात्र बोलीदाता था और एक और व्यक्ति का नाम धोखे से बोली लगाने वाले की सूची में जोड़ा गया। हाईकोर्ट ने याचिका को मंजूरी दी और कहा कि भ्रष्टाचार विभिन्न सार्वजनिक कार्यालयों में प्रचलित है।

     बेंच ने  कहा, "हम वास्तव में आश्चर्यचकित हैं कि जनता के निपटारे में जहां भूमि आवंटन की प्रक्रिया को निष्पक्ष, उद्देश्य और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है, एमडीए और इसके अफसर   भ्रष्ट क्रियाकलापों में

    और चयनात्मक व्यक्तियों के पक्ष में रिकार्डों के जोड़ तोड़ के लिए स्पष्ट रूप से लिप्त हैं।

    इसकी पेटेंट और भ्रष्टाचार के स्पष्ट उदाहरण के अलावा किसी भी अन्य तौर अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती।भ्रष्टातार अब कई रूपों में है।   यह उतना आसान नहीं है जितना पहले के दिनों में था जब एक साधारण देने और लेने या गैरकानूनी या पक्षपात आदि करना एकमात्र तरीका था। अब भ्रष्टाचार विभिन्न तरीकों से होता है।कभी-कभी स्पष्ट भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता क्योंकि इसके परिणाम विभिन्न चरणों और  साधनों में होते हैं।  जैसे हम प्रौद्योगिकी में तरक्की कर रहे हैं, भ्रष्टाचार के तरीके भी तरक्की पर हैं।

     कई बार लेन-देन सरल और साधारण हो सकता है लेकिन असल में यह भ्रष्टाचार से भरा होता है। भ्रष्टाचार अब लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं और यह समाज में बहुत बड़े पैमाने पर घिरा हुआ है। "

    इसके बाद, नीलामी की कार्यवाही को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, " वर्तमान मामले में उत्तरदाताओं द्वारा अपनाई गई पूरी प्रक्रिया कुछ भी नहीं है, बल्कि धोखाधड़ी और गलत प्रस्तुतीकरण से भरी है। विभिन्न अधिकारी कोर्ट में झूठी दलीलों तक चले गए जबकि वो जानते हैं कि वो रिकार्ड में स्पष्ट विरोधाभास की व्याख्या करने की स्थिति में नहीं हैं। "

     इसके बाद कोर्ट ने मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) को याचिकाकर्ता को लागत के रूप में 50,000 देने के आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि ये राशि संबंधित अफसरों से वसूली जा सकती है।


     
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