किसी अवयस्क की ओर से मुकदमा कोई भी दायर कर सकता है, इसके लिए कोर्ट की अनुमति की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

16 Jan 2018 8:05 AM GMT

  • किसी अवयस्क की ओर से मुकदमा कोई भी दायर कर सकता है, इसके लिए कोर्ट की अनुमति की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    किसी अवयस्क की ओर से याचिका दायर करने की प्रक्रिया के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस बारे में कोर्ट द्वारा मित्र की नियुक्ति के बारे में न तो कि प्रावधान है और न ही इस तरह की किसी नियुक्ति के लिए कोर्ट की अनुमति की जरूरत है। कोर्ट ने नागैयाह बनाम चोवदम्मा  मामले का हवाला देते हुए उक्त बातें कही।

    न्यायमूर्ति अरुण मिश्र और न्यायमूर्ति मोहन एम शंतानागौदर की पीठ ने इस बारे में कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया जिसमें कोर्ट ने एक अवयस्क की उस याचिका को खारिज कर दिया जो उसने अपने बड़े भाई के माध्यम से दायर की थी। याचिका खारिज करते हुए जज ने कहा था कि अवयस्क के पिता के जीवित रहते हुए उसका बड़ा भाई उसका अभिभावक नहीं बन सकता क्योंकि बड़े भाई को किसी उपयुक्त कोर्ट ने छोटे अवयस्क भाई का अभिभावक नियुक्त नहीं किया है।

    कोर्ट ने कहा कि हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट की धारा 4(b) पर पूरी तरह निर्भर रहकर हाई कोर्ट ने गलत राह पकड़ ली। पीठ ने कहा, “वर्तमान तथ्य हिंदू गार्डियनशिप एक्ट से निर्देशित नहीं होते; बल्कि ये कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर के आदेश XXXII से प्रशासित होते हैं”।

    कोर्ट ने सिविल प्रोसीजर कोड के विभिन्न प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि कोई अगला मित्र जरूरी नहीं है कि कोर्ट द्वारा विधिवत नियुक्त किया गया कोई अभिभावक ही हो, जैसा कि हिंदू गार्डियनशिप एक्ट में कहा गया है। कोर्ट ने कहा, “अगला मित्र” उस अवयस्क या किसी व्यक्ति के लाभ के लिए काम करता है जो कि अपने हित का ख़याल नहीं रख सकता और अपने मुक़दमे खुद नहीं लड़ सकता।

    इसके बाद कोर्ट ने कहा कि जहाँ कहीं भी किसी अल्पवयस्क की ओर से कोई मुकदमा दर्ज किया गया है, कोर्ट से इसके लिए किसी भी तरह की अनुमति की जरूरत नहीं होती। अगर मुकदमा किसी अवयस्क व्यक्ति के खिलाफ दायर किया गया है तो यह वादी के लिए बाध्यकारी है कि वह अवयस्क के लिए कोर्ट से मुकदमे चलने की अवधि के लिए एक अभिभावक की नियुक्ति कराए।

    पीठ ने गोपालस्वामी गौंदर बनाम रामास्वामी कौंदर मामले में केरल हाई कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया कि कोई भी व्यक्ति जिसका हित अवयस्क के हित से नहीं टकराता है, उसका अगला मित्र बन सकता है।


     
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