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उत्तराखंड हाई कोर्ट का आदेश, राज्य सरकार राजस्व पुलिस व्यवस्था को छह माह में समाप्त करे और नियमित पुलिस को सीआरपीसी के तहत लाए [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
15 Jan 2018 11:28 AM GMT
उत्तराखंड हाई कोर्ट का आदेश, राज्य सरकार राजस्व पुलिस व्यवस्था को छह माह में समाप्त करे और नियमित पुलिस को सीआरपीसी के तहत लाए [निर्णय पढ़ें]
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एक ऐतिहासिक फैसले में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य में सौ साल से अधिक समय से चली आ रही राजस्व पुलिस व्यवस्था को छह माह के अंदर समाप्त करने का आदेश दिया है। राज्य के कई पहाड़ी इलाकों में राजस्व पुलिस की व्यवस्था अभी भी चल रही है और कोर्ट ने इन क्षेत्रों में इसके बदले देश के अन्य हिस्सों की तरह ही नियमित पुलिस व्यवस्था कायम करने को कहा है।

न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और आलोक सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा, “राजस्व पुलिस व्यवस्था, जो कि उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में प्रचलन में है, को आज से छह महीने के भीतर समाप्त किया जाए और इस बीच, राज्य सरकार देश के अन्य हिस्सों में प्रचलित व्यवस्था की तरह नियमित पुलिस व्यवस्था कायम करे।”

कोर्ट ने टिहरी गढ़वाल के एक ट्रायल कोर्ट द्वारा 2012 में आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के खिलाफ सुंदर लाल की याचिका को खारिज करते हुए उक्त आदेश दिए। सुंदर लाल ने दहेज़ नहीं मिलने पर शादी के चार साल के भीतर ही अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी।

अभियुत की सजा को कायम रखते हुए कोर्ट ने गौर किया कि इस मामले में एफआईआर के बदले एक टिहरी गढ़वाल के हिस्रीयाखाल राजस्व पुलिस के समक्ष एक तहरीर दायर किया गया था। इसके आधार पर मामले की जांच नाइब तहसीलदार ने की और एफआईआर पटवारी ने दर्ज कराया था। तहसीलदार ने वह बेडशीट भी हत्यास्थल से हासिल नहीं किया था जिस पर महिला की हत्या के दौरान खून के धब्बे पड़े थे और नाइब तहसीलदार ने विसरा और अन्य वस्तुओं को एफएसएल जांच के लिए भी नहीं भेजा।

यह सब इसलिए हुआ क्योंकि इस मामले की जांच राजस्व पुलिस कर रही थी जिसका मुख्य काम राजस्व वसूलना है क्योंकि उत्तराखंड के चार जिलों में अभी भी राजस्व पुलिस ही इस तरह के मामलों और राजस्व के मामले भी देखती है, जैसा कि ब्रिटिश राज के जमाने और उसके कुछ दिन बाद तक होता था। राजस्व पुलिस को नहीं पता कि अपराधों की जांच कैसे की जाती है।

पीठ ने राजस्व पुलिस के आपराधिक मामले को निपटाने के तरीके की आलोचना की जिसकी वजह से लोग अपराध करके छूट जाते हैं।

कोर्ट ने कहा, “राजस्व पुलिस को पूछताछ, कंप्यूटर, आवाज विश्लेषण, उँगलियों के निशान, पैरों के निशान, औजारों के निशान, आग्नेयास्त्रों, दस्तावेजों, जहर, नशीले पदार्थ, शराब, विस्फोटक, आग, माइक्रोट्रेसेज, बाल, शरीर के द्रव, डीएनए प्रोफाइलिंग, आत्महत्या सहित मौत की संभावनाएं, दुर्घटना, क़त्ल, मृतक की पहचान, कंकालीय अवेशेष, यौन अपराध आदि जैसी बातों के लिए घटनास्थल का प्रयोग कैसे किया जाए यह नहीं पता होता है। वे लोग सीआरपीसी से अवगत नहीं होते हैं। वे साक्ष्य अधिनियम व आपराधिक क़ानून के अन्य सहायक कानूनों के बारे में नहीं जानते। वे सिर्फ मैट्रिक पास होते हैं।”

 पीठ ने 2004 के “नवीन चन्द्र बनाम उत्तराँचल सरकार” मामले का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि पहाड़ी क्षेत्र में पर्याप्त पुलिस बल बहाल किए जाने चाहिए और यह जरूरी है कि इन क्षेत्रों में मामलों की जांच भी प्रशिक्षित पुलिस अधिकारी करे जो कि जांच की आधुनिक तकनीकों के बारे में जानते हैं।”

राज्य सरकार को अन्य बातों के अलावा निम्न आदेश इस बारे में दिए गए हैं -




  • हर सर्किल में दो पुलिस स्टेशन हो जिसका प्रमुख ऑफिसर-इंचार्ज होगा और यह सब इंस्पेक्टर के रैंक से कम रैंक वाले नहीं होंगे।

  • एफआईआर दायर करना, चालान और जांच आदि पूरे राज्य में सिर्फ पुलिस ही करे न कि पटवारी से ये काम कराये जाएं।

  • राज्य सरकार पुलिस प्रशिक्षण केंद्र खोलेगी अगर ऐसा अभी तक नहीं किया है तो। इसके अलावा पुलिस एकेडेमी की भी स्थापना हो।

  • राज्य में पुलिस शोध और विकास ब्यूरो की भी स्थापना की जाए जो कि पुलिस और अपराध के मामले में शोध कार्यों को अंजाम दे सके।


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