देश के राष्ट्रपति जनहित याचिका का मुद्दा नहीं बन सकते : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

9 Jan 2018 5:16 AM GMT

  • देश के राष्ट्रपति जनहित याचिका का मुद्दा नहीं बन सकते : सुप्रीम कोर्ट

    देश के राष्ट्रपति एक जनहित याचिका के विषय नहीं हो सकते, ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने एक याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के चयन के लिए भर्ती प्रक्रिया भेदभावपूर्ण है।

     बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील की याचिका को  को वापस लेने के लिए गुहार को भी नामंजूर  कर दिया।बेंच ने कहा, "यह जनहित याचिका का मुद्दा नहीं हो सकता और गणराज्य के राष्ट्रपति जनहित याचिका के अधीन नहीं हो सकते। “

    दरअसल याचिकाकर्ता डॉ ईश्वर सिंह ने दिल्ली हाईकोर्ट के 4 सितंबर 2016 के आदेश को चुनौती दी थी  जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। सिंह ने आरोप लगाया कि तीन जातियों - सिख, राजपूत और जाट के उम्मीदवारों को राष्ट्रपति के अंगरक्षक के लिए भर्ती कराया गया, जो जातिगत पक्षपातपूर्ण और भेदभावपूर्ण है। याचिकाकर्ता ने राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड की भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की।

    पिछले साल सितंबर में बॉडी गार्ड भर्ती पर मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा, "जाट, सिख (मज़भाई, रामदासी, एससी और एसटी) को छोड़कर और राजपूत भर्ती के लिए पात्र थे और इन सिर्फ इन जातियों  के उम्मीदवारों को ही आमंत्रित किया गया था और यहीं उपर्युक्त भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने के लिए योग्य है। ऐसी भर्ती अनुच्छेद 14 के तहत निर्धारित कानून में समानता के सिद्धांतों के खिलाफ है और धारा 15 के खिलाफ है जिसमें  धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म के आधार पर भेदभाव निषेध है। साथ ही ये अनुच्छेद 16 के भी खिलाफ है क्योंकि सार्वजनिक रोजगार में समानता के तहत राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड की चयन प्रक्रिया असंवैधानिक और अवैध है। ये पद के लिए चयन और भर्ती के लिए भारत के सभी पात्र नागरिकों को अनुमति नहीं देता। ये भर्ती असंवैधानिक, जातिवाद और रंगभेद वाली है। "

    याचिका में कानून के निम्नलिखित प्रश्न उठाए गए हैं; -




    • क्या केवल तीन जातियों में पात्रता के मापदंड और अन्य जाति को रोकना मूलभूत अधिकार का उल्लंघन है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत निहित है?

    • क्या हाईकोर्ट द्वारा पारित0 9.2017 के  आदेश इस माननीय न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के खिलाफ हैं?

    • क्या उत्तरदाताओं ने पात्रता मानदंड घोषित करते हुए राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड की भर्ती के लिए उचित भारतीय सेना भर्ती नीति का पालन किया है?

    • क्या राष्ट्रपति के अंगरक्षक की भर्ती की नीति भारत के संविधान की भावना के खिलाफ है?

    • क्या किसी उम्मीदवार को "जाति, पंथ और इलाके" के कारण राष्ट्रपति के अंगरक्षक की सेवाओं के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है?

    • क्या हाईकोर्ट ने भारतीय सेना से राष्ट्रपति के अंगरक्षक के लिए नियुक्ति के बारे में उचित जांच नहीं की और0 9.2017 के आदेश को पारित करने में चूक की है?

    • क्या हाईकोर्ट भारतीय सेना से राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड के लिए भर्ती के संबंध में उचित शोध करने में विफल रहा है ?

    • क्या मौजूदा मामले में एसपी गुप्ता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (एआईआर 1982 एससी 149) में कानून लागू है? क्या कोई एक सार्वजनिक  भर्ती नीति को चुनौती दे सकता है जो भारत के संविधान का उल्लंघन करती है?

    • क्या इस माननीय न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून "हरि बंसल लाल बनाम सहोदर प्रसाद महतो, 2010 की नागरिक अपील संख्या 7165 मौजूदा तथ्य और मामले की परिस्थितियों पर लागू है?   क्या राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड की भर्ती के लिए निर्धारित मानदंड अनुचित हैं और ये भारत के संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है?


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