उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 : मुख्य बातें [विधेयक पढ़ें]
LiveLaw News Network
8 Jan 2018 3:47 PM IST
सरकार ने संसद के शीत सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 लोकसभा में पेश किया। यह नया विधेयक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का स्थान लेगा।
यह देखा गया कि इस समय जो अधिनियम प्रभावी है वह उपभोक्ताओं की शिकायतों को कई बाध्यताओं के कारण शीघ्रता से सुलझाने में बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रहा है।
वैश्विक आपूर्ति में संलग्न कंपनियों के भारत में आने, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और ई-कॉमर्स में आ रही तेजी के कारण उपभोक्ताओं के लिए सेवाओं के ज्यादा अवसर पैदा हुए हैं। बरगलाने वाले विज्ञापन, टेली-मार्केटिंग, डायरेक्ट सेलिंग और ई-कॉमर्स की वजह से उपभोक्ता संरक्षण को नई चुनौतियां मिल रही हैं।
बदली हुई परिस्थितियों से निपटने के लिए नए विधेयक में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं ताकि उपभोक्ताओं के हितों की बेहतर सुरक्षा हो सके।
इस विधेयक की मुख्य बातें हैं :
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी
इस विधेयक में एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी गठित करने का प्रावधान है ताकि उपभोक्ता संरक्षण के लिए संवैधानिक निकाय की कमी को पूरा किया जा सके। यह अथॉरिटी उत्पादों को वापस लेने के लिए दबाव डालने, खरीदी गई वस्तुओं की कीमतों की वापसी और उत्पाद को लौटाने जैसे प्रावधानों लागू करेगा। यह बरगलाने वाले विज्ञापनों पर भी लगाम लगाएगा। अथॉरिटी को 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाने का अधिकार होगा और इसके बाद क़ानून का दूसरे बार उल्लंघन होने पर उसको हर ऐसे उल्लंघन के लिए 50 लाख रुपए तक का जुर्माना वसूलने का अधिकार होगा। गलत विज्ञापन के लिए वह दो साल की जेल की सजा सुना सकता है और इसके आगे अगर क़ानून का फिर उल्लंघन होता है तो प्रत्यके उल्लंघन के लिए पांच साल की सजा का प्रावधान है।
दिलचस्प यह है कि इस विधेयक में सेलेब्रिटी पर यह जिम्मेदारी होगी कि वह किसी ब्रांड का विज्ञापन करने से पहले उसके द्वारा किए जा रहे दावे की जांच कर लें। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो इस तरह के झूठे और भरमाने वाले विज्ञापन करने वाले पर एक साल और आगे और होने वाले उल्लंघनों में से प्रत्येक के लिए तीन साल का प्रतिबन्ध होगा।
अथॉरिटी के आदेश के उल्लंघन पर जुर्माना या कैद या दोनों ही हो सकता है। अथॉरिटी के आदेश पर कोई भी अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पास जाएगा।
उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम
उपभोक्ताओं की सुविधा के लिए नए विधेयक में विवाद निपटाने वाली संस्था के लिए क्षेत्रीय अधिकारक्षेत्र को अब शिकायतकर्ता और विपक्षी पार्टी के निवास स्थल या व्यवसाय स्थल और जहाँ घटना हुई है उसको भी शामिल कर लिया गया है। जिला फोरम अब एक करोड़ रुपए तक के मामले की सुनवाई कर सकेगा जबकि राज्य आयोग की यह सीमा 10 करोड़ की होगी। इन दोनों ही फोरम को अपने आदेशों की समीक्षा करने का अधिकार होगा।
अगर राष्ट्रीय आयोग को लगता है कि जरूरी है तो वह उपभोक्ता के हितों को देखते हुए किसी भी विशेषज्ञ व्यक्ति या संस्थान की मदद ले सकता है।
जिला और राज्य आयोगों के आदेशों को वैसे ही लागू किया जाएगा जैसे सिविल कोर्ट के आदेशों का। इनके आदेशों के उल्लंघन पर एक माह से कम कैद नहीं हो सकता (जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है) और 25 हजार रुपए (जिसे एक लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकता है) से कम जुर्माना नहीं लगेगा या दोनों ही लगेगा।
उपभोक्ता इन फोरम पर अपनी शिकायात ऑनलाइन कर सकते हैं और सुनवाई वीडिओ कांफ्रेंसिंग के द्वारा हो सकेगा।
अनुचित अनुबंध
अनुचित अनुबंध किसी निर्माता, व्यापारी और सेवा प्रदाता के बीच ऐसा अनुबंध होगा जो काम के अनुबंध को पूरा कराने के लिए उपभोक्ता से बहुत ज्यादा डिपोजिट की मांग करता है, अनुबंध पूरा नहीं करने पर उस पर भारी हर्जाने लगाता है, कर्ज की राशि को अग्रिम चुकाने के प्रस्ताव को अस्वीकार करता है, निर्माता, व्यापारी या सेवा देनेवाले अनुबंध को एकतरफा समाप्त कर देता है या उपभोक्ता के हितों के खिलाफ कोई अनावश्यक देनदारी या परिस्थिति पैदा करता है।
उत्पाद की देनदारी
किसी भी निर्माता द्वारा खराब उत्पादों के निर्माण से कोई नुकसान होता है या किसी सेवा प्रदाता द्वारा सेवा ठीक से नहीं देने के कारण या किसी विक्रेता द्वारा बेचे गए किसी उत्पाद से कोई नुकसान होता है तो इसकी शिकायत अब इन फोरमों पर की जा सकेगी।
मध्यस्थता
विधेयक में मध्यस्थता के लिए एक वैधानिक निकाय का भी प्रावधान किया गया है। अगर जिला, राज्य या राष्ट्रीय आयोग को लगता है कि मामले को मध्यस्थता से सुलझाए जाने की संभावना है तो वह मामले को इस फोरम को सौंप सकता है।
मिलावट
विधेयक में नुकसान पहुंचाने वाले मिलावटी उत्पादों को बेचने के लिए बनाने, उसके भंडारण, उसको बेचने या बांटने या फिर ऐसा माल बाहर से मंगाने पर जुर्माना और कैद का प्रावधान है।