राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, रिटायर होने पर सभी को सरकारी बँगला खाली कर देना चाहिए : अमिकस गोपाल सुब्रमण्यम
LiveLaw News Network
7 Jan 2018 10:30 AM IST
किसी उच्च पद पर बैठा व्यक्ति फिर चाहे वह राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, रिटायर होने पर वह एक साधारण नागरिक भर रह जाता है और रिटायरमेंट के बाद के न्यूनतम प्रोटोकॉल, पेंशन और लाभ के अलावा और किसी भी तरह की सुविधा उसे नहीं दी जानी चाहिए। ऐसा अमिकस क्यूरी गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक को सरकारी घर नहीं मिलना चाहिए।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ को अपने लिखित प्रस्तुति में सुब्रमण्यम ने कहा, “एक बार जब कोई सरकारी सेवक (राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि) पद छोड़ता है वह उस सरकारी पद से जुड़ा नहीं रह जाता है और इस तरह इस पद से जुड़े किसी भी तरह के अलंकरण से उसका कोई नाता नहीं रह जाता। वह वापस एक आम नागरिक हो जाता है और उसको रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली आम सुविधाओं के अलावा किसी भी तरह का विशेषाधिकार नहीं मिलना चाहिए।
अपने लिखित बयान में सुब्रमण्यम ने कहा, “यहाँ तक कि देश का मुख्य न्यायाधीश, नियंत्रक और महालेखाकार और अन्य संवैधानिक अथॉरिटीज को भी अपने पद से हटने के बाद सुविधाएं छोड़नी होंगी। उस स्थिति में किसी भी तरह का भेदभाव किसी के साथ नहीं हो सकता। चूंकि यह बात देश भर में हो रही है, सो यह जरूरी है कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत इसको अब और मौक़ा नहीं दिया जाए नहीं तो हर तरह से इस तरह के विशेषाधिकारों की मांग उठनी शुरू हो जाएगी।
अमिकस क्यूरी का यह सुझाव काफी महत्त्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अगस्त को इस मामले की महत्ता को देखते हुए गोपाल सुब्रमण्यम को इस मामले में कोर्ट की मदद करने को कहा था। एक बार जब यह निर्धारित हो जाएगा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बँगला नहीं मिल सकता, तो इसका असर अन्य राज्यों और केंद्रीय कानूनों पर भी होगा।
कोर्ट एक एनजीओ लोक प्रहरी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बँगला आवंटित करने के फैसले को चुनौती दी गई है जबकि सुप्रीम कोर्ट इसे अगस्त 2016 में “खराब क़ानून” बता चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2016 में कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बँगलों का आवंटन एक खराब क़ानून है और इन लोगों को अपना बँगला वापस दे देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश मंत्री (वेतन, भत्ता और अन्य प्रावधान) अधिनियम में संशोधन किया और पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बँगलों के आवंटन की अनुमति दे दी। जनहित याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताने के लिए किया गया है।