महिला सशक्तिकरण पर स्थाई समिति ने कहा, ज्यादा से ज्यादा महिला वकील महिला कैदियों की मदद के लिए डीएलएएस से जुड़ें
LiveLaw News Network
4 Jan 2018 1:12 PM IST
महिलाओं के सशक्तिकरण के मामले पर बनी स्थाई समिति ने सुझाव दिया है कि अधिक से अधिक महिला वकीलों को महिला कैदियों की मदद के लिए आगे आना चाहिए और इसके लिए उनको जिला विधिक सहायता सोसायटी (डीएलएएस) से अधिक संख्या में जुड़ना चाहिए।
बिजोया चक्रवर्ती की अध्यक्षता में समिति ने “महिला कैदी और न्याय तक पहुँच” नामक रिपोर्ट में मॉडल प्रिजन मैन्युअल 2003 और 2016 के प्रभावों का आकलन किया जाए। रिपोर्ट में कहा गया है, “मॉडल प्रिजन मैन्युअल 2003 इस उद्देश्य से बनाया गया था कि देश भर में जेलों के प्रशासन में इससे एकरूपता आएगी। इसके बाद जनवरी 2016 में एक संशोधित मैन्युअल लाया गया। समिति का मानना है कि मॉडल प्रिजन मैन्युअल 2003 को लागू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसके अलावा इस मैन्युअल को लाने के 13 साल बीत जाने के बाद भी इसका कोई इम्पैक्ट असेसमेंट नहीं हुआ है।”
इस रिपोर्ट में जेलों में जरूरत से ज्यादा कैदियों को रखे जाने की समस्या पर भी चर्चा की गई है और कहा है कि इसका सबसे बड़ा कारण है केसों की सुनवाई में होने वाली देरी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकाँश विचाराधीन कैदी छोटे-मोटे अपराधी हैं, और इसलिए इनके मामलों से निपटने के लिए किसी वैकल्पिक तरीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
समिति को इस बात का भी पता चला कि हिरासत के दौरान पुलिसवालों के व्यवहार के कारण कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन होता है और इसलिए जेल प्रबंधन में बेहतर निगरानी व्यवस्था कायम करने का सुझाव दिया गया है। समिति ने जेल अधिकारियों को बेहतर प्रशिक्षण देने की बात की है ताकि जेंडर के प्रति उनकी संवेदनशीलता सुनिश्चित की जा सके। जेलों में ज्यादा महिला कर्मचारियों की भर्तियों के लिए विशेष भर्ती चलाने का सुझाव दिया गया है।
समिति ने गौर किया कि महिला कैदियों में आम तौर पर पाए जाने वाली स्वास्थ्य गड़बड़ियों के बारे में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। समिति ने सुझाव दिया है कि देश भर के जेलों में राज्य सरकारों और एनजीओ की मदद से सर्वे किया जाए और इस तरह के आंकड़े जुटाएं जाएं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विदेशी कैदियों के साथ ज्यादा मुश्किलें पेश आ सकती हैं जिसके कई कारण हैं - (i) उनको यहाँ की सुनवाई प्रक्रिया की समझ नहीं होती (ii) अच्छी दुभाषिये का अभाव और (iii) भाषाई बाधाएं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जेल के अधिकारी विदेशी कैदियों के धार्मिक, भोजन संबंधी और उनकी आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करें। समिति ने यह सुझाव भी दिया है कि हिरासत में बंद विदेशी कैदियों के लिए विशेष प्रकोष्ठ बनाए जाएं।