मातृत्व अवकाश सेवा अवधि का हिस्सा और शिशु को जन्म देना और उसका लालन-पालन उसका मौलिक अधिकार : मद्रास हाई कोर्ट

LiveLaw News Network

3 Jan 2018 4:45 PM GMT

  • मातृत्व अवकाश सेवा अवधि का हिस्सा और शिशु को जन्म देना और उसका लालन-पालन उसका मौलिक अधिकार : मद्रास हाई कोर्ट

     मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि शिशु को जन्म देना और उसका लालन-पालन करना एक महिला का मौलिक अधिकार है और मातृत्व अवकाश को उसके सेवा की अवधि का हिस्सा माना जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता एक डॉक्टर ने 2017-18 में गाइनेकोलोजी एंड ओब्सटेट्रीक्स कोर्स में प्रवेश के लिए आवेदन किया था पर उसे इस आधार पर प्रवेश नहीं दिया गया कि उसने दो वर्ष की सेवा पूरी नहीं की है क्योंकि वह छह महीने के मातृत्व अवकाश पर थी।

    याचिकाकर्ता को राहत देते हुए न्यायमूर्ति किरुबकरण ने तमिलनाडु सरकार को 2018-19 के लिए उसके प्रवेश को वैध मानने का आदेश दिया। लेकिन जज ने इस याचिका को लंबित रखा ताकि किसी “महिला के गर्भधारण करने या जन्म देने, मातृत्व अवकाश प्राप्त करने के अधिकार को सेवा की अवधि समझने और नवजातों को छह माह तक विशेषकर माँ का दूध और अगले दो सालों तक इसके विकल्प के साथ फीड करने जैसे सामान्य बातों पर फैसला किया जा सके।

    कोर्ट ने सरकार को कामकाजी महिलाओं को पर्याप्त मातृत्व अवकाश देने का सुझाव दिया है और मातृत्व अवकाश पर जा रही महिला कर्मचारियों से यह वचन लेने को कहा है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए वे दो से अधिक बच्चे पैदा नहीं करेंगीं।

    कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि वह क्यों नहीं एक क़ानून बनाकर बच्चों को माँ का दूध पिलाना आवश्यक बना देता है जैसा कि संयुक्त अरब अमीरात की सरकार ने किया है। यूएई के बाल अधिकार क़ानून में माँ के दूध को आवश्यक बना दिया गया है।

    कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए भारत सरकार (क़ानून और महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय), महिला विकास आयोग और तमिलनाडु के क़ानून विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को इस मामले में पक्षकार बनाया है।

    कोर्ट ने महिलाओं के लिए मातृत्व लाभों का जिक्र करने के दौरान संविधान के अनुच्छेद 39 और 42 का हवाला दिया।

    कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार महिलाओं के खिलाफ भेदभाव रोकने के कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किया है और इसलिए वह इन संधियों को लागू करने के लिए बाध्य है।

    मातृत्व अवकाश के कई अवयव हैं जैसे – कठिन काम नहीं करना, काम के दबाव के बिना आराम की सुविधा, शिशु को जन्म देना, नवजात को माँ द्वारा फीडिंग, नवजात का लालन-पालन करना। कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश को इन अवयवों के आलोक में देखना है।

    माँ का दूध शिशु और माँ दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण

    यह कहने के लिए कि माँ का दूध शिशुओं और माताओं को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है, न्यायमूर्ति किरुबकरण ने कई शोधों और अध्ययनों का हवाला दिया। उन्होंने कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया  जिसमें कहा गया है कि शिशु के आंत में पाया जाने वाला लाभदायक बैक्टीरिया सीधे सीधे माँ के दूध से आता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि महिलाओं को चाहिए कि वह दो साल की उम्र तक अपने शिशुओं को अपना दूध पिलाएं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. तेद्रोस अधानोम घेब्रेयेसस को उद्धृत करते हुए कोर्ट ने कहा, “माँ का दूध शिशु के लिए प्रथम वैक्सीन की तरह काम करता है जो कि शिशु को खतरनाक बीमारियों से बचाता है और ज़िंदा बचे रहने के लिए उनको हर तरह के जरूरी पोषक आहार उपलब्ध कराता है।”

    जज ने यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में ग्लोबल ब्रेस्ट फीडिंग कलेक्टिव की 2017 की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था को शिशुओं की उच्च मृत्यु दर और महिलाओं की कैंसर, टाइप II डायबिटीज के कारण अनुमानित 14 अरब डॉलर (सकल राष्ट्रीय आय का 0.70%) का घाटा होने वाला है और इन बीमारियों की प्रत्यक्ष वजह उनको माँ का दूध नहीं पिलाना है।

    “…संयुक्त राष्ट्र की हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 99499 बच्चे हर साल ऐसी बीमारियों के कारण मर जाते हैं जिसे माँ का दूध पिलाने से रोका जा सकता है...यद्यपि देश भर में माताओं की मृत्यु दर में कमी आई है, तमिलनाडु में इसमें पिछले पांच सालों में 19% की वृद्धि हुई है,” यह कहना था न्यायमूर्ति किरुबकरण का।

    न्यायमूर्ति किरुबकरण ने जो 15 सवाल पूछे हैं वे इस तरह से हैं :




    • केंद्र सरकार मातृत्व अवकाश को 180 दिनों से बढ़ाकर 270 दिन क्यों नहीं कर देती जैसा कि तमिलनाडु सरकार ने किया है?

    • केंद्र सरकार उन राज्यों को एक साल के अंदर केंद्र सरकार के अनुरूप मातृत्व अवकाश को 180 दिन करने का निर्देश क्यों नहीं देती जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है?

    • केंद्र सरकार राष्ट्र हित में राज्यों के विषय में क़ानून बनाने के लिए अनुच्छेद 249 का सहारा क्यों नहीं लेती और मातृत्व अवकाश और शिशुओं को माँ का दूध पिलाने का अधिकार सहित मातृत्व लाभ को राष्ट्रीय हित का मुद्दा क्यों नहीं बनाती?

    • यह अदालत क्यों न विशेषकर छह माह और इसके विकल्प के साथ दो सालों तक नवजातों के लिए माँ का दूध पिलाने को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार और अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत इसे मानवाधिकार घोषित कर दे?

    • क्या महिलाओं के हित में सरकारी महिला कर्मचारियों को अपने बच्चों तक आसानी से पहुँच पाने और कार्यालय के समय के दौरान उनको दूध पिलाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के कार्यालयों में क्रेच की सुविधा है जहाँ पर ज्यादा महिलाएं काम करते हैं?

    • सरकारें सभी महिलाओं के लिए विशेष बीमा स्कीम क्यों नहीं लाती जो मातृत्व के खतरे को कवर करे और इसके लिए एक तय राशि एक बार उन महिलाओं के वेतन से उनके गर्भधारण के प्रथम माह में ले ली जाए और जो महिलाएं काम नहीं कर रही हैं उनका प्रीमियम सरकार खुद भरे?

    • सरकार आवश्यक रूप से मातृत्व अवकाश पर जाने वाली उन महिला कर्मचारियों से यह वचन क्यों नहीं ले लेती कि वे जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो से अधिक बच्चे पैदा नहीं करेंगी?

    • केंद्र और राज्य सरकारें उन अधिकारियों के लिए दंड का प्रावधान क्यों नहीं करती जो सरकारी महिला कर्मचारियों को समय पर मातृत्व अवकाश नहीं देते जब वो गर्भवती होती हैं?

    • सरकार मातृत्व अवकाश लेने वाली ऐसी महिला सरकारी कर्मचारियों के लिए अपने शिशुओं को मातृत्व अवकाश की अवधि तक अपना दूध पिलाना अनिवार्य क्यों नहीं कर देती?

    • केंद्र और राज्य सरकारें आम महिलाओं खासकर महिला कर्मचारियों को शिशुओं के लिए माँ के दूध के महत्त्व के बारे में सेमिनारों, बातचीत और मेडिकल कोउंसेलरों के माध्यम से क्यों नहीं बताती?

    • केंद्र सरकार माँ के दूध को शिशुओं के लिए आवश्यक बनाने के लिए एक क़ानून क्यों नहीं बनाती?

    • क्या सरकारInfant milk substitutes, Feeding Bottles and Infant Foods (Regulation of Production Supply and Distribution) Act, 1992 के प्रावधानों को उचित तरीके से लागू कर रही है जिसमें विज्ञापन द्वारा शिशुओं के आहारों पर प्रतिबन्ध लगाने और माँ के दूध का प्रचार करना शामिल है?

    • क्या केंद्र और राज्य सरकारें ऐसा क़ानून ला सकती हैं जिसके तहत सार्वजनिक स्थलों जैसे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मॉल्स और सरकारी कार्यालयों, फैक्टरियों में शिशुओं को दूध पिलाने के लिए विशेष रूम की व्यवस्था की जाए?

    • सरकारें प्रति शिशु ज्यादा रकम खर्च क्यों नहीं करती हैं क्योंकि ब्रेस्ट फीडिंग पर जो वैश्विक रिपोर्ट 2017 में आई उसके हिसाब से भारत में हर शिशु पर 10 रुपए से भी कम राशि खर्च की जाती है?

    • सरकारें मातृत्व स्वास्थ्य में और सुधार लाने का प्रयास क्यों नहीं कर रही हैं ताकि माताओं की मृत्यु दर में कमी आए? वैसे विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में हर एक लाख शिशुओं के जन्म पर 174 माताओं की मौत हो जाती है जो कि 2010 के 215 से कम है।

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